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महान संघर्ष

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    पाठ ८ - यीशु का न्याय होता है।

    स्वर्गदूत पृथ्वी को उतरे थे उस वक्त उन्होंने अपने चमकीले मुकुट को दुःख से उतार फेंका था। जब उनका कप्तान यीशु दुःख उठा रहा था और काँटों का मुकुट पहना था तो उन्हें बड़ा दुःख लगा। शैतान और उसके दूत न्यायालय में मनुष्य की हमदर्दी और मानवता को बिगाड़ने में व्यस्त थे। वहाँ का वातावरण बहुत ही बिगाड़ दिया गया था। मुख्य पुरोहित और प्राचीन लोग उनके प्रभाव से यीशु को अपमान कर रहे थे। यह अपमान इतना घृणित था कि मनुष्य के सहने से बाहर था। शैतान को आशा थी कि इस प्रकार की निंदा से वह घबड़ा कर ईश्वर से शिकायत करना चाहे व अपना स्वर्गीय शक्ति व्यवहार करें। अपने को लोगों से छुड़ा कर उद्धार की योजना को पूरा न कर सके।GCH 30.1

    यीशु के पकड़े जाने पर पतरस भी यीशु के पीछे चला गया। वह देखने के लिये तरस रहा था कि यीशु को लोग क्या कहेंगे। जब उसे यीशु के साथ होने का दोष लगाया गया तो यीशु को इन्कार कर दिया। अपने प्राण को खतरे में पड़ा देख कर, जब उसे कहा गया कि तुम उसके साथ थे तो वह मुकर कर कहने लगा - “मैं उसे नहीं जानता हूँ”। उसके चेले सत्यवादी के रूप में जाने जाते थे यहाँ पतरस ने उन्हें ठ्ण कर विश्वास दिलाया कि वह उसके चेलों में से नहीं है। इस प्रकार पतरस ने शपथ खाते हुए तीसरी बार यीशु को इन्कार किया। यीशु कुछ ही दूर पर था। वह पतरस की ओर मुड़कर उदास मन से घुड़कने की दृष्टि से देखा। उपरौठी कोठरी में यीशु की कही हुई बात को और अपना गर्व वचन को याद किया। उसने कहा था कि यदि तेरे कारण सब को ठोकर खाना पड़े तो मैं कभी भी नहीं खाऊँगा। उसने अपने प्रभु को कोसते और शपथ खाते हुए इन्कार किया था। यीशु की उस पैनी दृष्टि ने पतरस का दिल को चूरचूर कर दिया और उसे बचा लिया। वह सिसक-सिसक कर रोते हुए पश्चात्ताप करने लगा। उसका मन बदल गया और अपने भाईयों को सम्भालने को कहा गया।GCH 30.2

    भीड़ के अधिकांश लोग यीशु को मार डालने के लिये तुले हुए थे। बड़ी क्रूरता से कोड़ा लगाने के बाद उसको बैंगनी वस्त्र से ओढ़ाया गया मानो उसे राजा बना दिया गया और उसके सिर पर काँटों का मुकुट पहना दिया। एक सरकंडा उसके हाथ में देकर मजाक करते हुए उसे यह कह कर सलाम करने लगे - ‘जय हो यहूदियों का राजा !’ उस सरकंडा को छीन कर उसी से उसके सिर पर मारे। इस मार से काँटों का मुकुट सिर और कपाल पर चुभ गए और लहू बह कर चेहरे और दाढ़ी को भिगों दिये।GCH 31.1

    दूतों के लिए इस दर्दनाक दृश्य को देखा न गया। यीशु को वे उसके शत्रुओं से छुड़ा सकते थे परन्तु उनका कप्तान के कहने पर कि यीशु को इसी तरह कष्ट उठा कर मनुष्यों के लिए उद्धार कमाना है, छोड़ दिए। यीशु को मालूम था कि दूतगण उसकी इस प्रकार की परिस्थिति से अवगत हैं। मैंने दर्शन में देखा कि एक कमजोर दूत भी यीशु को उन उग्रवादियों से छुड़ा सकता था। यीशु जानता था कि यदि पिता से अर्जी करता तो तुरन्त स्वर्गदूत उसे छुड़ाने के लिये दौड़े आते परन्तु मनुष्यों को बचाने के लिये जरूरत थी कि वह दुष्टों से दुःख कष्ट भोगे।GCH 31.2

