पाठ १७ - महान धर्मपतन
मुझे दर्शन में दिखाया गया कि एक समय में हिन्दू मूर्तिपूजक क्रिश्चियनों को सताते थे और मृत्युदण्ड भी देते थे। खून की नदियाँ बहती थीं। बड़े लोग, विद्वान और सर्वसाधारण लोग सब बिना भेद-भाव और दया-माया से मारे जाते थे। धनी परिवार के लोगों को नया धर्म नहीं मानने के कारण दद्धि बनाये जाते थे। इतना सताहट और कष्ट झेलने के बावजूद भी वे क्रिश्चियन लोग अपने धर्म से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने अपना धर्म को शुद्ध रखा। मैंने देख कि शैतान परमेश्वर के लोगों को दुःख और कष्ट देने में विजयी हुआ और खुशी मनाने लगा। ईश्वर ने विश्वासी मर्तिरों को बहुत हमदर्दी से देखा और उस डरावना समय में जो जीते थे उनको कृपा की दृष्टि से देखा, क्योंकि वे उसके नाम के लिये दुःख झेलना पसन्द कर रहे थे। हर दुःख और कष्ट जो उन्हें सहना पड़ा तो उनके लिये स्वर्ग में इनाम की भी वृद्धि हुई। सन्तों के दुःख सहने से शैतान खुश तो था पर उसे सन्तोष नहीं मिला। वह मन और शरीर दोनों को वश में करना चाहता था। जिन क्रिश्चियनों को शारीरिक द:ख सहना पडा वे और भी अधिक यीश के नजदीक आये। उन्होंने दूसरों को भी उस रास्ते में चलने की प्रेरणा दी। मरने से ज्यादा डर यीशु की आज्ञा तोड़ने में था। शैतान ने उन्हें ईश्वर को नाखुश करने को कहा। यदि वे ऐसा करते तो अपनी शक्ति, दृढ़ता और सुरक्षा को खो देते। यद्यपि हजारों को कत्ल कर दिये जाते थे फिर भी उनके स्थान लेने के लिये हजारों की संख्या में आ जाते थे। यद्यपि वे सताहट और मृत्युदण्ड पा रहे थे तो भी यीशु के पीछे चलना बन्द नहीं करते थे और उनकी संख्या बढ़ती जाती थी, जहाँ शैतान की घट रही थी। इसे देख कर शैतान ईश्वर का राज्य का विरोध करने के लिये और कारगर उपाय सोचने लगा। उसने हिन्दू राजाओं को क्रिश्चियन धर्म ग्रहण करने के लिये तैयार किया। बिना मन उन्होंने यीशु का क्रूसघात, पुनरुत्थान पर विश्वास कर क्रिश्चियनों के साथ मिलने का बहाना किया। ईश्वर की मण्डली के लिए यह क्या ही भयंकर दिन हुआ। यह तो मानसिक वेदना थी। कुछ लोग सोचने लगे कि यदि वे आकर मूर्तिपूजकों से मिल जाएँ, जो कुछ अंश में क्रिश्चियन विश्वास को ग्रहण कर चुके हैं। तो वे सचमुच मन बदले हुए लोग होंगे। शैतान बाईबल की सिद्धातों को बर्बाद करने चाह रहा था। अन्त में मैंने देखा कि क्रिश्चियन धर्म का स्तर नीचे गिराया गया और हिन्दू लोग इसको ग्रहण करने लगे। वे तो मूर्तिपूजक थे और जब क्रिश्चियन हो गये तो मूर्तिपूजा करने की रीति साथ में ले आये। उन्होंने बड़ी सरलता से क्रिश्चियनों को अपनी मतलब को सिद्ध करने के लिये सन्तों की मूर्ति, यीशु की, और उसकी माता मरियम की मूर्ति पूजा करने को आरम्भ कर दिया। धीरे-धीरे क्रिश्चियन लोग उनसे मिल गए। ईसाई धर्म भ्रष्ट हो गया। मण्डली ने सभ्यता और शुद्धता खो दी। कुछ लोग उनसे मिलना इन्कार कर इसकी शुद्धता कायम कर ईश्वर ही की उपासना करने लगे। उन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी की कोई भी मूर्ति की उपासना नहीं की। पतित मण्डली के सदस्यों को देख कर शैतान खुशी मना रहा था। उसने इनको उन सच्चे धर्मपालन करने वालों के विरूद्ध भड़का कर कहा कि इन्हें भी उनकी रीति-विधि अनुसार मूर्ति की पूजा करनी है या तो मृत्यु दण्ड सहने के लिये तैयार होना है। सताहट की अग्नि तेज कर दी गई और ख्रीस्त की मण्डली को सताना आरम्भ कर दिया गया। लाखों क्रिश्चियनों को बेरहम से मौत के घाट उतारा गया।GCH 75.1
