Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कुलपिता और भविष्यवक्ता

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First

    अध्याय 57—वाचा के सन्दूक का पलिश्तियों द्वारा ले लिया जाना

    यह अध्याय 1 शमूएल 3-7 पर आधारित है

    एली के परिवार को एक और चेतावनी दी जानी थी। परमेश्वर महायाजक और उसके पुत्रों से संपर्क नहीं कर सकता था; उनके पापों ने, घने बादल के रूप में, उसके पवित्र आत्मा की उपस्थिति को बाहर कर दिया था। परन्तु बुराईयों के वातावरण में भी शमूएल परमेश्वर के प्रति सत्यनिष्ठ रहा, और सर्वोच्च परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता के रूप में शमूएल को यह आदेश दिया गया कि वह एली के घर तक दण्डाज्ञा का संदेश पहुँचाए।PPHin 606.1

    “उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था, और दर्शन कम मिलता था। और उस समय ऐसा हुआ कि एली के आँखे धुँधली होने लगी थी और उसे दिखाई नहीं पड़ता था, और वह लेटा हुआ था; परमेश्वर के मन्दिर में उसके दीपक के बुझने से पहले, जहाँ परमेश्वर का सन्दूक था और जहां शमूएल सोया हुआ था; यहोवा ने शमूएल को पुकारा ।” यह मानकर कि वह आवाज एली की थी, बालक शमूएल दौड़कर याजक की शैय्या के निकट गया और बोला, “मैं यहाँ हूँ क्‍योंकि तूने मुझे पुकारा है।” उसे उत्तर मिला, “मैंने तुझे नहीं पुकारा पुत्र, जा फिर से लेट जा।” तीन बार शमूएल को पुकारा गया, और तीनों बार उसने ऐसे ही उत्तर दिया। और फिर एली समझ गया कि वह रहस्यमयी बुलाहट परमेश्वर की वाणी थी। अपने चुने हुए दास, जिसके बाल सफंद हो चुके थे, को छोड़कर परमेश्वर ने एक बालक के साथ सम्पर्क किया। यह अपने आप में एली और उसके परिवार के लिये एक कटु लेकिन उचित फटकार थी।PPHin 606.2

    एली के हृदय में ईर्ष्या या द्वेष की थोड़ी सी भी भावना जागृत नहीं हुई। दोबारा बुलाए जाने पर शमूएल को उसने ऐसा कहने को कहा, “हे यहोवा कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है। श्रद्धायुक्त भय के कारण कि महान परमेश्वर ने उससे बात की, शमूृएल एली द्वाराबताए गए शब्द ठीक-ठीक याद नहीं रख सका।’PPHin 606.3

    “यहोवा ने शमूएल से कहा, “सुन, में इज़राइल में एक ऐसा काम करने पर हूँ जिससे सुनने वालों के कान झनझना उठेंगे। उस दिन मैं एली के विरूद्ध वह सब कुछ पूरा करूँगा जो मैंने उस घराने के विषय में कहा, उसे आरम्भ से अन्ततक पूरा करूँगा। क्योंकि मैंने उसे कह चुका हूँ कि मैं उस अधर्म के कारण जिसे वह जानता है, सदा के लिये उसके घर का न्याय करूंगा, क्‍योंकि उसके पुत्र स्वयं ही भ्रष्ट हुए, और उसने नहीं रोका। इसी कारण मैंने एली के परिवार को श्राप दिया है कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा और न अन्नबलि से।”PPHin 606.4

    परमेश्वर से सन्देश प्राप्त करने से पहले, “शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता था, और न यहोवा का वचन नहीं उस पर प्रकट हुआ था” अर्थात, परमेश्वर की उपस्थिति के ऐसे प्रत्यक्ष प्रदर्शनों से वह परिचित नहीं था, जैसे कि भविष्यद्वक्ताओं को दिखाए जाते थे। अप्रत्याशित रूप से स्वयं को प्रकट करने में प्रभु का यह प्रयोजन था कि एली इस बारे में शमूएल के अचम्भे और पूछताछ के माध्यम से जाने।PPHin 607.1