    क्रोधित भीड़ के सामने यीशु दीन-हीन हो कर खड़ा था। उस पर नीच से नीचतर दोष लगाया जा रहा था। उन्होंने उसके चेहरे पर थूका। यही चेहरा से ईश्वर के नगर में उजियाला होगा औ उसी चेहरे की ज्योति को लोग एक दिन देख कर भागेगे और छिपेंगे, उसे वे नहीं जानते थे। इतने पर भी यीशु गुस्सा होकर उनकी ओर नहीं देखा। चुपचाप अपने हाथ से इसे पोंछ लिया। उन्होंने उसके वस्त्र से ही उसका चेहरा और आँखों को ढाँक कर मारा और पूछा - ‘बोलो किसने तुझे मारा।’ दूतों के बीच में सनसनी फैल गई। वे बचाना चाह रहे थे, पर फिर कप्तान दूत ने उन्हें मना किया।GCH 31.3

    यीशु का जहाँ न्याय हो रहा था वहाँ चेले जाकर देखना चाहते थे। वे आशा कर रहे थे कि यीशु अपनी दैवी शक्ति से अपने को दुश्मनों के हाथों से मुक्त कर लेगा। बुराई का बदला भी चुकायेगा, ऐसी आशा कर रहे थे। विभिन्न दृश्य को देखकर उनकी आशाएँ उठती गिरती थीं। कभी डर से ठगा जाने का धोखा खाते थे। उन्हें यीशु के रूपान्तर के समय जैतून पहाड़ से सुनाई दिया था - ‘यह मेरा प्रिय पुत्र है जिसकी तुम सुनो’ । इसको स्मरण कर अपना विश्वास को दृढ़ करते थे। यीशु के आश्चर्य कर्मों को याद करने लगे - ‘अँधों को आँख दिया था, बहिरों के कान खोले थे, भूतों को भूतग्रस्त लोगों से हटाया था, मुर्दो को जिलाया था, यहाँ तक कि आँधी-तूफान को भी बन्द किया था। इन्हें याद कर विश्वास नहीं हो रहा था कि यीशु मरेगा। वे आशा लगा कर देख रहे थे कि अपनी शक्ति दिखायेगा। अपनी डाँट से खून के प्यासे लोगों को खदेड़ेगा। एक बार यीशु ने मन्दिर के ओसारे में सर्राफों और जानवरों के बिक्रेताओं को खदेड़ दिया वैसा ही करने की आशा उसके चेले लगा रहे थे।GCH 32.1

    यीशु को धोखा देकर पकड़वाने के कारण यहूदा शर्म और पश्चाताप से नीरस हो उठा था। जब यीशु को ठट्ठा करते हुए देखा तो वह बहुत ही शर्मिन्दा हो उठा। वह रूपये-पैसे को यीशु से अधिक प्यार करता था। वह नहीं जानता था कि दुश्मन लोग यीशु को बेइज्जत कर इतना कठोर दुःख देंगे। वह सोचता था कि यीशु आश्चर्य रूप से उसके बीच से भाग जायेगा। जब उसने क्रोधित उग्रवादियों को न्यायालय में यीशु के खून का प्यासा देखा तो तुरन्त भीड़ के बीच आकर कहने लगा कि मैंने इस निर्दोष व्यक्ति को तुम्हारे हवाले किया है, इसे छोड़ दो। उसने उनके दिए हुए रूपये भी वापस कर दिये। इस बात को सुनकर पुरोहित लोग घृणा और घबड़ाहट में पड़ गए कि क्या करना होगा। वे लोगों को जनवाना नहीं चाहते थे कि यीशु का एक चेला के द्वारा उन्होंने उसे पकड़ा है। यीशु को चोर की तरह पकड़ कर गुप्त रूप से न्याय करने को छिपाना चाहते थे। पर यहूदा की स्वीकृति और दोषी होने का चेहरा से लोगों को पता चला कि घृणा के कारण ही यीशु को पकड़ा गया है। यहूदाज जोर से चिल्ला उठा कि यीशु निर्दोष है तो पुरोहित ने कहा - ‘इससे हमारा क्या आता जाता है, तू अपना देख लें’ । यीशु को वे अपने कब्जे से जाने देना नहीं चाहते थे यहूदा वेदना से परिपूर्ण था। जिन लोगों ने पैसे का लालच देकर यीशु को पकड़वाने कहा था, उसे उन्हीं लोगों के पैरों तले फेंक दिया। अपने मानसिक वेदना का बोझ और खूनी होने का डर से, बाहर जाकर अपने आप को फाँसी दे दिया।GCH 32.2

