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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 31—नादाब और अबीहू का पाप

    यह अध्याय लैवव्यवस्था 10:1-11 पर आधारित है

    पवित्र मण्डप के उत्सर्ग पश्चात, याजकों को उनके पवित्र कार्य के लिये अभिषिकक्‍त किया गया। इन धर्मकियाओं में सात दिन का समय लगा और प्रत्येक पर विशेष अनुष्ठान किया गया। आठवें दिन याजकोंने अपनी परिचर्या प्रारम्भ की।PPHin 361.1

    हारूनऔर उसके पुत्रोंकीसहायता सेपरमेश्वर द्वारा अपेक्षित बलि की भेंट चढ़ाई और परमेश्वर ने उसकी भेंट को स्वीकार किया, और अपनी महिमा को विशिष्ट रूप से प्रकट किया, परमेश्वर की ओर से अग्नि प्रवाहित हुई और वेदी पर चढ़ाई भेंट को उसने भस्म कर दिया।लोगइस ईश्वरीय सामार्थ्य केआश्चर्यजनक प्रदर्शनों को अत्यन्त रूचि से देखते रहे। उन्होंने इसमें परमेश्वर की महिमा और कृपा-दृष्टि का प्रतीक देखा और उन्होंने एक साथ मिलकर उसकी स्तुति और आराधना की, और उन्‍होंने ऐसे दण्डवत किया मानो वे परमेश्वर की प्रत्यक्ष उपस्थिति में हो।PPHin 361.2

    लेकिन इसके बाद शीघ्र ही महायाजक के परिवार पर एक आकस्मिक और भयानक विपत्ति आ पड़ी। आराधना के समय, जब लोगों की प्रार्थनाएं और स्तुति परमेश्वर की ओर उठ रही थी, हारून के पुत्रों में से दो ने एक-एक धूपदान लिया और उसमें सुगन्धित लोबान जला दिया, ताकि वह परमेश्वर के सम्मुख मनभावनी सुगन्ध के रूप में फैल जाए, लेकिन उन्होंने “ऊपरी आग” का प्रयोग करके परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया। लोबान को जलाने के लिये उन्होंने परमेश्वर द्वारा स्वयं प्रजजलित की गईं पवित्र अग्नि के स्थान पर सामान्य अग्नि का प्रयोग किया जबकि परमेश्वर का आदेश था कि इस कार्य के लिये उसी के द्वारा प्रज्जलित अग्नि का प्रयोग किया जाए। इस पाप के फलस्वरूप यहोवा के सम्मुख से आग निकली और वे लोगों के सामने ही भस्म हो गए। मूसा और हारून के बाद, नादाब और अबीहू को इज़राइल में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त था। पर्वत पर सत्तर पुरनियों के साथ महिमा का दर्शन करने की अनुमति देकर, परमेश्वर ने विशेष रूप से उन्हें सम्मानीय ठहराया था। लेकिन उनके द्वारा आज्ञा के उल्‍लघंन को ना ही अनदेखा किया जा सकता था और ना ही हल्के में लिया जा सकता था। इस कारण उनका अपराध और भी संगीन माना गया। क्‍योंकि मनुष्य ने अधिक प्रकाशप्राप्त किया, क्योंकि इज़राइल के राजक॒मारों के समान वे पर्वत पर चढ़े और उन्हें परमेश्वर के साथ संगति करने का व उसकी महिमा के प्रकाश वास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उन्हें स्वयं को इस बात से प्रसन्‍न नहीं करना चाहिये कि वे बाद में बिना दण्ड पाए पाप कर सकते हैं और कि उन्हें इस प्रकार सम्मानित करने के बाद, परमेश्वर उनके अधर्म को दण्डित करने के लिये कठोर नहीं होगा। यह एक घातक छलावा है। प्रदत्त प्रकाश व विशेषाधिकार वापसी में, दिये गए प्रकाश के तदानुसार पवित्रता और सदाचार की अपेक्षा करते हैं। इससे थोड़ा भी कम, परमेश्वर स्वीकार नहीं कर सकता। महान आशीषों या विशेषाधिकारों के कारण निर्भयता या असावधानी को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिये। इन्हें कभी भी मनुष्य को पाप करने का अधिकार नहीं देना चाहिये और ना ही प्राप्तकर्ता को यह आभासकराना चाहिये कि परमेश्वर उनके साथ खुश न होगा। परमेश्वर द्वारा दिये गये सभी सुअवसर, आत्मा में उत्साह, प्रयत्न में तत्परता और उसकी इच्छापूर्ति के लिये जोश भरने का उसका साधन है।PPHin 361.3

