विश्वास और ग्रहण
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विश्वास और ग्रहण
जब आप की अन्तर्चेतना पवित्र आत्मा से जाग्रत हो गई तो आपने पाप की कालुष- कालिमा का कुछ अंश देख लिए होंगे; उनकी शक्ति, उनके दुष्परिणाम, तज्जनित कष्ट आप कुछ समझ लिए होंगे;।आप उन पर घृणापूर्ण दृष्टि डालेंगे। तब आप यही समझ लेंगे कि पाप ने आप को ईश्वर से दूर फ़ेंक दिया था और दुभावनाएँ और दुवृत्तियाँ आप को जकडे हुए थीं। इस संग्राम में आप ने यह महसूस किया होगा कि पाप से बचने के लिए जितना तुमुल संघर्ष आप करते होंगे, उतनी दुर्बलता आप को अशक्त करती होगी। तब आप के उद्देश्य कुत्सित थे, हृदय कलुषित था। आप ने यह देखा होगा कि आप का जीवन स्वार्थ और पाप का विशाल जाल है। आप क्षमा-प्राप्त करने के लिए, स्वच्छ और विकारहीन होने के लिए, मुक्त और निष्पाप होने के लिए प्राणपन से विकल रहे होंगे। ऐसी अवस्था में कौन सी वस्तु सब से आवश्यक है? ईश्वर के साथ एकतान होने के लिए, उनके अनुरूप बनने के लिए--क्या करना उचित है?SC 39.1
ऐसी अवस्था में आप को शांति कि आवश्यकता है--स्वर्ग से क्षमा, शांति, और प्रेम का स्त्रोत यदि आकर आत्मा में उमड़ पड़े तो आप निर्द्धन्द्व हो जाएँ। इन वस्तुओं को मन खरीद नहीं सकता, विद्या-बुद्धि प्राप्त नहीं कर सकती, विवेक ला नहीं सकता। आप अपनी चेष्टाओं से ही इन्हें प्राप्त करने की कभी भी आशा कर नहीं कर सकते। किंतु ईश्वर इन वस्तुओं को आप को उपहार स्वरुप भेंट करते है,“बिन रुपये और बिन दाम।” यशायाह ५५:१। ये आप की ही हैं, बस अपने हाथ फैलाइए और इन्हें दोनों हाथों लूटिये। प्रभु ने कहा है,“तुम्हारे पाप चाहे लाही रंग के हो तोभी वे हिम की नाई उजले हो जाएंगे और चाहे लालरंग के हो तोभी वे ऊन के सरीखे हो जाएंगे” यशायाह १:१८। “मैं तुम को नया मन दूंगा और तुम्हारे भीतर नया आत्मा उपजाऊंगा।” यहेजकेल ३६:२६।SC 39.2
आपने अपने पापों को स्वीकार कर लिया है, और हृदय से उन्हें अलग कर दिया है। आपने अपने आप को ईश्वर को अर्पित कर देने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। बस, अब आप उनके समक्ष जाइये और उनसे कहिये, ये निश्चय आप को नवीन हृदय भी देंगे। अब आप विश्वास कीजिए कि उन्हों ने ऐसा इस लिए किया क्योंकि उन्होंने वचन दिया था। यही शिक्षा यीशु ने हमें इस संसार में आकर दी। जिन वरदानों के देने का वचन ईश्वर ने दिया है, वे वरदान हमें निश्चय प्राप्त होंगे। यीशु ने उन मरीजों को चंगा किया, जिन्हों ने यीशु की आरोग्यसाधक शक्तियों पर विश्वास किया। यीशु ने उन लोगों की मदद वैसी वस्तुओं में की जो देखी जा सकती थीं, और इस तरह उन लोगों के अंदर यह विश्वास भी जमाया कि यीशु ऐसी वस्तुओं में भी सहायता कर सकता है जो देखी नहीं जा सकतीं। अपने पापों की क्षमा कर देने की शक्ति की ओर लोगों का विश्वास पक्का किया। लकवा मारे हुए मनुष्य को जब यीशु ने आराम किया तो बीशुने कहा,“पर इस लिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथिवी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है (उसने झोले के मारे से कहा) उठ और अपनी खाट उठा कर अपने घर जा।” मति ९:६। यीशु के आश्यर्यजनक कार्यो का उल्लेख योहन ने भी किया है,“पर ये इस लिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है और विश्वास कर के उसके नामसे जीवन पाओ।” योहन २०:३१॥SC 39.3