    उस भीड़ में यीशु के साथ सहानुभूति करने वाले बहुत थे। बहुत से प्रश्नों और दोषारोपण का कुछ भी उत्तर न देने से वे चकित थे। उस के चेहरे पर उसका कुछ प्रभाव नहीं दीख रहा था। वह चुपचाप और शान्त से खड़ा था। देखने वाले ताज्जूब कर रहे थे। उसका संयम, नियन्त्रित मुख और अनोखा सहनशीलता को देखकर न्यायालय में बैठे लोंगो के चरित्र से उसके चरित्र की तुलना कर कह रहे थे, कि यह तो उनसे बढ़कर है, यह तो एक राजा होने का गुण रखता है। अपराधी होने का कोई चिन्ह उसके चेहरे में नहीं दिखाई देता था। उसकी आँखें सामान्य रूप से दीखती थीं न झुकी हुई थी और न कोई सन्देह था। उसका कपाल चौड़ा और ऊपर उठा हुआ था। उसके चरित्र में दृढ़ता और नम्रता का सिद्धान्त भरा हुआ दिखाई देता था। उसका ८ गरज और सहनशीलता मनुष्य के समान नहीं था जिसे देख बहुत लोग काँप उठे। यहाँ तक कि हेरोद राजा और पिलातुस गवर्नर भी उसका ईश्वर जैसा महान चरित्र को देखकर ताज्जूब करने लगे।GCH 33.1

    पिलातुस को शुरू से ही मालूम था कि वह एक साधारण मनुष्य नहीं, पर एक उत्तम चरित्रवाला व्यक्ति है। उसने तो उसे बिल्कुल निर्दोष मान लिया था। जो दूतगण पिलातुस का इस विश्वास को तथा यीशु के प्रति उसकी सहानुभूति को देख रहे थे, सहम गये। उनमे से एक दूत उसकी पत्नी को स्वप्न में दर्शन दे कर कहा कि यह निर्दोष व्यक्ति है। इसके विरूद्ध कछ हानि करने का आदेश मत देना। तरन्त उसकी पत्नी ने एक व्यक्ति को पिलातुस के पास भेजा और बताया कि मैंने इसके विषय स्वप्न देखा है कि यह एक पवित्रजन है। दूत भीड़ को चीरते हुए यह समाचार देने के लिये पिलातुस के पास पहुँचा। इसको पढ़ कर वह डर गया। उसने सोचा कि इस व्यक्ति को कुछ नहीं करना है। यदि लोग यीशु को मार डालना चाहें तो मैं राजी नहीं हूँगा, पर बचाने की कोशिश करूंगा।GCH 34.1

