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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 6—शेत और हनोक

    यह अध्याय उत्पत्ति 4:25 से 6:2 पर आधारित है।

    आदम को एक और पुत्र दिया गया जिसे धर्म सम्बन्धी जन्मसिद्ध अधिकार और पवित्र प्रतीज्ञा का उत्तराधिकारी होना था। इस पुत्र को दिए गएनाम ‘शेत’ का अर्थ था “नियुक्त” या “इनाम” क्योंकि उसकी माँ ने कहा, परमेश्वर ने मेरे हाबिल के स्थान पर, जिसको कैन ने घात किया, एक और वंश ठहरा दिया। शेत का डील-डौल कैन और हाबिल से अधिक प्रभावशाली था और आदम के अन्य पुत्रों के तुल्य शेत और आदम में अधिक समानता थी। हाबिल का अनुसरण करते हुए, वह एक गुणवान पुरूष था। लेकन उसने भी कैन से ज्यादा स्वाभाविक अच्छाई नहीं पाई। आदम की सृष्टि के बारे में कहा जाता है, “परमेश्वर ने उसे अपने स्वरूप में बनाया” पर पतन के पश्चात “मनुष्य ने पुत्र को जन्म दिया, अपने स्वरूप में, अपनी तरह ।” आदम की सृष्टि निष्पाप रूप में हुई थी-परमेश्वर के स्वरूप में-लेकिन शेत को, कैन की तरह अपने माता-पिता का पतित स्वभाव विरासत में मिला। लेकिन उसने भी उद्धारकर्ता का ज्ञान और धार्मिकता की शिक्षा ग्रहण की। पवित्र अनुग्रह द्वारा वह परमेश्वर का आदर-सत्कार करता था, और उसने सृष्टिकर्ता की आज्ञा मानने और उसका आदर करने हेतु पापी मनुष्यों का मन परिवर्तन करने के लिये श्रम किया, जैसा कि हाबिल भी जीवित होने पर करता । PPHin 70.1

    “और शैतान के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसने उसका नाम एनोश रखा, उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे। “निष्ठावानों ने पहले भी परमेश्वर की आराधना की थी, लेकन जनसंख्या के बढ़ने पर दो वर्गोके बीच भिन्‍नता और स्पष्ट हो गई। एक की ओर से परमेश्वर के प्रति प्रत्यक्ष निष्ठा की अभिव्यक्ति थी और दूसरे की ओर से घृणा और अवज्ञा का भाव प्रदर्शित होता था।PPHin 70.2

    पतन से पूर्व हमारे प्रथण अभिभावक अदन में स्थापित किए हुए सबत का पालन करते थे और अदन की वाटिका से निष्कासित होने के बाद भी उसका अनुपालन करते रहे। उन्होंने अवज्ञा के कड़वे फलों का अनुभव किया था और सीखा था, जो परमेश्वर की आज्ञाओं का तिरस्कार करने वाला आज नहीं तो कल सीखेगा, कि ईश्वरीय आज्ञाएं पवित्र और अपरिवर्तनीय है और आज्ञा उललघंन की दण्डाज्ञा निश्चय ही दी जाएगी। आदम के सभी बाल-बच्चों ने, जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान थे, सबत को मान्यता दी। लेकिन कैन और उसके वंश ने परमेश्वर के विश्राम दिन का आदर नहीं किया। उन्होंने श्रम और विश्राम दिन का आदर नहीं किया। उन्होंने श्रम और विश्राम का समय स्वयं निर्धारित किया और परमेश्वर की सुस्पष्ट आज्ञा का अपमान किया। PPHin 70.3