    नादाब और अबीहू को उनकी किशोरावस्था में आत्म-संयम के अभ्यास में प्रशिक्षित नहीं किया गया था। पिता के सुनम्य स्वभाव, सत्य के लिये उसमेंदृढ़ता के अभाव के कारण उसने अपने बच्चों के अनुशासन की उपेक्षा की। उसके पुत्रों को प्रवृति का अनुसरण की अनुमति दे दी गईं थी। लम्बे समय से पोषित असंयम की आदतें ने उन पर ऐसी पकड़ प्राप्त की कि उन्हें समाप्त करने की शक्ति सबसे पवित्र कार्यभार के उत्तरदायित्व में भी नहीं थी। उन्हें पिता के आधिपत्य का आदर करना नहीं सिखाया गयाथा, और वे परमेश्वर की अपेक्षाओं के प्रति सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की आवश्यकता को नहीं समझ पाए। हारून के गलत समझे हुए दयालुतापूर्ण व्यवहार ने उसके पुत्रों को पवित्र दण्डाज्ञा के अधीनस्थ बनने के लिये तैयार कर दिया। PPHin 362.1

    परमेश्वर की योजना लोगों को यह सिखाने की थी कि वे आदर और श्रद्धायुक्त भय के साथ और उसके द्वारा नियुक्त तरीके से उसके पास आएँ। वह आंशिक आज्ञापरता स्वीकार नहीं कर सकता। उसकी आराधना की पावन घड़ी में लगभग सब कुछ उसके निर्दशानुसार सम्पन्न करना पर्याप्त नहीं था। परमेश्वर ने उसकी आज्ञाओं का तिरस्कार करने वालों को शापित किया है और उन्हें भी जो सामान्य व पवित्र वस्तुओं में अन्तर नहीं करते। वह नबी द्वारा घोषणा करता है, “हाय उन पर जो भले को बुरा और बुरे को भला कहते, जो अंधियारे को उजियाला और उजियाला को अँधियारा ठहराते। हाय उन पर जो अपनी दृष्टि में ज्ञानी और अपने दृष्टिकोण से बुद्धिमान है।....................जो घूस लेकर दुष्टों को निर्दोष, और निर्दोषों को दोषी ठहराते हैं।...............उन्होंने सेनाओं के यहोवा की व्यवस्था को त्यक्त कर दिया, और इज़राइल के पवित्र परमेश्वर के वचन को तुच्छ जाना है ।”- यशायाह 5:20-24।किसी को भी इस धारणा से स्वयं को छलावा नहीं देना चाहिये कि परमेश्वर की आज्ञाओं का कुछ अंश आवश्यक नहीं है या यह कि वह जिसकी अपेक्षा करता है, उसके लिये प्रतिरूप को स्वीकार कर लेगा। विलापगीत 3:37 में यिर्मयाह नबी ने कहा, “यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए?” परमेश्वर ने अपने वचन में कोई ऐसा आदेश नहीं दिया जिसका मनुष्य अपनी इच्छानुसार पालन या अवमानना करे और परिणाम न भुगते। यदि मनुष्य सम्पूर्ण आज्ञापरता से अलग कोई और मार्ग चुनते है, तो वे पाएंगे कि, “अन्त में मृत्यु ही मिलती है ।” - (नीतिवचन14:12)PPHin 362.2

    “मूसा ने हारून से और उसके पुत्र एलआजर और ईतामार से कहा, तुम लोग अपने सिरों के बाल मत बिखराओं, और न ही अपने वस्त्रों को फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ............क्योंकि यहोवा के अभिषेक का तेल तुमपर लगा हुआ है।’ महान अगुवे ने अपने भाई को परमेश्वर का कहा स्मरण कराया, “जो मेरे समीप आए, अवश्य है कि वह मुझे पवित्र जाने, और सभी लोगों के समाने मेरी महिमा करें ।’ हारून चुप था। उसके पुत्रों की मृत्यु, जो इतने भयानक अपराध के कारण, बिना चेतावनी के भस्म कर दिये गए-- उस पाप ने जो अब उसे अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने का परिणाम प्रतीत हुआ-पिता के हृदय को वेदना से भर दिया, लेकिन उसने अपनी भावनाओं का अभिव्यक्त नहीं किया। किसी भी प्रकार के शोक-प्रदर्शन से यह नहीं लगना चाहिये थाकि वह पाप के प्रति सहानुभूति दिखा रहा था। कलीसिया को परमेश्वर के विरूद्ध बड़बड़ाने का अवसर नहीं देना था।PPHin 363.1

