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काम की सफलता के पीछे उद्देश्य ChsHin 334

जो कुछ भी सम्पूर्ण पवित्र प्रेम से किया गया, भले ही वह छोटा सा काम ही क्यों न हो या मनुष्यों की नजरों में घष्णात्मक भी हो, वह भी पूरी तरह फलीभूत होगा। क्योंकि परमेश्वर उस व्यक्ति के द्वारा कितने प्रेम से कार्य किया गया है। इस का सम्मान । (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 2:135) । ChsHin 334.1

अपनी इच्छा से काम करने वाले, निस्वार्थ एवं सच्चे मन से मन फिराने वाले कार्यकर्ता केवल दस भी हो तो वे मिशन के कार्य ज्यादा कर सकते है। उन सौ लोगों की अपेक्षा जो केवल अपना परिश्रम कार्य की रूप रेखा बनाने में यांत्रिकी नियमों को सुरक्षित रखने में करते, आत्माओं को बचाने के लिये गहरा प्रेम लिये कार्य नहीं करते। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 4:602) ChsHin 334.2

ये तुम्हारी कार्य करने की क्षमता नहीं जो तुम अब पाई जाती है, जो तुम्हें सफलता दिलाती है। किन्तु ये वो काम है, जो प्रभु तुम्हारे लिये कर सकता है। मनुष्य क्या कर सकता है, इस पर कम ही भरोसा रखना चाहिये। वहीं परमेश्वर पर कम ही भरोसा रखना चाहिये । वही परमेश्वर पर कम ही भरोसा रखना चाहिये। वही परमेश्वर पर हम पूरा-पूरा भरोसा रखकर हर एक विश्वास करने वाली आत्मा के लिये वह क्या कर सकता है। इस पर ज्यादा विश्वास होना चाहिये। परमेश्वर विश्वास के द्वारा उस तक पहुँचने के लिये तुम्हारी प्रतिक्षा करता है। वह प्रतिक्षा करता है कि तुम उससे बड़े-बड़े दान मांगो। वह तुम्हें वचन की समझ सांसारिक और आत्मिक दोनों बातों के विषय देना चाहता है। वह तुम्हारी बुद्धि को तेज बनाता वह तुम्हें कार्य करने की प्रवीणता व तरीके सिखाता है। अपने तोड़े प्रभु के काम में लगाओं, उससे बुद्धि मांगो और वह तुम्हें दी जायेगी। (काइस्ट ऑब्जेक्ट् लैसन्स 146) ChsHin 334.3

अनुग्रह का तेल मनुष्यों को सहास देता और काम करने की प्रेरणा प्रदान करता है। प्रतिदिन वह काम करने के लिये जो प्रभु ने नियुक्त किया है। पांच मूर्ख कुवारियां के पास दिये थे। (अर्थात वचन् की सच्चाई का ज्ञान) किन्तु प्रभु यीशु का अनुग्रह रूपी तेल नहीं था। दिन प्रतिदिन वे अनेक संस्कारों से होकर गुजरे तथा अन्य बाहरी काम भी किये, किन्तु उनकी सेवा व्यर्थ निर्जीव थी, प्रभु यीशु की धार्मिकता से रहित थी। ६ पार्मिकता का सूर्य उनके हष्दय और मस्तिष्क पर नहीं चमका था, और उनके पास वह प्रेम नही था. वह सत्य प्रेम जो जीवन और चरित्र को स्वरूप को प्रभु यीशु के स्वर्गीय चिन्ह मैं बदल देता है। अनुग्रह रूपी तेल उनके सारे के सारे परिश्रम में समाहित नहीं हुआ था। उनका धर्म-सूखी घास-भूसे के समान बिना सच्चे सार का था। वे बाईबल सिद्धान्तों के विभिन्न रूपों को दष्ढ़ता से थामें रहे, किन्तु अपने मसीही जीवन को धोखा दिया। अपनी ही धार्मिकता से भरे हुये, प्रभु की पाठशाला में पाठ न सीखने वाले, जो यदि अभ्यास किये होते तो प्रभु ने उन्हें उद्धार पाने तक बुद्धि से परिपूर्ण कर दिया होता। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड 27 मार्च 1894) ChsHin 334.4