    शमूएल उसे दिये गए इस भयावह सन्देश के विचार पर भय और आश्चर्य से मर गया। प्रातःकाल वह हमेशा की तरह अपने काम-काज करता रहा, लेकिन उसके हृदय पर एक भारी बोझ था। प्रभु ने उसे उस भयानक भविष्यवाणी को प्रकट करने का आदेश नहीं दिया था इसलिये वह चुप रहा और जहाँ तक संम्भव था, एली की उपस्थिति से दूर रहता रहा। वह कॉँप रहा था कि कहीं किसी प्रश्न के कारण वह उसके विरूद्ध ईश्वरीय दण्डाज्ञा की घोषणा करने को विवश न हो जाए जिसके लिये उसके मन में इतना प्रेम और श्रद्धा थी। एली को विश्वास था कि सन्देश उस पर और उसके घराने पर किसी महान विपत्ति की भविष्यवाणीथा । उसने शमूएल को बुलाया और उसे सच्चाई से वह सब बताने को कहा जो प्रभु ने प्रकट किया था। शमूएल ने आज्ञा का पालन किया और वृद्ध पुरूष उस भयावह कथन के प्रति दीन समर्पण में झुक गया, “वह तो यहोवा है, जो उसे भला लगे वह वही करे।” PPHin 607.2

    अभी भी एली ने सच्चे प्रायश्चित के फल को प्रकट नहीं किया। उसने अपने दोष का अंगीकार किया, लेकिन पाप को त्यागने में असफल रहा। वर्ष के बाद वर्ष प्रभु ने उसके भयानक दण्डादेश में विलम्ब किया। इतने वर्षा में बीते दिनों की गलतियों को सुधारा जा सकता था, लेकिन वृद्ध याजक ने उन बुराईयों के निवारण के लिये कोई ठोस उपाय नहीं किये, जो परमेश्वर के मिलापवाले तम्बू को दूषित कर रही थी और इज़राइल में सेकड़ो को विनाश की ओर ले जा रही थी। परमेश्वर की सहनशीलता ने होप्नी और पीनहास के हृदयों को कठोर कर दिया और आज्ञा उल्लंघन में वे भी और भी निर्भीक हो गए। उसके घराने को मिली ताड़ना और चेतावनी का सन्देश एली द्वारा पूरी प्रजा को ज्ञात कराया गया। इस साधन से, वह कुछ मात्रा में, उसके बीते दिनों की उपेक्षा के दुष्प्रभाव को रोकना चाहता था। लेकिन प्रजा ने इन चेतावनियों की अवहेलना की, जैसे कि याजकों ने की थी। आस-पड़ोस के राज्य भी, जो इज़राइल में खुले आम हो रहे अधर्म के कामों से परिचित थे, अपने अपराधों और मूर्तिपूजा में और भी निर्भक हो गए। उन्हें अपने पापों के लिये दोषी होने का आभास तक न रहा, यह आभास तब होताजब इज़राइलियों ने अपनी अखंडता बनाए रखी होती। लेकिन प्रतिकार का एक दिन आने को था। परमेश्वर की सत्ता को परे रख दिया गया था, उसकी आराधना की उपेक्षा और तिरस्कार किया जा रहा था, और उसका हस्तक्षेप अनिवार्य हो गया था, जिससे उसके नाम का गौरव कायम रखा जा सके।PPHin 607.3

    “अब इज़राइल पलिश्तियों पर चढ़ाई करने को गए और उन्होंने एबनेजेर के आस-पास छावनी डाली, और पलिश्तियों ने अपेक में छावनी डाली।” इज़राइलियों ने यह अभियान परमेश्वरके परामर्श के बिना, महायाजक या भविष्द्वक्ता की सहमति लिये बिना प्रारम्भ किया। “तब पलिश्तियों ने इज़राइलियों के विरूद्ध व्यूह-रचना में व्यवस्थित किया और जब घमासान युद्ध होने लगा, इजराइली पलिश्तियों से हार गए, और उन्होंने इज़राइली सेना के लगभग चार हजार पुरूषों को मैदान में ही मार डाला।” जब वह हतोत्साहित सेना छावनी में लौट कर आईं, “तब इज़राइल के वृद्ध लोग कहने लगे, “यहोवा ने आज हमे पलिश्तियों से क्‍यों हारने दिया?” प्रजा परमेश्वर की दण्डाज्ञा के लिये परिपक्व हो चुकी थी, फिर वे उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इस भंयकर विपत्ति का कारण उनके अपने पाप थे। और उन्होंने कहा, “आओ हम यहोवा की वाचा का सन्दूक शिलोह से माँग ले आएँ कि वह हमारे बीच में आकर हमें शत्रुओं के हाथ से बचाए।” परमेश्वर ने न ही आज्ञा दी थी ना अनुमति कि सन्दूक को सेना के पास आना चाहिये, फिर भी इज़राइली आश्वस्त थे कि विजय उन्हीं की होगी और जब वह सन्दूक एली के पुत्रों के द्वारा छावनी में लाया गया , सारे इज़राइली पूराबल लगाकर ललकारे। PPHin 608.1