    प्रभु अपनी प्रजा को उसके सुधारों की न्यायसंगतता को स्वीकार करना सिखाना चाहता था, ताकि अन्य लोगों में भय उत्पन्न हो। इज़राइल में कुछ ऐसे लोग थे जिन्हें, इस भयावह दण्डाज्ञा की चेतावनी, परमेश्वर की सहिष्णुता पर परिकल्पना से बचा सकती थी नही तो वे भी अपने अन्त को स्वयं ही निश्चित कर लेते। पवित्र ताड़ना उसके लिये है जो पापी के लिये झूठी सहानुभूति रखता है, जो पापी के पाप को क्षमा कर देने की चेष्ठा करता है। पाप का प्रभाव नैतिक अनुभूति को शिथिल कर देता है, जिससे अपराधी को अपने पाप की जघन्यता का एहसास नहीं होता और पवित्र आत्मा को दोषविभावक शक्ति के अभाव में वह अपने पाप के प्रति आंशिक रूप से अँधा बना रहता है। यह मसीह के कार्यकर्ताओं का कर्तव्य है कि वे गलतियाँ करने वालों को उन पर मण्डरा रहे संकट से अवगत कराएँ। पाप के परिणामों और वास्तविक स्वभाव के प्रति पापी की आंखो को अन्धा करके, जो व्यक्ति इस चेतावनी के प्रभाव को नष्ट करता है, वह स्वयं को संतोष दिलाता है कि ऐसा करके वह अपनी उदारता को प्रमाणित करता है, लेकिन ऐसे लोग परमेश्वर के पवित्र आत्मा के कार्य को बाधित करने और उसका विरोध करने के लिये प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत रहे हैं, वे पापी को सर्वनाश के कगार पर जा कर ठहरने को बहकाते है, वे स्वयं को उसके अपराध में भागीदार बना रहे हैं, और उसकी पश्चतापहीनता के लिये स्वयं को बुरी तरह से उत्तरदायी बना रहे हैं। कई लोग इस प्रकार की झूठी व भ्रमकारी सहानुभूति के कारण विनाश को प्राप्त हुए हैं ।नादाब और अबीहू ने यह घातक अपराध कभी नहीं किया होता यदि वे मदिरा के अनियन्त्रित सेवन से पहली बार आंशिक रूप से मदहोश न हुए होते। वे भली-भांति समझते थे कि मिलाववाले तम्बू में, जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति प्रकट होती थी, स्वयं को प्रस्तुत करने से पहले संस्कारपूर्ण व कर्तव्यनिष्ठ तैयारी आवश्यक थी, लेकिन अपने असंयम के कारण वे अपने हो गए और उनका नैतिक दृष्टिकोण संवेदनाशून्य हो गया जिससे वे सामान्य और पवित्र के बीच के अन्तर को नहीं देख पाए। हारून और उसके उत्तरजीवी पुत्रों को चेतावनी दी गई, “जब-जब तू या तेरे पुत्र मिलापवाले तम्बू में आएँ तब-तब तुम में से कोई न तो दाखमधु पिये और न ही किसी प्रकार की मदिरा, कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ, तुम्हारी पीढ़ी में यह प्रचलित रहे, जिससे तुम पवित्र और अपवित्र में, और शुद्ध और अशुद्ध में अन्तर कर सको, और इज़राइलियों को उन सब विधियों को सिखा सको, जो यहावा ने मूसा के द्वारा उन्हें बताई है।” मादक पेय के सेवन के प्रभाव से शरीर दुर्बल हो जाता है, मन किकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और नैतिकता का पतन हो जाता है। यह, मनुष्य को पवित्र वस्तुओं की धार्मिकता का या परमेश्वर की अपेक्षाओं की बन्धन्कारी शक्ति का एहसास होने से रोकते हैं। जो भी पवित्र उत्तरदायित्व के पदों पर आसीन थे उन्हें पूर्णतया आत्मसंयमी पुरूष होना था ताकि उनका विवेक सत्य और असत्य के बीच स्पष्टता से अन्तर कर सके, ताकि वे सिद्धान्तों के पक्‍के हों और उनमें दया दिखाये और न्याय करने की बुद्धिमता हो।PPHin 363.2

    मसीह के प्रत्येक अनुयायी का यह नैतिक कर्तव्य है। प्रेरित पतरस कहता है, “तुम एक चुना हुआ वंश, और राजपदधारी याजको का समाज, और पवित्र लोग और परमेश्वर की निज प्रजा हो ।”-1 पतरस 2:9 । परमेश्वर हमसे अपेक्षा करता है कि हम अपनी प्रत्येक क्षमता को यथासम्भव उत्तम अवस्था में संरक्षित रखे, ताकि हम अपने सृष्टिकर्ता को स्वीकारयोग्य सेवा दे सकें। जब मादक पदार्थ प्रयोग में लाए जाते है, तो उनका प्रभाव भी वैसा ही होगा जैसा इज़राइल के याजकों का हुआ था।PPHin 364.1

    अन्तरात्मा को पाप की अनुभूति नहीं होगी, और अधर्म की स्थिति में पहुँचाने तक दृढीकरण की प्रक्रिया निश्चित है जब तक सामान्य और पवित्र में महत्वपूर्णता का भेद सामप्त हो जाएगा। फिर हम ईश्वरीय अपेक्षाओं के मानक पर कैसे खरे उतर सकते हैं?” 1 कुरिन्थियों 6:10,20 में लिखा है, “क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मन्दिर है, जो तुम में बसा हुआ है, और तुम्हे परमेश्वर की ओर से मिला हुआ है। और तुम अपने नहीं हो, क्योंकि तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।”-1 कुरिन्थियों 6:19,20 । “इसलिये तुम चाहे खाओ, चाहे पियो, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करों।”-4 कुरिन्थियों 10:31। प्रत्येक युग में मसीह की कलीसिया को यह भयावह व गम्भीर चेतावनी दी गईं है, “यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को भ्रष्ट करेगा तो परमेश्वर उसे नष्ट करेगा, क्‍योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।”PPHin 364.2