सच्ची कसौटी यहाँ हे। यदि हम खीष्ट में बने रहे, तो हमारी भावनाएँ, हमारे विचार, और हमारे काम, परमेश्वर के पवित्र नियम कि आज्ञाओं में दर्शायी हुई उसकी इच्छा के साथ एकताल हो सकते हैं।SC 40.1
बाईबल में वर्णित सीधे-साधे चंगे करने के तरीकों से हम यही सीखते हैं कि पाप की क्षमा के लिए हमें किस प्रकार उन पर विश्वास करना चाहिये। बेतहसदा के पश्चाताप के रोगी की कहानी को ही लीजिये। वह दरिद्र रोगी निस्सहाय थी, बिल्कुल असमर्थ था। उसने अपने अंगों से अड़तीस साल से काम नहीं लिया था। फिर भी यीशु ने उससे कहा “उठ अपनी खाट उठा कर चल फिर।” गरीब मरीज यह कह सकता था,“प्रभु यदि आप मुझ में इतनी शक्ति भार दें कि अंग चलने फिरने लगें, तो आप कि आज्ञा सर-आँखों पर रख कर मानूं।” लेकिन नहीं, उसने ऐसा नहीं कहा। उसने यीशु के शब्दों पर पूरा विश्वास किया कि वह पूरी तरह चंगा हो गया है, और तुरंत उठ खड़ा हुआ। उसने चलने की इच्छा की, और वह सच्मुच चल भी पड़ा। वह यीशु की आज्ञा पा कर आज्ञा मानने को प्रवृत्त हुआ और ईश्वर ने उसे शक्तिसंपन्न किया। वह चंगा हो गया॥SC 40.2
उसी तरह आप एक पापी हैं। आप अपने विगत पापों का प्रायश्चित नहीं कर सकते, आप हृदय बदल कर पवित्र नहीं कर ले सकते। किन्तु ईश्वर ने खिष्ट के द्वारा इन सारे कार्यों को संपादित करने का वचन दिया है। आप उन की प्रतिज्ञा पर विश्वास कीजिए। अपने अपराध स्वीकार कर लीजिये और अपने आप को ईश्वर के पास समर्पण कर दीजिये। उन की सेवा करने की इच्छा कीजिए। जितने अंश में निश्चय होकर आप ये सारे काम करेंगे, ईश्वर उतनी ही शीघ्रता से अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। आप उनकी प्रतिज्ञा पर विश्वास कर लें--आप यह विश्वास कर लें कि आप के समस्त पाप क्षमा कर दिए और आप निर्मल, निष्कलंक हो गए--तो ईश्वर का वचन सर्वोशत: पूर्ण हो जायेगा। आप सचमुच पूर्ण हो उठेंगे। पक्षाघात-पीड़ित व्यक्त को जैसे खिष्ट ने चलने कि ताकत दे दी, क्योंकि उसने यीशु पर विश्वास किया, उसी तरह यदि आपने ईश्वर पर विश्वास किया तो बस आप को पूर्ण हो जाने की शक्ति मिल गई॥SC 41.1
आप अपनी पूर्णता के अनुभव के लिए ठहरीये नहीं; किन्तु वह उठिये, “मैं आप के वचन पर विश्वास करता हूँ। मैं इस लिए नहीं विश्वास करता हूँ क्योंकि मैं उसकी सत्यता का अनुभव कर रहा हूँ, वरण इस लिए विश्वास करता हूँ क्योंकि यह ईश्वर का वचन है॥”SC 41.2
