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मसीही सेवकाई

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    आत्मिक अंधकार

    दुनिया भर की कलीसियायें आज आत्मिक अंधकार से ग्रसित हैं। परमेश्वर और परमेश्वर की सच्चाई से अभी भी काफी लोग अंजान हैं। इन दोनों की जानकारी न होने से वे न तो स्वर्गीय वस्तुओं, न ही परमेश्वर और उसकी सच्चाई के करीब हैं। ये चीजें उनसे दूर हैं, षैतान की ताकत इन सब के विरूद्ध इकट्ठा हो रही है। पैतान अपने साथियों को चापलूसी करते हुये कहता है कि मैं कुछ ऐसा करूँगा कि पूरा संसार मेरी कैद में होगा। जबकि कुछ कलीसियाओं में लोग निश्क्रिय हो गये हैं वहीं पैतान और उसके लोग सरगर्म हैं सक्रिय हैं, प्रशिक्षित व सुदृढ़ कलीसियायें दुनिया के लोगों में बदलाव लाने में असमर्थ हैं, क्योंकि वे स्वयं स्वार्थ और भ्रश्टाचार में फंसे हुये हैं, उन्हें स्वयं को पहले परमेश्वर की परिवर्तनशील षक्ति की बहुतायत से जरूरत है ताकि वे अन्य लोगों को परमेश्वर की पवित्रता और ऊँचे स्तर तक पहुँचा सकें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 9:65)ChsHin 73.1

    । आज हमारे समय में, प्राचीन समय के समान परमेश्वर की महान सच्चाई के वचन से लोग दूर हो मानवीय सिद्धान्त और दूरदर्शिता में ज्यादा ध्यान देने लगे है। परमेश्वर के वचन से पूर्ण विद्वान भी सूसमाचार को जो पवित्र आत्मा से प्रेरणा पाकर लिखी गई बाइबल को स्वीकार नहीं करते हैं। एक विद्वान किसी एक भाग को तो दसरा विद्वान बाइबल के अन्य भाग पर प्रष्न उठाता है। वे अपने स्वयं के निर्णय को परमेष्वर के वचन से ऊपर रखते हैं, और जो वचन वे सिखाते हैं, वह प्रभु का नहीं किन्तु उन्हीं का होता है। वचन की स्वर्गीय सत्यता को वे बिगाड देते हैं। और इस प्रकार अनाज्ञाकारियों का बीज बोया जाता है, जो फैल जाता है क्योंकि कई लोग विचलित होते हैं, उन्हें यही पता नहीं होता कि किस पर विश्वास करें। और ऐसे कई विश्वास हैं जिन्हें सोच-समझकर अपनाया नहीं जाता लोग वैसे ही मान लेते हैं। (क्राइस्ट ऑब्जेक्ट लैसन्स- 39)ChsHin 73.2

    दुश्टता अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई है, तब भी कई मिशनरी प्रचारक “शान्ति और सुरक्षा’ की बात करते हैं, किन्तु परमेश्वर के सच्चे सेवक व सच्चे संदेश वाहक सीधे मार्ग पर चलते हुये अपना काम कर रहे हैं। धार्मिकता एक पवित्र वस्त्र पहनें हुये उन्हें निडर होकर सफलतापूर्वक हरेक आत्मा जब तक जीत नहीं ली जाती और हर व्यक्ति तक सच्चाई का संदेश पहुँच नहीं जाता, तब तक आगे बढ़ते चले जाना है। (द एक्ट ऑफ अपॉस्टल- 1:220) ChsHin 73.3

    आज के धार्मिक जगत की दशा देखते हुये उनके लिये खतरे का कारण नज़र आ रहा है। परमेश्वर की दया उन पर से उठ गई है, करोड़ों लोग यहोवा के आज्ञाओं का उल्लंघन कर रहे हैं, परमेश्वर की शिक्षा के रूप में मनुश्यों की आज्ञा मानना सिखा रहे हैं। हमारी पथ्वी भर की कलीसियाओं ने परमेश्वर के नियम त्याग कर आज्ञा नहीं मानी है। सिर्फ अनाज्ञाकारिता ही नहीं बल्कि पूरी बाइबल का खुला इंकार करते और ऐसा वे मसीहियत के वेष में रहते हुये करते हैं अर्थात स्वयं को धोखा देते हैं कि वे मसीही हैं, पर होते नहीं उनका विश्वास बाइबल में कम होता है, जैसे प्रकाशित वाक्य में परमेश्वर ने बताया है। पूर्ण समर्पण एवं कट्टर धार्मिकता के स्थान पर खाली दिखावा मात्र प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप अधर्म एवं सांसारिक सुख की लालसा बढ़ती जा रही है। प्रभु यीशु ने घोशणा की थी, “जैसा कि नूह के दिनों में होता था कृकृकृकृकृकृकृकृकृकृ वैसा अब भी होगा। जब मनुश्य के पुत्र का आगमन होगा।’ दैनिक जीवन में होने वाली घटनायें इस बात का सबूत दे रही हैं कि जो वचन प्रभु ने कहा था वह पूरा हो रहा है। जगत विनाश की ओर बढ़ रहा है। षीघ्र ही परमेश्वर का न्याय सब पर आ पड़ेगा, तब पाप और पापी दोनों ही जलकर भस्म हो जायेंगे। (पेट्रियाक्स एण्ड प्रोफेट्स- 166)ChsHin 74.1