    परमेश्वर द्वारा शापित होने के पश्चात्‌, कैन अपने पिता के परिवार से अलग हो गया। पहले उसने किसान का व्यवसाय चुना था, और अब उसने एक शहर स्थापित किया और उसे अपने ज्येष्ठ पुत्र का नाम दिया। वह परमेश्वर की उपस्थिति से दूर चला गया था, पुनः स्थापित अदन सम्बन्धित प्रतीज्ञा को उसने अस्वीकार कर दिया और पाप से शापित धरती में अपनी सम्पत्ति और आनन्द को दूढने निकल पड़ा था। इस तरहवह मनुष्यों के उस वर्ग का मुखिया बन गया जो इस संसार के देवता की आराधना करते है। उसके वंशजो ने सांसारिक व वस्तुगत प्रगति सम्बन्धित विषयों में विशिष्टता पाई । लेकिन वे परमेश्वर के प्रति उदासीन थे और मानव के लिये उसके उद्देश्यों के विरूद्ध थे। कैन ने सबसे पहले हत्या का अपराध किया था और लेमेक, जो पॉँचवी पीढ़ी का था, उसने अपराध की सूची में बहुविवाह की प्रथा को जोड़ दिया और अंहकारी उपेक्षापूर्ण होने के बावजूद, परमेश्वर को सिफ॑ इसलिये स्वीकार किया कि वह कैन में सम्बन्धित प्रतिशोध से अपनी सुरक्षा का आश्वासन पा सके। हाबिल ने चारागाही जीवन बिताया था और वह तम्बू में रहता था, शेत के वंश ने भी ऐसा ही किया, क्योंकि स्वयं को “पृथ्वी पर अजनाबी और तीर्थयात्री” मानते हुए वे “एक श्रेष्ठतर पवित्र देश” की प्रतीक्षा में थे। इब्रानियों 11:13,16PPHin 71.1

    कुछ समय तक दोनों वर्ग अलग रहे। अपने पहले वास से फैलकर, कैन का कूल, वहां तितर-बितर हे गया जहां शेत के वंशज रहा करते थे। दूसरे वर्ग, पहले वर्ग के दुष्प्रभाव से बचने के लिए पहाड़ो में चला गया और वहीं पर बस गया। जब तक वे अलग रहे, वे पवित्रता में परमेश्वर की आराधना करते रहे। लेकिन समय बीतने पर, धीमे-धीमे वे घाटी के निवासियों के साथ मेल-जोल बढ़ाने लगे। इस संगति का परिणाम अत्यन्त बुरा हुआ। “परमेश्वर के पुत्रों में मनुष्य की पुत्रियों को देखा कि वे सुन्दर थी ।” शेत के पुत्र, कैन के वंशजो की पुत्रियों की सुन्दरता से आकर्षित होकर उनके साथ अन्तरजीय विवाह के बंधन में बंध गये जिससे परमेश्वर अप्रसन्‍न हुआ। उन प्रलोभनो के माध्यम से जो लगातार उनके सामने थे, परमेश्वर के आराध्य पाप में पड़ गए और अपने पवित्र चरित्र को खो बैठे। दुष्टों की संगति में वे भी भावनाओं और कर्मो में उन्हीं की तरह हो गए। सातवीं आज्ञा के प्रतिबन्ध की अपेक्षा कर, “उन्होंने स्वयं की इच्छा अनुसार अपने लिए पत्नियों का चयन किया।” शेत के पुत्र ‘कैन के रास्ते! पर चलने लगे। उन्होंने सांसारिक सम्पन्तता और भोग-विलास में अपने मन को स्थिर कर दिया और परमेश्वर की आज्ञाओं की उपेक्षा की। पुरूष “अपने ज्ञान में परमेश्वर को स्थान नहीं देना चाहते थे” “वे व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उनका मूर्ख मन अन्धकारपूर्णहो गया””-रोमियो 1:21। इस कारण “परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करे”। पाप धरती पर घातक कोड़ की तरह फैल गया। PPHin 71.2

    लगभग एक हजार वर्षों तक, आदम मनुष्यों के बीच पाप के परिणामों का साक्षी बन कर रहा। बड़ी निष्ठा से वह पाप के समुद्र को बाँधने का प्रयत्न करता रहा। उसे आदेश दियागया था कि वह अपने वंशजो को परमेश्वर के बताए मार्ग की शिक्षा दे, और उसने अपने वंश परमेश्वर द्वारा प्रकाशित बातों को ध्यानपूर्वक संभाल कर रखा था और हर पीढ़ी के समक्ष दोहराया था। नवीं पीढ़ी तक, अपने बच्चे व उनके बच्चों को उसने अदन में मनुष्य के पवित्र और खुशहाल निवास का वर्णन किया, उसके पतन के इतिहास को दोहराया। उसने उन्हें उन विपदाओं के बारे में बताया जिनके द्वारा परमेश्वर ने उन्हें उसके नियमों का गम्भीरता से आज्ञा पालन करने की आवश्यकता के बारे में सिखाया और उनके उद्धार हेतु अनुग्रहपूर्ण प्रयोजनों को समझाया ।लेकिन फिर भी कुछ ही लोगों ने उसकी बातों पर ध्यान दिया। अधिकांश उस पाप के लिये उलाहना दी जाती थी जिसके कारण उसके वंशजों पर आपदाएं आईं।PPHin 72.1