यीशु कहता है, “जो कुछ तुम प्रार्थना करके मांग प्रतीति कर लो कि तुम्हें मिल गया और तुम्हारे लिए हो जाएगा।” मार्क ११:२४। इस वादा के साथ-साथ एक शर्त यह भी लगी है कि आप की प्रार्थना ईश्वर के इच्छानुसार हो, तभी, ऐसे नहीं। लेकिन ईश्वर की इच्छा तो यह है ही कि हमारे पाप धुल जाँय, हम उनके सुपुत्र हो जाँय और हम पवित्र जीवन यापन करने के योग्य बन जाँय। अतएव हम इन उत्तम उपहारों को माँग सकते हैं, और यह विश्वास कर सकते है कि ये उपहार हमें प्राप्त हो गए। और फिर ईश्वर को धन्य धन्य कह उठें कि ये उपहार वास्तव में हमें मिल गए। हम लोगों को तो यह अधिकार है कि हम यीशु के सम्मुख जाँय; और व्यवस्था के समक्ष बिनाशार्म और लोभ के डटे रहें। “सो अब जो मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतन्त्र कर दिया।” रोमी ८:१॥SC 41.3
अब से आप अपने मालिक नहीं, आप को कीमत चुका कर ख़रीदा गया है। “तुम्हारा छुटकारा चांदी सोने अर्थात नाशमान वस्तुओं के द्वारा नहीं, पर निर्दोष और निष्कलंक मेमने अर्थात मसीह के बहुमोल लोहू के द्वारा हुआ।” १ पितर १:१८, १६। ईश्वर पर भरोसा करने और विश्वास दृढ़ करने के सीधे से काम के कारण, पवित्र आत्मा आप के हृदय में नूतन जीवन भर देंगे, आप के प्राणों में नवीन स्फूर्ति छा जायेगी। आप तब ईश्वर के परिवार में एक नवीन शीशु की तरह आ जावेगे और ईश्वर आप को उतना ही प्यार करेंगे जितना वह और पुत्रों को करते हैं॥SC 42.1
अब जब आप ने अपने को यीशु को समर्पित कर दिया है, तो फिर उनसे अलग न होइये, उनसे दूर मत जाइये किंतु प्रतिदिन प्रार्थना कीजिए कि मैं खिष्ट का हूँ, मैंने अपने को उनके चरणों पर समर्पित किया। और उन से उनके आत्मा और अनुग्रह कि भावना किजिये। आत्म-समर्पण के द्वारा तथा ईश्वर पर विश्वास करने के कारण आप ईश्वर के पुत्र हो गए; अब आप को ईश्वर में ही जीवन यापन करना होगा। एक प्रेरित ने कहा है,“तो जैसे तुमने मसीह यीशु को प्रभु करके मान लिया है वैसे ही उसी में चलो।” कुलुस्सी २:६॥SC 42.2
कुछ लोगों कि यह धारणा है कि प्रभु की आशिष प्राप्त करने के पहले परीक्षार्थी के रूप में कुछ समय तक रहना और ईश्वर के समक्ष यह प्रमाणित कर देना कि सुधार हो गया है और अब शुद्ध हैं, बहुत आवश्यक है। किंतु नहीं, यह धारणा गलत है। वे लोग ईश्वर की कृपा और अनुग्रह अभी हो मांग सकते हैं। दुर्बलताओं में मदद देने के लिए ईश्वर का अनुग्रह अथवा खिष्ट के आत्मा को सहायता अनिवार्य है। क्योंकि इसके न रहने पर कुवासनाओं के विरुद्ध डटे रहना असंभव है। यीशु की तो इच्छा यही है कि हम लोग अपने वास्तविक नग्न रूपमें, अपनी यथार्थ अवस्था में, प पो निस्सहाय और परावलंबी रूप में ही उनके समक्ष जाँव। अपनी सारी दुर्बलताओं, मूर्खताओं, और पापों के साथ पश्चाताप करते हुए जा कर उनके पैरों पर गिर जाना हमारे लिए आवश्यक है। फिर तो उनकी महत्ता यही है कि अपने प्रेम के बाहु-पांश में वे हमें जकड लें, हमारे घावों पर महलम-पट्टी जगायें और सारी कुत्सित-भावनाओं को धोकर हमें निर्मल और पवित्र कर डालें॥SC 42.3