    पलिश्ती वाचा के सन्दूक को इज़राइल के देवता के रूप में देखते थे। जितने भी गौरवशाली कार्य यहोवा ने अपने लोगों को लिये किए थे उनका श्रेय सन्दूक को दिया गया। जब उन्होंने उसके पहुँचने पर ललकार को सुना तो उन्होंने कहा, “इब्रियों की छावनी में इतने ऊंचे स्वर में ललकार का क्‍या कारण है? तब उन्होंने जान लिया कि यहोवा का सन्दूक छावनी में आया है। तब पलिश्ती डर कर कहने लगे, उस छावनी में परमेश्वर आ गया है। फिर उन्‍होंने कहा, “हाय! हम पर ऐसी बात पहले नहीं हुई थी। हाय! ऐसे महाप्रतापी देवताओं के हाथ से हमें कौन बचाएगा? ये तो वही देवता है जिन्होनें मिप्नियों पर बीहड़ में सब प्रकार की विपत्तियाँ भेजी थी। हे पलिश्तियों, तुम हियाव बाँधो, और पुरूषार्थ जगाआं, कही ऐसा न हो कि जैसे इब्री तुम्हारे अधीन हो गए वैसे तुम भी उनके अधीन हो जाओ, पुरूषार्थ करके संग्राम करो।”PPHin 608.2

    तब पलिश्ती लड़ाई के मैदान में टूट पड़े बहुत नरसंहार हुआ और इज़राइल की हार हुई । तीस हजार पुरूष मैदान में मृत पड़े थे, और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया, और एली के दोनो पुत्र, होप्नी और पीनहास भी मारे गए। एक बार फिर इतिहास के पृष्ठों पर आने वाले सभी युगों के लिये एक साक्ष्य छोड़ा गया- कि परमेश्वर के तथाकथित लोगों के अधर्म को अवश्य दण्डित किया जाएगा। परमेश्वर की इच्छा का जितना अधिक ज्ञान हो, उतना ही बड़ा उनका पाप होगा जो उस इच्छा का तिरस्कार करते है।PPHin 609.1

    सबसे भयानक विपत्ति जो घटित हो सकती थी, वह इज़राइल पर आ पड़ी थी। परमेश्वर का सन्दूक पलिश्तियों द्वारा अधिकृत कर लिया गया था, और शत्रु के कब्जे में था। जब यहोवा की सामर्थ्य और स्थायी उपस्थिति इज़राइलके बीच से उठ चुकी गई, तब इज़राइल का गौरव जाता रहा। इस पवित्र सन्दूक के साथ परमेश्वर के सत्य और सामर्थ्य के सबसे आश्चर्यजनक प्रदर्शन सम्बद्ध थे।PPHin 609.2

    बीते दिनों में जब भी वह प्रकट होता था, चमत्कारपूर्ण विजय प्राप्त होती थी। वह सोने के करूब के पंखो से आच्छादित था, और यहोवा का तेज, जो सर्वौाच्च परमेश्वर का सदृश्य चिन्ह था, पवित्रों के पवित्र में, उसके ऊपर ठहरता था। लेकिन अब वह कोई विजय लेकर नहीं आया। इस अवसर पर वह बचाव प्रमाणित नहीं हुआ और इज़राइल के प्रत्येक भाग में शोक मनाया गया।PPHin 609.3