    आदम का जीवन दुख, दीनता औरपश्चताप का था। अदन को छोड़ने पर, मृत्यु के विचार ने उसे भयभीत कर दिया। मानव परिवार में मृत्यु की वास्तविकता से उसका परिचय तब हुआ, उसका पहलौठा पुत्र कैन अपने ही भाई का हत्यारा बन गया। स्वयं के पाप के लिये घोर पश्चताप से भरा, हाबिल की मृत्यु और केन के तिरस्कार से शोकाकुल, आदम व्यथा की पराकाष्ठा से झुक गया। वह साक्षी था उस भ्रष्टाचार का जिसके कारण जल प्रलय द्वारा संसार का विनाश होना निश्चित था। हालांकि सृजनहार द्वारा दी गई मृत्यु की दण्डाज्ञा प्रारम्भ में भयानक प्रतीत हुईं, लेकिन लगभग हजार सालों तक पाप के परिणामों को देखकर, उसे लगा कि दुःख और पीड़ा से ग्रस्त जीवन का अन्त करने में परमेश्वर की दयालुता दिखाई देती है। जल प्रलय पूर्व संसार की दुष्टता के बावजूद, उस युग को, जैसा कि माना जाता है, नासमझी और वहशीपन का युग नहीं कहा जा सकता। मानव को नैतिक और बौद्धिक उपलब्धियों के उत्कृष्ट स्तर को प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया गया था। वे शारीरिक और मानसिक क्षमता के स्वामी थे और उनके पास धार्मिक और विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करने के अतुल्य सुअवसर थे। यह धारणा रखना गलत होगा कि उनकी बुद्धि देर से परिपक्व होती थी क्‍योंकि वे बहुत वर्षो तक जीवित रहते थे, उनकी मानसिक योग्यता जल्दी विकसित होती थी और परमेश्वर का भय मानने वाले और उसकी इच्छा के साथ सामन्जस्य रखनेवाले, ज्ञान और विवेक में जीवनभर बढ़ते रहते थे। यदि हमारे युग के उत्कृष्ट विद्वानों की तुलना जलप्रलय पूर्व के समआयु पुरूषों के साथ की जाए तो वे शारीरिक और मानसिक क्षमता में बहुत कम प्रतीत होंगे। आयु के घटने के साथ मनुष्य की शारीरिक शक्ति व मानसिक योग्यता भी कम हो गयी है। अब पुरूष बीस से पचास वर्ष अध्ययन करने मे व्यतीत करते है ओर संसार उनकी उपलब्धियों की प्रशंसा से भर जाता है। लेकन तुलना करने पर, उन मनुष्यों की उपलब्धियाँ जिनकी मानसिक और शारीरिक योग्यताओं का सदियों तक विकास हुआ, वर्तमान उपलब्धियाँ बहुत सीमित है। PPHin 72.2