इस स्थान पर हजारों लोग असफल हुए हैं। वे यह विश्वास नहीं करते कि यीशु प्रत्येक व्यक्ति को अलग अलग क्षमा करते हैं। इन लोगों को ईश्वर के वचन पर अक्षरश; भरोसा नहीं। जिन लोगों ने ईश्वर की शर्ते पूरी की हैं, उन्हें तो यह अधिकार मिल गया है कि वे यह जान जाँय कि पाप एक एक करके क्षमा होता है। इस भ्रम को दूर कीजिये कि ईश्वर के वचन आप के लिए नहीं है। ये वचन प्रत्येक पश्चाताप में डूबें हुए पापी के लिए हैं। खीष्ट के द्वारा प्रचुर शक्ति और अनुग्रह रखे गए है ताकि सेवक-दूतों के द्वारा विश्वासी लोगों में संबल और शक्ति भर जाँय। चाहे कोई कितना भी गर्हित पापी क्यों न हो, वह इतना नीच नहीं कि यीशु की शक्ति, पवित्रता और शुचिता प्राप्त नहीं कर सकता। यीशु उनके लिए ही मरे; और वे ही उनसे वंचित रहें। वे तो ऐसे लोगों के पाप-पंक में लथपथ और गँदे कपडे उतार फेंकने, तथा उनकी जगह शुचिता के उज्ज्वल वस्त्र पहनाने को कब से तैयार बैठे हैं। वे तो कहते हैं, मरो नहीं, जीवित रहो॥SC 42.4
जिस तरह साधारण मनुष्य एक दूसरे के प्रति व्यवहार करते हैं, उस तरह ईश्वर हमारे प्रति व्यवहार नहीं करता। उसके विचार के मूल में करुना, प्रेम, और सच्ची सहानुभूति रहती है। वे हमेशा यह कहते है,“दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़ कर यहोवा की ओर फिरे और वह उस पर दया करेगा वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसकी क्षमा करेगा।” यशायाह ५५:७। “मैं ने तेरे अपराधों को कासी घटा के समान और तेरे पापों को बादल के समान मिटा दिया है।” यशायाह ४४:२२। “प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि जो मरे उस के मरने में मैं प्रसन्न नहीं होता इस लिए फिरो तब तुम जीते रहोगे।” याहजकेल १८:३२। ईश्वर ने जो वचन दिए हैं, उन्हें चुरा लेने को शैतान सदा तैयार हे। वह तो आप के हृदय को प्रतिभासित करनेवाली आशा और जीवन की प्रत्येक किरण को मिटा देने की चेष्टा में है। आप का कर्तव्य है कि आप उसे ऐसा करने से रोके। मोह से लिप्त कराने वाले उस शैतान की ओर ध्यान न दें। वरन आप यह कहें, “यीशु इस लिए मरे कि मैं अमर बनूं”। वे मुझे प्यार करते हैं और चाहते हैं कि मैं विनष्ट न होऊँ। मेरे एक परम दयामय पिता हैं। यद्यपि मैं ने उनके अनुग्रह को तिरस्कृत किया, उनके वरदानों को कौड़ी के तीन कर बिखेर फेंका, फिर भी मैं जाग्रत होऊँगा, और अपने पिता के पास जाकर कहूँगा कि “पिता मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरे देखते पाप किया है। अब इस लायक नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ मुझे अपने एक मजदुर की नाई लगा ले,” फिर वह दृष्टांत आप को बता देता हे कि पथ-भ्रष्ट का स्वागत कैसे होगा-- “वह अभी दूर ही था कि उसनके पिता ने उसे देख कर तरस खाया और दौड़ कर उसे गले लगाया और बहुत चूमा।”SC 43.1