    उन्हें समझ नहीं आया था कि उनका विश्वास केवल नाममात्र का विश्वास था, और परमेश्वर के साथ प्रबल होने का सामर्थ्य खो चुका था। सन्दूक के भीतर, परमेश्वर की व्यवस्था भी, उसकी उपस्थिति का प्रतीक थी, लेकिन उन्होंने आज्ञाओं की अवमानना की और उनके अधिकार का तिरस्कार किया, और परमेश्वर के आत्मा को दुख पहुँचाया। जब लोग पवित्र सिद्धान्तों का पालन किया करते थे, तब परमेश्वर अपनी असीम सामर्थ्य॑ के द्वारा उनके लिये कार्य करने के लिये उनके साथ होताथा; लेकिन जब वे सन्दूक को देखते थे, और उसे परमेश्वर से सम्बद्ध नही करते थे और ना ही उसकी आज्ञा के पालन द्वारा उसकी प्रकट इच्छा का मान रखते थे, तब वह सन्दूक उनके लिये एक साधारण डिब्बे से थोड़ा अधिक हितकारी होता था। वे सन्दूक को उस दृष्टि से देखते थे जैसे मूर्तिपूजक देश अपने देवताओं को देखते थे, मानो उसमें अपने आप में उद्धार और सामर्थ्य के तत्व विद्यमान हो। उन्होंने उसमें रखी आज्ञा का उल्लंघन किया, क्‍योंकि उनके द्वारा की गईं आराधना ने मूर्तिपूजा, पांखड और रीतिवाद को बढ़ावा दिया। उनके पाप ने उन्हें परमेश्वर से अलग कर दिया था, और वह उन्हें तब तक विजय नहीं दे सकता था जब तक कि वे अपने अधर्म के कार्यों का परित्याग न कर दे और उनके लिये प्रायश्चित न करें।PPHin 609.4

    इज़राइल के मध्य मिलापवाले तम्बू और वाचा के सन्दूक का होना पर्याप्त नहीं था। यह कि याजक बलि की भेंट चढ़ाते थे और लोगों को परमेश्वर की संतान कहा जाता था, पर्याप्त नहीं था। परमेश्वर उनके निवेदन का मान नहीं रखता जो हृदय में अधर्म को संजोए रखते हैं। नीतिवचन 28:9में लिखा है, “जो अपने कान व्यवस्था को सुनने से मोड़ लेता है, उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है।PPHin 610.1

    जब सेनायुद्ध करने को गई, वह वृद्ध और अन्धा एली, शिलोह में ठहर गया था। चिन्तायुक्त पूर्वाभास के साथ वह संघर्ष के परिणाम की प्रतीक्षा करतारहा, “उसका मन परमेश्वर के सन्दूक की चिन्ता से थरथरा रहा था ।”वह मिलापवाले तम्बू के फाटक के बाहर मार्ग के किनारे बैठा रणभूमि से दूत के आने की बाट जो रहा था।PPHin 610.2

    बहुत समय बाद, सेना सेएक बिन्यामी मनुष्य “अपने वस्त्र फाड़े और सिर पर मिट्टी डाले हुए तेजी से वह चढ़ाई चढ़कर आया जो शहर कोजाती थी। मार्ग के किनारे बैठे वृद्ध पुरूषको अनदेखा कर, वह शहर की ओर दौड़ा और वहाँ पहुँचकर उत्सुक भीड़ को हार और जीत का समाचार सुनाया । PPHin 610.3

    हाहाकार और विलाप की आवाज मिलाप वाले तम्बू के पास बेठे प्रतीक्षा करने वाले के कानों में पड़ी। दूत को उसके पास लाया गया। और आगन्तुक ने उससे कहा, “इज़राइली पलिश्तियों के सामने से भाग आए हैं, और भयानक नरसंहार हुआ है, और तेरे दोनो पुत्र होप्नी और पीनहास भी मारे गए, और परमेश्वर का सन्दूक भी छीनलिया गया है।” पुत्रों के मारे जानेकी दुखद सूचना तक तो एली से सब सहन कर लिया, क्योंकि उसने ऐसा ही सोचा था। लेकिन जब दूत ने आगे सन्दूकके लिये बताया तो उसके मुख पर अकथनीय वेदना उभर आयी। यह विचार कि उसके पाप ने इस प्रकार परमेश्वर का निरादर किया था जिसके कारण परमेश्वर ने इज़रईल से अपनी उपस्थिति को हटा लिया, उसकी सहनशक्ति से बाहर था, वह शक्तिहीन हो गया, और गिर गया, “और उसकी गरदन ट्टगई और वह मर गया।”PPHin 610.4

