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मसीही सेवकाई

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    कार्य पूर्ण करने के लिये साहस-सामर्थ के द्वारा आया

    नहेम्याह और अर्तक्षेत्र आमने-सामने खड़ेथे। जबकि एक सबसे निम्न जाति के, कुचले हुये लोगों में से एक सेवक था। और दूसरा उस समय के जगत के महान साम्राज्य का एक छत्र राजा था। किन्तु फिर भी एक-दूसरे से पूरी तरह से भिन्न होते हुये पद व गरिमा में अन्तर होने के साथ दोनों की नैतिकता एक-दूसरे से भिन्न थी। नेहम्याह ने राजाओं के राजा के निमंत्रण को स्वीकार किया “उसे मेरी सामर्थ को ले लेने दो ताकि वह मेरे साथ शांति स्थापित कर सके। उसने अपनी शान्त विनती कई हफतो से पिता से मांग रहा था कि परमेश्वर उसकी प्रार्थना पर गौर करें। और अब यह सोचकर उसकी हिम्मत बढ़ी कि अब उसके पास एक सर्वज्ञानी सब्यापी मित्र है जो उसके अदले कार्य करेगा, इस प्रभु के सेवक ने राजा को अपनी इच्छा जाहिर की कि वह उसके सामने से कुछ समय के लिये छोड़ दिया। जाये और साथ ही उसे यह अधिकार दिया जाये की येरूशेलेम को बिगड़ी दशा को सुधारे और उसे फिर से एक ताकतवर, सामर्थी नगर बना दे। और इसी विनती पर इस यहूदी शहर का और यहूदा का महत्वपूर्ण परिणाम आधारित था। और नहेम्याह आगे कहना हे, राजा ने मेरी बातमानी क्योंकि मुझ पर मेरे परमेश्वर का आशिषमय हाथ था। (द सदर्न वॉचमेन 08 मार्च 1904)ChsHin 237.2

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