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पवित्र करना ChsHin 314

सच्ची पवित्रता, परमेष्वर की सेवा में परिपूर्णता है। यह सच्चे मसीही जीवन की षर्त है। प्रभु यीषु एक खुले रूप से सब को पवित्रता प्रदान करना चाहता है। जो विभाजित नहीं है। वह हमारा हृदय, सोच आत्मा और सामर्थ सब कुछ चाहता है। स्वार्थ का कोई स्थान नहीं है। वह जो केवल स्वयं के लिये जीता है। वह मसीही नहीं है। (काईस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स 48, 49) ChsHin 314.1

प्रथम पाठ जो उन लोगो को सीखना होना, जो प्रभु का काम करने को उसके साथ हो लेते है, वह कि उन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं रखना है। तभी वे प्रभु यीषु का चरित्र उन्हें बांटने के लिये तैयार पाये जायेंगे। और यह गुण उन्हें किसी सबसे वैज्ञानिक स्कूल में षिक्षा के माध्यम से नहीं दिया जा सकता है, यह बुद्धि का फल है जो केवल स्वर्गीय गुरू से ही प्राप्त हो सकता है। (द डिजायर ऑफ एजेज 249, 250) ChsHin 314.2

ये कोई अंतिम घटना हो नहीं है कि मनुश्य एक मसीही इसलिये हैं, क्योंकि वह आत्मिक आनन्द की पराकाश्ठा पर होता है, चाहे वह अजीब तरह की परिस्थितियों के बीच हो। क्योंकि पवित्रता प्रसन्नता या आनन्द नहीं हैं यह परमेष्वर की इच्छा का पूरा-पूरा सम्पूर्ण है। ये प्रभु के कहे वचन के अनुसार जो वचन प्रभु के मुँह से निकलता है, उसके अनुसार जीना है। यह परमेष्वर की आज्ञाओं को मानना है। यह मुसीबत के दौरान प्रभु में भरोसा रखना है, चाहे अंधकार हो या रौषनी । यह भरोसा प्रभु में चलना है, केवल एक दषश्ट कोण नहीं है, यह प्रभु पर पूरी तरह से निर्भर होना हैं, बिना कुछ प्रष्न किये आत्मविष्वास और उसके प्रेम पर निर्भर होकर। (द एक्ट्स ऑफ अपॉसल्स 51) ChsHin 314.3