यह दृष्टांत बड़ी कोमल और मार्मिक वेदना से भरा है, किंतु तौभी यह ईश्वर जैसा परमपिता की अनंत ममता और वात्सल्य भावना के निस्सीम रस को व्यक्त करने में असमर्थ है। अपने भविष्यवक्ता द्वारा ईश्वर ने यह घोषणा की हे, “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ इस कारण मैं ने तुझे करुणा कर के खींच लिया है।” यिर्मयाह ३१:३। और जब पापी के हृदय में ईश्वर के पास लौट चलने की जितनी भी विकलतायें आती हैं, उन में प्रत्येक ईश्वर की प्रेरणावश होती हैं; वे ईश्वर के अनुभव-विनय, प्रेमाकर्षण ही रहती हैं जो उसे अपने परमपिता के पास लौट चलने को कहती हैं॥SC 43.2
बाइबल की आशा से भरी ज्योति के रहते हुए भी क्या आप संशय के अंधकार में रहेंगे? क्या आप कभी ऐसा विश्वास करेंगे कि जब वह विचारा पापी अपने पापों से मुक्त होने और ईश्वर के पास लौट चलने के लिए व्याकुल रहेगा, तो ईश्वर उसे अपने पैसों में स्थान देने के बदले फटकार देगा? ऐसे विचारों को दूर बाहर कीजिए। ईश्वर जैसे परम करुणामय परम पिता की ऐसी मिथ्या धारणा बना कर आप अपनी आत्मा को सब से बुरी चोट पहुंचाते हैं। यह बात ठीक है कि वे पाप से घृणा करते हैं किंतु पापी को तो वे प्यार करते हैं। और उन्हों ने यीशु के रूप में अपने आप को इसी प्यार से समर्पित कर दिया ताकि जो कोई भी चाहे, मुक्त हो पाप और महिमामय स्वर्ग के राज्य में अनंत आनन्द का उपभोग करे। अपने प्रेम व्यक्त करने के लिए जैसे भाषा और जैसे शब्दों का व्यवहार उन्होंने कहा है,“क्या कोई स्त्री अपने दुधपिउवे बच्चे को ऐसा बिसरा सकती कि अपने उस जने हुए लडके पर दया न करे हा वह तो भूल तो सकती है पर मैं तुझे भूल नहीं सकता हूँ।” यशवाह ४६:१५॥SC 44.1
संशय में पड़े लोग! कम्पते हुए लोग! अपने सन्देह छोड़ो, जरा ऊपर देखो यीशु हमारी भलाई और मुक्ति के लिए जीवित है। ईश्वर को शत शत बार धन्य धन्य कहो क्योंकि उन्होंने अपने प्रिय-पुत्र दिये, और प्रार्थना यह करो कि उनका प्राणोत्स्यर्ग तुम्हारे लिए व्यर्थ का न हो। उन का आत्मा तुम्हें आज ही बुला रहा है। तुम अपने हृदय की सारी आकाँक्षा लेकर उनके पास चले आओ ओर तब तुम उनकी आशीषों का दावा कर सकते हो॥SC 44.2
ईश्वर के वचनों को मनन करते समय यह मत भूलिये कि उन्हों ने प्रेमसिक्त शब्दों में करूणद्र हृदय से ही सारी प्रतिज्ञा की है। असीम प्रेममय, दयासागर और करूणाकर प्रभु का हृदय पापी की ओर अनन्त ममता से आकृष्ट होता है। “हम को उस में उस के लोहू के द्वारा छुटकारा अर्थात अपराधों की क्षमा उस के उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है।” इफिसीस १:७। यह सच है। केवल दृढ़ विश्वास कीजिये कि ईश्वर ही आप का एक मात्र सहायक है। वह अपनी नैतिक प्रतिमूर्ति मनुष्य में पुन: स्थापित करना चाहता है। जैसे जैसे अपने पापों की स्वीकृति और उनके लिए प्रायश्चित करते हुए आप ईश्वर के पास पहूँचते जाइयेगा, वैसे ही वैसे ही वह भी अपनी करुणा और क्षमा के साथ आप के निकट पहुँचता जायेगा॥SC 44.3