    जब पिलातुस ने सुना कि हेरोद राजा यरूशलेम में है तो वह यीशु को उसी के पास भेज कर इस जटिल समस्या का समाः I न करने से अपने को बरी करना चाहा। उसने दोष लगाने वालों के साथ यीशु को उसके पास भेजा। हेरोद कठोर बन गया था। उसने यूहन्ना को कत्ल करवाया था और अभी तक उसका विवेक काम नहीं कर रहा था। वह यीशु के विषय सुना था कि बहुत बड़ा-बड़ा आश्चर्य काम करता है तो सोचने लगा कि हो सकता है यूहन्ना ही जीवित होकर आया है। उसका विवेक उसे दोषी ठहरा रहा था इसलिये वह डर कर काँपने लगा था। पिलातुस ने यीशु को हेरोद के पास भेजा था। हेरोद सोच रहा था कि पिलातुस इस काम से हेरोद की शक्ति, अधिकार और न्याय को सम्मान करता है। पहले इन दोनों में अनबन था पर इस काम से संधि I हुई। हेरोद यीशु को बहुत दिनों से देखना चाहता था। वह उसका कोई बड़ा आश्चर्य कर्म देख कर सन्तुष्ट होना चाहता था। पर यीशु उसकी इस बड़ी चाह को पूरा करने के लिये तैयार नहीं था। स्वर्गीय आश्चर्य कर्म तो सिर्फ दूसरों की मुक्ति के लिये करना था अपने लिये नहीं।GCH 34.2

    हेरोद और उसके दुश्मनों ने बहुत सवाल पूछे और दोष भी लगाये लेकिन उसने उनका कोई उत्तर नहीं दिया। जब यीशु हेरोद के सामने नीडर खड़ा था तो उसका आदर न करने के कारण वह उससे गुस्सा हुआ। वह अपने सिपाहियों के साथ मिल कर उसको बेइज्जत करने लगे। हेरोद भी यीशु का ईश्वर सरीखा महिमामय चेहरा को देख कर मुग्ध हो गया। वह भी उसे अपराधी ठहराने से डरा और फिर पिलातुस के पास भेजा।GCH 35.1

    शैतान और उसके बुरे दूत पिलातुस की परीक्षा कर रहे थे कि वह अपना अधिकार रखता है कि नहीं। उन्होंने उसे सलाह दी कि जब दूसरे लोग यीशु को दोषीगार ठहरा कर मार डालना चाहते हैं और उन्हें इजाजत नहीं देगा, तो उसे भी कोई आदर नहीं देगा, उसकी बात नहीं सुनेगा। उसे एक झूठा चरित्रवाला घोषित किया जायेगा। अपना अधिकार और शक्ति खोने के डर से वह यीशु को क्रूसघात करने के लिये राजी हुआ। बल्कि यीशु को खून करने का दोष को दोष लगाने वालों के ऊपर डाला। वे चिल्ला कर कहने लगे कि इस का दोष हमारे और हमारे बाल-बच्चों के ऊपर पड़े। पिलातुस अब तक अपना विवेक के अनुसार अपने को निर्दोष नहीं मान रहा था। अपना स्वार्थी इच्छा से तथा पृथ्वी पर आदर मान पाने के लालच से उसने एक निर्दोष व्यक्ति को मरने के लिये दुश्मनों के हाथ में सौंप दिया। यदि पिलातुस अपना विवेक के अनुसार चला होता तो यीशु को कोई कुछ नहीं कर सकता था।GCH 35.2

    यीशु को जब न्यायालय में दोष लगाने का काम चल रहा था तो बहुत लोगों के मन में विचार उठ रहा था कि जी उठने पर इसका क्या प्रभाव होगा ? बहुत लोग जो यीशु को उसकी परीक्षा और दुःख उठाने का समय से देख रहे थे, उनका विश्वास था कि वह ईश्वर का पुत्र है, और उसका चेला बनना स्वीकार करेंगे।GCH 36.1

    शैतान ने यीशु को दुःख देने के लिये पुरोहितों को क्रूरता से व्यवहार करने के लिये भड़काया था, पर उसने बिना कुडकुड़ाये सब सह लिया था। मैंने देखा कि यद्यपि यीशु मनुष्य का स्वभाव लेकर आया था फिर भी ईश्वर के समान उसमें सहनशीलता थी। इसलिये सब प्रकार के दुःख कष्टों को सहा, पर पिता की इच्छा को लेश मात्र भी नहीं तोड़ा।GCH 36.2

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    मत्ती २७ से आधारित है।
    GCH 36.3