    यह सच है कि आधुनिक युग के लोग उनके पूर्वजों की उपलब्धियों से लाभान्वित है। निपुण-बुद्धि पुरूष, जिन्होंने योजना बनाई, अध्ययन किया ओर लिखा, अपनी कृतियों को अनुसरण करने वालों के लिये छोड़ गये है। लेकिन इस सन्दर्भ में भी, जहाँ तक मानव ज्ञान का सम्बन्ध है, प्राचीन युग के लोग अधिक लाभान्वित थे। कई दशकों तक उनके मध्यस्थ वह था जिसे परमेश्वर के स्वरूप मे, बनाया गया था। जिसे स्वयं सृजनहार ने “अच्छा” कहा था- वह पुरूष जिसे परमेश्वर ने वस्तुगत संसार से सम्बन्धित सम्पूर्ण शिक्षा दी थी। आदम ने सृष्टि का इतिहास सृजनहार से सीखा था, नौ सदियों की घटनाओं का वह स्वयं साक्षी था और उसने अपना ज्ञान अपने वंशजो को प्रदान किया। जल प्रलय पूर्व के वासियो के पास पुस्तकों का अभाव था और ना ही उनके पास लिखित अभिलेख थे, उत्तम शारीरिक और मानसिक उत्साह के साथ उनके पास उत्तम स्मरण-शक्ति थी जो उन्हें बताई गई बातों को पूर्णतया ग्रहण करने में और याद रखने में सक्षम बनाती थी और वे ज्ञान को उसी अवस्था में अपने वंशजो को प्रदान करते थे। सैकड़ो वर्षो तक सात पीढ़ियां इस धरती पर एक ही समय जीवित थी और इस कारण उनके पास एक दूसरे क साथ विचार विमर्श करने का और सबके ज्ञान और अनुभव से हर-एक को लाभान्वित करने का अवसर था। परमेश्वर के कामों द्वारा उसके ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उस समय क मनुष्यों के पास अतुल्य अनुकूल परिस्थितियाँ थी। इस तरह धार्मिक अंधकार का युग ना होकर वह उत्तम प्रकाश का युग था। सम्पूर्ण जगत के पास आदम से शिक्षा प्राप्त करने का सुअवसर था और परमेश्वर से डरने वालों के पास मसीह और स्वर्ग॑दूतों के रूप में शिक्षक थे। और परमेश्वर की वाटिका मे उनके पास सत्य का मूक साक्षी था, जो कई सदियो तक मनुष्य के बीच रहा। अदन की वाटिका के स्वर्गदूतों द्वारा संरक्षित द्वार पर परमेश्वर की महिमा प्रकट हुई और सर्वप्रथम आराध्य वहां आए। यहाँ पर उनकी वेदियों को उठाया गया और उनकी भेंटों को अर्पण किया गया। यहीं पर कैन और हाबिल अपने चढ़ावे लेकर आए, और परमेश्वर ने उनसे संपर्क की स्वीकृति दी।PPHin 73.1

    संदेहवाद भी अदन के अस्तित्व को नकार नहीं सका क्‍योंकि वह दृश्यमान थाऔर उसके द्वार पर स्वर्गदूतों का पहरा था। सृष्टि का कम, वाटिका का प्रयोजन, मनुष्य की नियति से जुड़ा वहां के दोनो वृक्षों का इतिहास निर्विवाद तथ्य थे। परमेश्वर का अस्तित्व और श्रेष्ठ अधिकार, व्यवस्था का दायित्व, वे तथ्य थे जिन पर आदम की उपस्थिति मे मनुष्य कम सन्देह करता था। PPHin 74.1

    प्रचलित दुष्टता के बावजूद, पवित्र व्यक्तियों के एक श्रेणी थी, जो परमेश्वर की संगति द्वारा उदात्त और उन्‍नत किये हुए ऐसे रहते थे, मानो स्वर्ग की संगति में हो। वे श्रेष्ठतर बुद्धि और प्रशंसनीय उपलब्धियों के पुरूष थे। उनके सामने एक महान और पवित्र लक्ष्य था- धार्मिकता के चरित्र को विकसित करना और केवल अपने समय के लोगों को ही नहीं, वरन्‌ भविष्य की पीढ़ियों को भी धार्मिकता का पाठ पढ़ाना। पवित्र-शास्त्र में केवल सबसे अधिक महत्वपूर्ण विषयों का ही वर्णन है, लेकिन हर युग में परमेश्वर के निष्ठावान साक्ष्य व हृदय से सच्चे उपासक हुए है।PPHin 74.2

    हनोक के लिये लिखा गया है कि पैंसठ वर्ष के होने पर उसको एक पुत्र पैदा हुआ। तत्पश्चात्‌ वह तीन सौ वर्ष परमेश्वर के साथ-साथ चला। इन प्रारम्भिक वर्षो में हनोक ने परमेश्वर से प्रेम रखा और उसका भय माना और उसकी आज्ञाओं का पालन किया। वह पवित्रों की श्रेणी में से था, जो सच्चे विश्वास के संरक्षक थे और स्त्री के पुत्र के अग्रगामी थे। आदम के द्वारा उसने पतन की निराशाजनक कहानी और परमेश्वर कीप्रतिज्ञा में देखे गए अनुग्रह की कहानी सुनी और उसे आने वाले मुक्तिदाता में विश्वास हो गया। लेकिन पहले पुत्र के जन्म पश्चातू, हनोक अनुभव की ऊंचाईयों पर पहुँचा और परमेश्वर के साथ उसका घनिष्ठ सम्बन्ध बना। उसे परमेश्वर की संतान जैसे स्वयं के कर्तव्य और दायित्व का स्पष्टता से आभास हुआ ।जब उसने पिता के लिए बालक का प्रेम देखा, उसके संरक्षण में उसका सरल विश्वास देखा, जैसे उसने स्वयं अपने पहलौठे पुत्र के लिये हृदय की ललकती नग्रता को अनुभव किया, उसने पुत्र के रूप में दिए गये उपहार में परमेश्वर के अद्भुत प्रेम का बहुमूल्य पाठ पढ़ा और उस विश्वास को पहचाना जो परमेश्वर की संतान अपने स्वर्गीय पिता में कर सकती है। मसीह द्वारा परमेश्वर का असीमित, अथाह प्रेम उसके लिए रात-दिन मनन का विषय बन गया और अपनी आत्मा के सम्पूर्ण उत्साह से वह उस प्रेम को उन लोगों को बताने के लिये प्रयत्न करने लगा, जिनके बीच वह रहता था। PPHin 74.3