    पीनहास की पत्नी अपने पति के अधर्म के बावजूद, परमेश्वर का भयमानने वाली स्त्री थी। अपने पति और अपने श्वसुर की मृत्यु, और विशेषकर, परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिये जाने का समाचार सुन वह मृत्यु की गोद में सो गईं । उसने सोचा कि इज़राइल की अन्तिम आशा भी जाती रही, और विपत्ति की इस घड़ी में जन्मे शिशु का नाम उसने ‘इकाबोद’ रखा जिसका तात्पर्य है “अकीर्तिकर” और मरते समय वह यह शब्द दोहराती रही, “इज़राइल में से महिमा उठ गई है, क्योंकि परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया है।PPHin 611.1

    लेकिन प्रभुने अपनी प्रजा को बिल्कुल ही नहीं छोड़ दिया था, ना ही वह अधर्मियों का हषोल्लास देर तक सहन करने वाला था। उसने इज़राइल को दण्डित करने के लिये साधन के रूप में पलिश्तियों का उपयोग किया था, और अब पलिश्तियों को दण्ड देने के लिये उसने सन्दूक का प्रयोग किया। बीते समय में परमेश्वर के आज्ञाकारी लोगों का गौरव और सामर्थ्य होने के लिये, परमेश्वर की उपस्थिति उस पर ठहरती थी, वह अदृश्य उपस्थिति अभी भी साथ होगी, जिससे कि उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने वालों का विनाश हो सके। परमेश्वर अधिकतर उसकी तथाकथित प्रजा की निष्ठाहीनता को दण्डित करने के लिये अपने सबसे कट्टर शत्रुओं का प्रयोग करता है। इज़राइल को दण्डित हुआ देख, दुष्ट कुछ समय के लिये आनन्द मना सकते है, लेकिन समय आएगा जब उन्हें एक पवित्र, पाप से घृणा करने वाले परमेश्वर के दण्डादेश का सामना करना होगा। जहाँ भी अधर्म को संजोया जाता है, वहां शीघ्र और अचूक पवित्र दण्डाज्ञाएं भेजी जाती है। PPHin 611.2

    पलिशितियों ने हर्षोल्लास के साथ परमेश्वर के सन्दूकको उठाकर अशदोद, जो पांच मुख्य नगरों में से एक था, में पहुँचाकर उसे अपने देवता दागोन के मन्दिर में रख दिया। उन्होंने कल्पना की कि जो सामर्थ्य इससे पहले सन्दूक के साथ होता था अब उनका होगा और यह कि उस सामर्थ्य के साथ मिलने से वे अपराजेय हो जाएँगे। लेकिन अगले दिन मन्दिर में प्रवेश करने पर उन्होंने वह दृश्यदेखा जिससे वे घबरा गए। दागोन यहोवा के सन्दूक के सामने औँधे मुहँ भूमि पर गिर पड़ा था। याजकों ने मूर्ति को श्रद्धापूर्वक उठाकर नियमित स्थान पर पुनः:स्थापित कर दिया। लेकिन अगले दिन उन्होंने मूर्ति को विकृत हुआ पाया और देखा कि वह फिर सन्दूक के सामने प्रथ्वी पर गिरी पड़ी थी। इस मूर्ति का ऊपरी भाग मनुष्य के समान था, और निचला भाग मछली के स्वरूप में था। प्रत्येक अंग जो मानव आकृति से मेल खाता था, वह कटा हुआ थाऔर केवल मछली का शरीर बचा हुआ था। याजक और लोग भयभीत हो गए, उन्होंने इस रहस्यमयी घटना कोएक अपशकून होने की दृष्टि से देखा,जो इब्रियों के परमेश्वर के सामने उनके और उनकी मूर्तियों के विनाश का पूर्वाभास करा रही थी। अब उन्होंने सन्दूक को हटाकर एक अलग भवन में रख दिया।PPHin 611.3