प्रभु यीशु का काम आगे और आगे बढ़ाना है। जब तक कि स्वर्गीय और मानवीय ताकतों के द्वारा सहयोग कर इसे परिपूर्णता तक नही पहुंचाया जाये। वे जो स्वयं ही इस काम को करने के लिये अपने आप को सक्रिय व सक्षम दर्शाते है, किन्त वे प्रार्थनामय जीवन नहीं जीते तो उन्हें उनके काम के बदले बुद्धि भी प्राप्त न होगा। क्या वे उस स्वर्गदूत की उपस्थिति को देख सकेंगें | जो सोने की वेदी के सामने इन्द्रधनुषी सिंहासन के समक्ष खड़ा है। वे देख सकेंगे कि प्रभु यीशु के कार्य, हमारी प्रार्थना और परिश्रम के साथ मिल गये या फिर वे केन के द्वारा चढ़ाये गये बलिदान की तरह ग्रहण योग्य न थे। क्या हम मनुष्य के सारे क्रियालाप देख सकते है, जिस प्रकार प्रभु देख सकता है? हम केवल वही देख सकेंगे। जो कार्य पूरी प्रार्थना बार-बार की गई प्रार्थना से पूरा हुआ है। जिसे प्रभु यीशु की महिमा पवित्र किया गया, वही न्याय के स्तर पर सारे कामों का खुलासा होगा। तब ही वे इस अन्तर को देख पायेगें, वे जो वास्तव में प्रभु की सेवा करते और वे जो नहीं करते। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड 4 जुलाई 1893) ChsHin 335.1

इस युग के लिये वैधानिक धम जवाब नहीं देगा। हम चाहे प्रभु की सेवा के सारे बाहरी कामों को पूर्ण करें, किन्तु फिर भी पवित्र आत्मा की तुरन्त प्रभाव डालने वाले प्रभाव से रहित रहेगें। जैसे कि मिबों की पहाड़ियाँ ओस की बूंदो और वर्षा से रहित थी। हम सबको आत्मिक नमी की जरूरत हैं, और हमें धार्मिकता के चमकते सूरज की तेज रौशनी की भी जरूरत है ताकि हमारे हष्दयों को मुलायम और कायल कर दें। हमें हमारे सिद्धान्तों के लिये चट्टान की तरह अंडिंग रहना है। बाईबल के सिद्धान्तों को सिखाया जाना चाहिये और पवित्र जीवन उस सिद्धान्त को मजबूत बनाना चाहिये। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 6:417, 418) ChsHin 335.2

सफलता केवल प्रवीणता के गुणों पर निर्भर करती बल्कि ताकत और स्वेच्छा से कार्य को करने पर निर्भर होती है। ये सभी गुणों को समावेश नहीं जो हमें प्रभु को भाने वाली सेवा करने के योग्य ठहराये। किन्तु ये आत्मिक रूप से प्रतिदिन के जीवन में किया वे देखें जाने वाला कर्तव्य है। कर्तव्य परायण आत्मा, दष्ढ़ व अडिंग, पूरे मन से काम करने की रूचि दूसरों की भलाई के लिये तत्पर हों। सबसे उदार व नम्र लोगो के पास सच्ची प्रवीणता पाई जा सकती है। साधारण से साधारण काम भी स्नेह पूर्व, विश्वास से किया जाये। वो परमेश्वर की नजरों में सुंदर व अच्छा होता है। (प्रोफेट्स एण्ड किंग्स 219) ChsHin 336.1

एक सुडौल बनावट व मजबुत खूबसूरत चरित्र, व्यक्ति के स्वंय कर्तव्यों को पूरा करने से बनता है। और भरोसेमंद होना हमारे जीवन का चरित्रिक गुण हो चाहिये। जो चाहे कम से कम या अधिक से अधिक उसके विस्तष्त रूप में हो। छोटी बातों में एकता, छोटे कामों में दिखाई गई भक्ति, छोटे-छोटे दया के कार्य, जीवन के मार्ग को खुशियों में भर देते हैं। और जब पष्थ्वी का हमारा काम खत्म होगा तब यह पता चलेगा कि हर एक वह छोटा काम जो बड़ी वफादारी से पूरा किया गया, वह भलाई के कामों पर हावी हुआ हैं। एक ऐसा प्रभाव जो कभी खत्म न होगा। ChsHin 336.2