    हनोक का परमेश्वर के साथ चलना अवचेतन अवस्था या परिकल्पना में नहीं था। वह अपने दैनिक जीवन के हर कर्तव्य में उसके साथ चलता था। संसार को छोड़कर वह साधु नहीं बना, क्योंकि उसे इस संसार मेंपरमेश्वर के लिये एक कार्य करना था और परिवार में और लोगों के साथ संवाद करने में एक पिता और पति, एक दोस्त, एक नागरिक के रूप में, वह परमेश्वर का अडिग और अविचलित होने वाला सेवक था।PPHin 75.1

    उसके हृदय और परमेश्वर की इच्छा मे सामन्जस्य था, क्योंकि “यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हो, तो क्‍या वे एक संग चल सकेंगे”? आमोस 3:3 यह पवित्र भ्रमण वह तीन सौ तक करता रहा। कुछ मसीही यदि वे जानते कि उनके पास समय कम है या प्रभु का आना जल्द है तो भी हनोक से अधिक गंभीर और समर्पित नहीं होते। लेकिन समय के साथ हनोक का विश्वास दृढ़ होता चला गया और उसका प्रेम और अधिक बढ़ गया।PPHin 75.2

    हनोक विस्तृत ज्ञान और अनोखी और अत्यधिक सभ्य विवेक का स्वामी था। उसको परमेश्वर ने असाधारण रहस्योद्धाटनों से सम्मानित किया था, लेकिन फिर भी स्वर्ग के साथ निरंतर सम्पर्क में रहकर, ईश्वरीय महानता और सिद्धता के आभास को निरंतर ध्यान मे रखकर वह सबसे दीन मनुष्यों में से एक था। जितना अधिक घनिष्ठ उसका परमेश्वर से सम्बन्ध था, उतना ही गहरा आभास उसे स्वयं की क्षीणता और असिद्धता का था।PPHin 75.3

    अधर्मी लोगों की बढ़ती हुईं दुष्टता से दुखी और इस डर से कि उनकी श्रद्धाहीनता के कारणवश परमेश्वर के प्रति उसकी आस्था कम न हो जाए, वह उनकी संगति से दूर रहने लगा और स्वयं को ध्यान और प्रार्थना को समर्पित कर, वह एकान्त में अधिक समय व्यतीत करने लगा। इस प्रकार, परमेश्वर की इच्छा को और स्पष्टता से ज्ञात करने के लिये, ताकि वह उसकी इच्छा को पूराकर सके, वह परमेश्वर की सेवा में जुट गया। उसके लिए प्रार्थना आत्मा की श्वास समान थी। वह स्वर्ग के वातावरण में रहता था। PPHin 76.1

    स्वर्गदूतों के माध्यम से परमेश्वर ने हनोक को जलप्रलय द्वारा संसार का विनाश करने का उद्देश्य ज्ञात कराया और उद्धार की योजना को भी स्पष्ट किया। भविष्यद्वाणी की आत्मा द्वारा उसने हनोक को जल प्रलय के पश्चात वास करने वाली पीढ़ियाँ दिखाई और यीशु के दूसरे आगमन और संसार के अन्त से सम्बन्ध्ति घटनाओ को भी दिखलाया। PPHin 76.2