    अश्दोद के निवासियों पर एक घातक व कष्टदायक रोग की मार पड़ी । इज़राइल के परमेश्वर द्वारा मिस्र पर भेजी गई विपत्तियों का स्मरण कर, लोगों ने उनके बीच सन्दूक की उपस्थिति को उनकी आपदाओं का कारण बताया सन्दूक को गत नामक नगर में पहुँचाने का निर्णय लिया गया। लेकिन विपत्ति वहाँ तक भी पहुँच गई इसलिये उस नगर के वासियों ने सन्दूक को एकोन भेज दिया । यहाँ के लोग सन्दूक के आने से डर गए और चिल्लाने लगे, “इज़राइल के परमेश्वर का संदूक हमारे पास इसलिये पहुँचाया गया है कि हम और हमारे लोगोंको मरवा डाले ।” जैसा गत और अश्दोद के लोगों ने किया था, एकोनी भी सुरक्षा के लिये अपने देवताओं की शरण में गए, लेकिन विनाशक का कार्य चलता रहा, और दुखी होकर “नगर की चिललाहट आकाश तक पहुँची ।” सन्दूक को बहुत दिनों तक लोगों के घरों के बीच रखने के डर से, उन्होंने उसे खुले मैदान में रखदिया। इसके बाद चूहों का आंतक, जो पूरे देश में फैल गया और जिसने खेतों और भण्डारों, दोनों की उपज को नष्ट कर दिया। अकाल और बीमारों द्वारा सम्पूर्ण विनाश अब राज्य को चुनौती दे रहा था। PPHin 612.1

    यहोवा का सन्दूक पलिश्तियों के देश में सात महीनों तक रहा, और इस पूरे समय के दौरान, इज़राइलियों ने इसकी पुनः प्राप्ति के लिये कोई प्रयास नहीं किया । लेकिन पलिशिती सन्देक से छुटकारा पाने के लिये उतने ही उत्सुक थे जितने कि उसे प्राप्त करने के लिये थे। बल का स्रोत होने के बजाय, वह उनके लिये एक बड़ा बोझ और श्राप था। लेकिन वे नहीं जानते थे कि कौनसा रास्ता अपनाएँ, क्‍योंकि जहाँ भी सन्दूक जाता परमेश्वर की दण्डाज्ञा वहाँ पहुँच जाती। तब लोगों ने देश के सरदारों, याजकों और भविष्यद्बक्ताओं को बुलाया और उत्सुकतावश उनसे पूछा, “यहोवा के सन्दूक से हम क्‍या करे। हमें बताओ कि हम सन्दूक को वापस इसके घर कैसे भेजें?” उन्हें सन्दूक को एक बहुमूल्य दोषबलि की भेंट के साथ लौटाने का सुझाव दिया गया। याजकों ने कहा, “तब तुम चंगे हो जाआगे, और तुम जान लोगे कि उसका हाथ तुम पर से क्‍यों नहीं उठाया गया।’PPHin 612.2

    विपत्ति से बचाव करने या उसे दूर करने के लिये मूर्तिपूजक जातियों में यह प्रथा थी कि वे विनाश के स्रोत या विपत्ति के कारण प्रभावित शरीर के अंग की सोने, चांदी या अन्य धातु की आकति बनाकर एक स्तम्भ पर या किसी प्रमुख स्थान पर रख देते थे, और उन आकृतियों को जिन विपत्ततियों का वे प्रतीक थी, उनके प्रति प्रभावशाली सुरक्षा माना जाता था। ऐसी ही प्रथा क॒छ मूर्तिपूजक जातियों में अभी भी प्रचलित है। जब एक रोगग्रस्त मनुष्य चंगाई प्राप्त करने के लिये अपने देवता के मन्दिर जाताहै, वह अपने साथ प्रभावित अंग की आकृतिले जाता है, जिसे वह अपने देवता का चढ़ावे के रूप मे चढ़ाता है।PPHin 613.1

    प्रचलित अन्धविश्वासों के आधार पर पलिश्ती सरदारों ने लोगो को उन पर आई विपत्तियों के प्रतिरूप बनाने को कहा, “पलिश्ती सरदारों की गिनती के अनुसार सोने की पांच गिलटियाँ और सोने के पांच चूहे क्योंकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनो एक ही रोग से ग्रसित हो।PPHin 613.2

    इन बुद्धिजीवियों ने स्वीकार किया कि सन्दूक के साथ एक रहस्यमयी सामर्थ्य था जिसका सामना करने की प्रतिभा उनमें नहीं थी। फिर भी उन्होंने लोगों को मूर्तिपूजा छोड़कर परमेश्वर की उपासना करने की सलाह नहीं दी। वे अभी भी इज़राइल के परमेश्वर से घृणा करते थे, हालाँकि उसके दण्डादेशों ने उन्हें उसके प्रभुत्व के प्रति सर्मपण करने को विवश कर दिया था। इस प्रकार पापियों को परमेश्वर की दण्डाज्ञाओं के आधार पर आश्वस्त हो जाना चाहिये कि परमेश्वर के विरूद्ध संघघष करना व्यर्थ है। संभव है कि वे उसकी सत्ता को समर्पित होने के लिये विवश हो जाएँ, पर हृदय से वे उसके नियन्त्रण का विरोध करते रहे। ऐसा समर्पण पापीको बचा नहीं सकता। हृदय को परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिये; पवित्र अनुग्रह से वशीभूत होना चाहिये- इससे पहले कि मनुष्य का प्रायश्चित स्वीकार हो। PPHin 613.3