मेरे सामने इस तरह से दर्शाया गया। बहुत अधिक संख्या में हिन्दू मूर्तिपूजक लोग काला झंडा लेकर चल रहे थे जिसमें सूर्य, चाँद और तारों की छाप थी। इस दल के लोग बहुत भंयकर और गुस्से वाले जान पड़ते थे। मुझे एक दूसरा दल को दिखाया गया। जिनके पास श्वेत झंडे थे उसमें प्रभु के लिये शुद्धता और पवित्रता लिखा हुआ था। उनके चेहरे से दृढ़ता और बिना कुङ्कुड़ाए कष्ट सहने की झलक दिखाई दे रही थी। मैंने देखा कि हिन्दू मूर्तिपूजक वहाँ पहुँच कर भारी संख्या में मार डाले। क्रिश्चियन लोगों को बर्बाद कर दिया गया, परन्तु जो बचे थे वे एक साथ मिल कर आगे बढ़ते हुए खीस्त के झंडे तले आ गये। जब कुछ लोग मारे जाते थे तो उनकी जगह में सैकड़ों लोग उठ कर ख्रीस्त का झंडा को ऊँचा उठाते थे।GCH 77.1
मैंने देखा कि मूर्तिपूजकों का दल आपस में सलाह कर रहे थे। उन्होंने मसीहियों को अपनी बात मनवाने में सफलता नहीं पायीं इसलिये दूसरा उपाय सोचने लगे। मैंने देखा कि उन्होंने अपना झंडा को झुका कर सच्चे मसीहियों के पास आकर एक प्रस्ताव रखा। पहले तो उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद फिर मैंने देखा कि क्रिश्चियनों का दल आपस में सलाह करने लगे। कुछ लोगों ने कहा कि वे अपना झंडा को झुकाएँ और उनका प्रस्ताव को मान लें और अपने प्राणों को बचावें । अन्त में उन्होंने अपना झंडा को उनके बीच ऊपर उठाने में सफलता पाई। परन्तु कुछ लोगों ने इसे स्वीकार न कर दृढ़ता से यीशु की पवित्रता का झंडा ऊपर उठाये रखा। मैंने यह भी देखा कि बहुत सी क्रिश्चियन-कम्पनी ने अपना झंडा नीचे कर मूर्तिपूजकों को योग दिया। इस पर सच्चाई में स्थिर रहने वालों ने दृढ़ता से झंडा पकड़ कर उसे ऊँचा उठाये रखा। मैंने देखा कि सत्य का झंडा के नीचे रहना छोड़ कर लोग लगातार भागे जा रहे थे और मूर्तिपूजकों का दल में आकर काला झंडा के नीचे आ रहे थे। उन्होंने श्वेत झंडा के नीचे रहने वालों को मार डाला फिर भी कुछ लोगों ने सादा झंडा को ऊपर उठाये रखा और दूसरे लोग भी मदद के लिये चारो तरफ से आ गये।GCH 77.2
यहूदियों ने पहले हिन्दुओं को यीशु के विरूद्ध उसकाया था। वे भी इस दोष से वंचित न थे। न्यायालय में जब पिलातुस ने यीशु को दोष लगाने में हिचकिचाया तो यहूदियों ने गुस्सा से चिल्लाया - ‘उसका खून हमारे ऊपर और हमारे बच्चों पर लगेगा।’ यहूदी जातियों को इस अभिशाप की पीड़ा बाद में उठानी पड़ी। गैर मसीही लोग उनके दुश्मन बन गए। जो मसीही लोग यीशु के क्रूसघात पर ठोंके जाने चाहते थे कि यहदियों पर ईश्वर की ओर से भारी से भारी ताड़ना आवे। बहुत से अविश्वासी यहूदी मार डाले गये और कुछ इधर-उधर दूसरे देशों में तितर-बितर हो गए। उन्हें सब प्रकार की सजाएँ दी गई।GCH 78.1
यीशु का लोहू और जिन चेलों का खून उन्होंने बहाया था, उसका भंयकर प्रतिफल उन्हें मिला। ईश्वर का श्राप उन पर पड़ा। वे ईसाई और हिन्दुओं के द्वारा घृणित मजाक का कारण बन गए। वे दूसरों से अलग हो गये, नीच और घृणा का पात्र बन गए मानों वे कैन के वंशज हैं। फिर भी मैंने देखा कि ईश्वर ने इन्हें विचित्र ढंग से बचा के रखा। उन्हें जगत में चारों ओर फैला दिया। उन्हें ईश्वर की शापित जाति के रूप में देखा गया। मैंने देखा कि ईश्वर ने यहूदियों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित होने से छोड़ दिया था। फिर भी इनमें कुछ लोगों को उसने दिल का काला पर्दा फाड़ कर दूरदर्शी होने का मौका दिया। कुछ लोगों को अभी देख कर समझना बाकी है कि उनके विषय जो भविष्यवाणी लिखी गई थी सो पूरी हुई। वे अभी यीशु को जगत का उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करेगें। वे देख सकेंगे कि यीशु को ना करने और क्रूसघात करने का क्या बुरा नतीजा मिला। यहाँ-वहाँ एक दो यहूदी लोग मन बदलेंगे परन्तु एक राष्ट्र के रूप में तो सदा के लिए ईश्वर से त्याग दिए गए हैं।GCH 78.2
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इसका विस्तृत अध्ययन के लिए धर्मसुधार और खोज-पड़ताल अध्याय, शब्दकोष में देखें।GCH 79.1