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राजभक्ति ChsHin 316

समय की तंगी के इस समय में जो लोग पभु का काम अन्याय और भक्ति हीनता से करते है। परमेष्वर उनसे घष्णा करते है। सम्पूर्ण जगत बड़ी रूचि से जिसका बयान नहीं किया जा सकता वह अंतिम दष्य जो उस महान संघर्श जो अच्छाई और बुराई के बीच चल रहा है। देख रहा है। परमेष्वर के लोग अंत जगत की सीमाओं के निकट पहुंच रहे है। उनके लिये इससे बढ़कर महत्वपूर्ण बात क्या होगी कि वे स्वर्ग के परमेष्वर के प्रति वफादार हो। बीते हुये युगों से प्रभु के अनेक नैतिक नायक हुये हैं। और आज भी अनेक युसुफ, एलियाह और दानिय्येल की रतह, जो अपने आप को प्रभु के चुने हुये लोगकहलाने से लज्जित नहीं हुये। उसकी विषेश आषिशें उन मेहनती कामगारों पर होती है, वे पुरूश जो सीधे अपना काम करने के लिये तत्पर होते है। किन्तु जो स्वर्गीय सामर्थ प्राप्त करते, वे पुछेगें, प्रभु की ओर कौन है? ये व्यक्ति केवल प्रष्न पुछकर षांत नहीं होगें, बल्कि मांग करेगें कि वे जो अपने को प्रभु का चुना हुआ मानते है वे कतार में सामने आये । और बिना गलती किये अपने आपको प्रस्तुत करे कि वे राजओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु के प्रति वफादार है। ऐसे व्यक्ति अपनी इच्छा और योजनायें परमेष्वर के नियमों के अनुसार बतायें। उससे प्रेम की खातिर वे अपनी जान की परवाह नहीं करते है। इनका काम रौषनी की वचन के द्वारा जगत में फैलना और उसे रौषन करना साफ-सीधी किरणे प्रभु के प्रति निश्ठा उनका प्रथम उद्देष्य है। (प्रोफेट्स एण्ड किंग्स 148) ChsHin 316.2