    कितनी उदार है दुष्टों के लिये परमेश्वर की चिरसहिष्णुता! मूर्तिपूजक पलिशि्ती और स्वधर्म-त्यागी इज़राइल दोनो ने परमेश्वर की आशीषों को पाया था ।[उपद्रवी, कृतज्ञहीन मनुष्यों के मार्ग में दस हजार अज्ञात दया की आशीषें चुपचाप बरस रही थी। प्रत्येक आशीष उन्हें देने वाले ‘दाता’ के बारे मेंबता रही थी, लेकिन वे उसके प्रेम के प्रति उदासीन थे। मनुष्य के पुत्रों के प्रति परमेश्वर की सहनशीलता अधिक थी, लेकिन जब उन्होंने हठी होकर प्रायश्चित नहीं किया, तब उसने उनपर से अपना हाथ हटा लिया जो उनकी सुरक्षा करता था। उन्होंने परमेश्वर की कतियों में उसके वचन की चेतावनियों में, परामर्श में, फटकार में उसकी आवाज को सुनने से इन्कार कर दिया, और इस प्रकार परमेश्वर उनसे दण्डादेशों के माध्यम से बात करने के लिये बाध्य हो गया।PPHin 614.1

    कुछ पलिश्ती थे जो संदूक को उसके अपने स्थान पर लौट जाने देने की पक्ष में नहीं थे। इज़राइल के परमेश्वर के सामर्थ्य का ऐसा अंगीकरण पलिश्तियों की शान के लिये अपमानजनक होता। लेकिन “याजकों और भविष्यद्वक्ताओं” ने लोगो की डॉटा कि वे मिस्रियों और फिरीनक हठीलेपन को न अपनाएँ और न ही उसके कारण अपने ऊपर और अधिक विपत्तियां लाएँ। एक योजना, जिसे सबकी सहमति मिल गई, प्रस्तावित की गई, और तत्काल क्रियान्वित की गईं। सोने की दोषबलि की भेंट के साथ, सन्दूक को एक नए वाहन पर रखा गया, ताकि अपवित्र होने का खतरा न हो, इसके साथ दो दुधार गायें जो जूए तले न आई थी, जोती गई। उन गायों के बछड़ो को घर पर बन्द कर दिया गया और गायों को उनकी इच्छानुसार कहीं भी जाने के लिये स्वतन्त्र छोड़ दिया गया। यदि सन्दूक लैवियों के निकटतम शहर, बेतशेमेश के मार्ग से, इस प्रकार, इज़राइलियों के पास लौट जाए तो पलिश्त इसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करेंगे कि इज़राइल के परमेश्वर ने उन पर ये विपत्ति भेजी थी, “और यदि नहीं तो हम को निश्चय होगा कि यह मार हम पर उसकी ओर से नहीं परन्तु संयोग ही से हुई।PPHin 614.2

    स्वतन्त्र होकर, गायों ने अपने बछड़ो को छोड़, बेतशेमेश का सीधा मार्ग लिया और रंभाती हुई चली गई। किसी मनुष्य ने उनका मार्गदर्शन नहीं किया, इन धेर्यवान पशुओं ने अपना मार्ग नहीं छोड़ा। पवित्र उपस्थिति सन्दूक के साथ थी और वह अपने निर्धारित स्थान पर सुरक्षित पहुँच गया।PPHin 614.3

    यह गेहूँ की फसल काटने का समय था, और बेतशेमेश के लोग तराई में गेहूँ काट रहे थे। “जब उन्होंने आँखे उठाकर सन्दूक को देखा, तब उसको देखने से वे आनन्दित हुए। गाड़ी यहोशू नामक एक बेतशेमेशी के खेत में जाकर वहाँ ठहर गई, जहाँ एक बड़ा पत्थर था। तब उन्होंने गाड़ी की लकड़ी को चीरा और गायों को होमबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाया।” पलिश्तियोंके सरदार, जो सन्दूक के पीछे-पीछे “बेतशेमेश की सीमा तक गए थे” उसकी अगवानी के साक्षी ठहरे औरवे एकोन को लौट आए। विपत्तियाँ थम गई, और उन्हे विश्वास हो गया कि उनपर आईं आपदाएँ इज़राइल के परमेश्वर की दण्डाज्ञा थी।PPHin 614.4