    मृतकों के सम्बन्ध मे हनोक अशात था। उसे लगता था कि धर्मी और दुष्ट दोनें ही मिट्टी को प्राप्त होंगे और यही उनका अन्त होगा। वह सिद्ध मनुष्योंके मृत्योपरांत के जीवन की कल्पना नहीं कर सकता था। भविष्य सूचक दर्शन में उसे मसीह की मृत्यु सम्बन्धित निर्देश दिये गए और उसे दिखाया गया कि स्वर्गदूतों सहित यशस्वी यीशु अपने लोगों को मृत्यु से छुटकारा दिलाने आएगा। उसने यीशु के दूसरे आगमन के समय के संसार की भ्रष्ट अवस्था को देखा कि उस समय की पीढ़ी भी घमण्डी, ढीठ और स्वेच्छाधारी होगी, जो अद्वितीय परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह का तिरस्कार करेगी और उसकी आज्ञाओं को कूचल देगी और पश्चताप को तुच्छ समझेगी। उसने धर्मियों को महिमा और प्रतिष्ठा का मुकुट पहने देखा और दुष्टों को परमेश्वर की उपस्थिति से निष्कासित, आग से नष्ट होते देखा ।PPHin 76.3

    हनाक धार्मिकता का प्रचारक बन गया और परमेश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान को लोगों के साथ बांटने लगा। परमेश्वर का भय मानने वाले उसकी शिक्षा और प्राथागा के भागीदार होने के लिये इस धर्मी पुरूष के पास आए। उसने सार्वजनिक तौर से भी श्रम किया। उसने उन सभी तक जो चेतावनी के कथन को सुनने के इच्छुक थे, परमेश्वर के सन्देश को पहुँचाया। उसका प्रयत्न शेत के वंश तक ही सीमित नहीं था। उस क्षेत्र में भी कैन परमेश्वर की उपस्थिति से भाग गया था। परमेश्वर के इस भविष्यवक्ता ने उन अद्भुत दृश्यों का वर्णन किया जो उसने दर्शन में देखे थे। “देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया कि सबका न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उनकी भक्ति के सब कामों के विषय में जो उन्होंने भक्तिहीन होकर किये हैं, दोषी ठहराया।” यहूदा 14,15 PPHin 76.4

    वह पाप का निडरता से आशक्षेप करने वाला था। अपने समय के लोगो को मसीह में परमेश्वर के प्रेम का प्रचार करतेहुए और उनसे बुराई का रास्ता छोड़ने का आवेदन करते हुए उसने प्रचलित दुष्टता की निंदा की और अपनी पीढ़ी के लोगों को चेतावनी दी कि अपराधी का न्याय अवश्य होगा।। हनोक के माध्यम से यीशुका पवित्र-आत्मा बोलता था; वह आत्मा केवल प्रेम, दयालुता और निवेदन की उक्तियों में ही प्रकट नहीं होता; पवित्र मनुष्य केवल सुखदायी बातें ही नहीं बोलते। परमेश्वर अपने सन्देशवाहकों के होठो पर और हृदय में उन सच्चाईयों को लाता है जो दो धार वाली तलवार के समान संवेदनशील और कट होती है।PPHin 77.1

    परमेश्वर का सामर्थ्य जो उसके सेवक के द्वारा काम करता था, उसके सुनने वालों को अनुभव हुआ। कुछ ने चेतावनी को गम्भीरता से लिया और अपने पापों को त्याग दिया, लेकिन अधिकांश सुनने वालों ने इस महत्वपूर्ण सन्देश का उपहास किया और दुष्टता के तौर तरीको में निडरतापूर्वक बढ़ते गए। ऐसा ही सन्देश परमेश्वर के दासों को अन्त समय में संसार में फैलाना है, और सुनने वाले उस पर अविश्वास करेंगे और उसका उपहास करेंगे। जल प्रलय पूर्व संसार ने उसकी चेतावनी के सन्देश को अस्वीकृत किया जो परमेश्वर के साथ चलता था। इसी प्रकार अन्तिम पीढ़ी परमेश्वर के संदेशवाहकों की चेतावनियों को तुच्छ समझेंगें ।PPHin 77.2

    सक्रिय श्रम के जीवन में भी हनोक ने परमेश्वर के साथ अपने अपने संपर्क को दृढ़ता से बनाए रखा। जितना महत्वपूर्ण और अत्यावश्यक उसका श्रम होता, उतनी ही प्रायः और निष्ठावान उसकी प्रार्थना होती। कई बार निश्चित काल के लिए, वह अपने आप को समाज से अलग रखता रहा। कुछ समय लोगों के बीच उनको निर्देश और उदाहरण से लाभान्वित करने का प्रयत्न करने के बादवह पवित्र ज्ञान, जो केवल परमेश्वर दे सकता है, की भूख और प्यास में एकान्तवास में चला जाता। इस प्रकार परमेश्वर के साथ संपकी॑ में रहने से उसमें और अधिक पवित्र छवि प्रतिबिंबित होने लगी। उसके मुख पर पवित्र प्रकाश को तेज था, जैसे कि मसीह के मुख पर होता है। जबवह धार्मिक समागम प्राप्त करके आता था, उसकी मुखाकति पर स्वर्ग के प्रभाव को अधर्मी भी अचरज से देखते थे।PPHin 77.3

    मनुष्य की दुष्टता इतनी बढ़ गयी कि उनके विरूद्ध विनाश की घोषणा की गईं। जैसे-जैसे वर्ष व्यतीत होते गए, मानव के अपराध बोध का समुद्र गहरा होता गया और ईश्वरीय न्याय के बादल गहराते गए। फिर भी हनोक, विश्वास का साक्षी, प्रतिशोध के वज्रपात के स्थगन के लिये, अपराध-बोध के प्रवाह को पीछे लौटाने के लिये प्रयत्नशील रहा और लोगों को निवेदन करते हुए चेतावनी देता रहा। हालांकि पापी, भोग-विलास के प्रेमी मनुष्यों ने उसकी चेतावनियों को महत्व नहीं दिया, पर हनोक के पास परमेश्वर द्वारा स्वीकृत साक्ष्य था और वह प्रचलित बुराई के विरूद्ध निष्ठावान होकर लड़ता रहा, जब तक कि परमेश्वर ने उसे पापमय संसार से हटाकर स्वर्ग के निर्मल आनन्द में स्थान दिया । PPHin 78.1

    उस पीढ़ी के मनुष्यों ने उसकी मूर्खता का उपहास किया था, जिसने सोने और चांदी को जमा करने की चेष्टा नहीं की थी और ना ही संसार में सम्पत्ति इकटठा करने का प्रयत्न किया था, पर हनोक का हृदय अनंत धनसंग्रह पर केन्द्रित था। उसने स्वर्गीय नगर कादर्शन किया था। उसने सिय्योन के बीच राजा को अपने तेज में देखा था। उसका विवेक, उसका हृदय, उसका वार्तालाप सब स्वर्ग में केन्द्रित थे। जितनी अधिक प्रचलित दुष्टताथी, उतनी ही ज्यादा गम्भीर उसकी परमेश्वर के घर की लालसा थी। पृथ्वी पर वास करते हुए भी, विश्वास द्वारा वह प्रकाश के क्षेत्र में रहता था। PPHin 78.2

    “धन्य हैं वे जिन के मन शुद्ध है, क्‍योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे-मत्ती5:8 ।तीन सौ वर्ष तक हनोक आत्मा की शुद्धि का प्रयास कर रहा था ताकि वह स्वर्ग के साथ सामन्जस्य बना सके। तीन सदियों तक वह परमेश्वर के साथ चला था। दिन-प्रतिदिन घनिष्ठ मेल-मिलाप की उसकी लालसा रही थी और परमेश्वर के साथ उसके समन्वय में निकटता आई, जब तक कि परमेश्वर ने उसे अपने पास ले लिया। वह आलौकिक संसार के द्वार पर खड़ा था, उसके और पवित्रों के देश के बीच में केवल एक सीढ़ी बाकी थी और अब मुख्य द्वार खुल गया। जो भ्रमण, वह परमेश्वर के साथ पृथ्वी पर करता था, वैसे ही करता रहा। और उसने पवित्र नगर के फाटकों को पार किया। स्वर्ग में प्रवेश पाने वाला वह पहला मनुष्य था।PPHin 78.3

    उसका अभाव धरती पर अनुभव किया गया। प्रतिदिन निर्देश और चेतावनी देने वाली आवाज के अभाव को महसूस किया गया। कुछ धर्मियों ने व कुछ दुष्टों ने उसके प्रस्थान की देखा था, और इस आशा में कि उसे उसी के किसी एकांत स्थान में पहुँचा दिया गया होगा, उससे प्रीति रखने वाले उसे खोजने का प्रयत्न करने लगे, जैसे आने वाले समय में भविष्यवक्ताओं के पुत्रों ने एलिय्याह को ढूँढा था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने बताया कि वह नहीं रहा, क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया था। PPHin 78.4

    हनोक के रूपांतरण से परमेश्वर ने एक सीख देनी चाही। यह आशंका थी कि आदम के पाप के भयावह परिणामों के कारण मनुष्य निराशा से भर जाएगा। कई इस भावना को अभिव्यक्त करने को तैयार थे, “परमेश्वर का भय मानना और उसके नियमों का पालन करना व्यर्थ है, क्‍योंकि पूरे वंश पर भारी शाप पड़ा है और सब मृत्यु के पात्र है”? लेकिन जो निर्देश परमेश्वर ने आदम को दिए, जो शेत द्वारा दोहराए गये, और हनोक द्वारा समझाये गये, उन निर्देशों ने निराशा और अन्धकार को दूर किया और मनुष्य को यह आशा दी कि जैसे आदम से मृत्यु आई, उसी तरह उद्धारकर्ता के माध्यम से जीवन और अमरता आएगी। शैतान मनुष्य को आग्रहपूर्वक विश्वास दिला रहा था कि न तो धर्मी मनुष्यों के लिये पुरूस्कार है और ना ही दुष्टों के लिये दण्ड और मनुष्य का परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना असम्भव है। लेकिन हनोक के सम्बन्ध में परमेश्वर कहता है “कि वह है, और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है” । इब्रानियों 11:6PPHin 79.1

    वह बताता है कि आज्ञा पालन करने वालों के लिए वह क्या करेगा। मनुष्य को सिखाया गया कि परमेश्वर की व्यवस्था को मानना सम्भव है। पापी और भ्रष्ट लोगों के बीच रहकर भी वे परमेश्वर के अनुग्रह से प्रलोमन में नहीं पड़ेगे और वे शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे। उन्होंने उस के उदाहरण में ऐसे जीवन का परमानन्द देखा और उसका रूपान्तरित होना औरउठा लिया जाना, उसकी मृत्योपरांत सम्बन्धित भविष्यद्वाणी-आज्ञाकारीमनुष्यों के लिये आनन्द महिमा और अनन्त जीवन का पुरस्कार और अपराधी के लिए दण्डाज्ञा, दरिद्रता और मृत्यु- के सत्य का प्रमाण थी । इब्रानियों 11:5 में लिखा है, “विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया कि मृत्यु को न देखे और उसके उठाए जाने से पहले उसकी यह गवाही दी गई कि उसने परमेश्वर को प्रसन्‍न किया है”। अपनी दुष्टता के कारण विनाश के लिये अभिशष्त संसार के बीच, हनोक ने परमेश्वर के साथ इतनी घनिष्ठ संगति का जीवन व्यतीत किया कि उसे मृत्यु की शक्ति से पराजित होने की अनुमति नहीं दी गई। इस भविष्यवक्ता का पवित्रापूर्ण चरित्र प्रतिनिधित्व करता है, पवित्रता की उस अवस्था का जो “पृथ्वी पर से मोल लिये गए” (प्रकाशित वाक्य 14:3) मनुष्यों को मसीह के दूसरे आगमन के समय प्राप्त होगी। उस समय जल प्रलय के पूर्व के संसार के समान, दुष्टता प्रचलित होगी । मायावी विचारधारा की शिक्षा और स्वयं के भ्रष्ट हृदय के प्रबोधनों का अनुसरण करते हुए, मनुष्य स्वर्ग के अधिकार के प्रति विद्रोह करेंगे। लेकिन हनोक के समान, परमेश्वर के लोग उसकी इच्छा के प्रति अनुकूलता और हृदय की पवित्रता पाने का प्रयत्न उस समय तक करेंगे जब तक उनमें मसीह का स्वरूप प्रतिबिंबित न हो जाए। हनोक समान, वे संसार को मसीह के दूसरे आगमन की और अपराधियों के न्याय की चेतावनी देंगे और अपनी धर्म से भरी बातचीत और पवित्र उदाहरण से अधर्मी मनुष्यों के अपराधों की निंदा करेंगे। जैसे कि जल प्रलय से पहले हनोक को स्वर्ग में जीवित अवस्था में उठा लिया गया था, ऐसे ही जीवित धर्मी मनुष्यों को अग्नि द्वारा विनाश से पहले धरती पर से उठा लिया जाएगा प्रेरित कहता है, “हम सब नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे और यह क्षण भर में पलक झपकते ही अन्तिम तुरही फेकते ही होगा।” “क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतेरगा, उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूकी जाएगी।” “तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे।” “और जो मसीह में मरे है, वे पहले जी उठेंगे। तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उनके साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे कि हवा में प्रभु से मिलेंगे और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। इस प्रकार इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दिया करो ।PPHin 79.2

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