    बेतशेमेश के पुरूषों ने शीघ्रता से सन्दूक के उनके अधीकृत होने का समाचार फैला दिया और पड़ोस के देशक लोग उसकी वापसी का स्वागत करने उमड़ पड़े। सन्दूक को उस पत्थर पर रखा गया जिसे पहले वेदी की तरह प्रयोग किया जाता था औरउसके सम्मुख परमेश्वर के लिये अतिरिक्त बलि की भेंटे चढ़ाई जाती है। यदि भक्तों ने अपने पापों का प्रायश्चित किया होता, तो परेश्वर उन्हें आशीष देता। लेकिन वे व्यवस्था का निष्ठापूर्वक पालननहीं कर रहे थे, वे सन्दूक को सुख का अग्रदूत मानकर आनन्दित तो हुए, लेकिन वे उसकी पवित्रता को वास्तव में अनुभव नहीं कर रहे थे। उसकी अगवानी के लिये उपयुक्त स्थान तैयार करने के बजाय उन्होंने उसे खलिहान में ही रहने दिया। वे उसे निहारते रहे, और जब वे सन्दूक की आश्चर्यजनक वापसी के बारे में बात कर रहे थे, वे सोचने लगे कि उसका विलक्षण सामर्थ्य किस में निहित था। अन्तत:, उत्सुकतावश, उन्होंने उसके आच्छादन को हटाकर उसे खोलने का दुस्साहस किया।PPHin 615.1

    सम्पूर्ण इज़राइल को सन्दूक का भय और श्रद्धा के साथ मान रखना सिखाया गया था। उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में उन्हें उसे ताकना नहीं था। याजक को वर्ष में केवल एक बार परमेश्वर के संदूक को देखने की अनुमति दी जाती थी। मूर्तिपूजक पलिशितियों ने भी उसके आच्छादन हटाने का दुस्साहस नहीं कियाथा। अदृश्य स्वर्गदूत उसकी सब यात्राओं में उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे। बेतशेमेश के लोगों की श्रद्धाहीन निर्भकिता को शीघ्रता से दण्डित किया गया। कई लोगों की आकस्मिक मृत्यु हो गई।PPHin 615.2

    इस दण्डाज्ञा से उत्तरजीवी अपने पापों का प्रायश्चित करने के बजाय, सन्दूक को केवल अन्धविश्वासी भय के साथ देखने लगे। वे उसकी उपस्थिति से छुटकारा पाने के लिये उत्सुक थे, लेकिन उसे हटा देने का दुस्साहस न कर सके, और उन्‍होंने अर्थात बेतशेमेशियों ने किर्यत्यारीम के निवासियों को सन्दूक को वहाँ से ले जाने का निमन्त्रण दिया। इस जगह के लोगों ने पवित्र सन्दूक का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत किया। उन्हें यह ज्ञात था कि वह सन्दूक निष्ठावान और आज्ञाकारी लोगों के प्रति ईश्वरीय कृपा दृष्टि की शपथ था। सौम्यतपूर्ण प्रसन्‍नता के साथ वे उसे अपने नगर में लाए और उसे एक लेवी, अबीनादाब के घर में रख दिया। इस व्यक्ति ने सन्दूक का कार्यभार लेने के लिये अपने पुत्र एलीआजार को नियुकत किया, और सन्दूक वहाँ बहुत समय तक रहा। PPHin 615.3

    हन्ना के पुत्र पर प्रभु के स्वयं प्रकट होने के समय से आगामी वर्षो में भविष्यवाणी सम्बन्धित कार्य के लिये शमूएल को बुलाए जाने को समस्त प्रजा द्वारा स्वीकृति मिल गई थी। हालाँकि एली के परिवार को इश्वरीय चेतावनी पहुँचाना कठिन और पीड़ाजनक था, लेकिन इस कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करके शमूएल ने यहोवा के दूत के तौर पर अपनी स्वामिभक्ति का प्रमाण दे दिया था, “और यहोवा उसके संग रहा, और उसने उसकी कोई भी बात निष्फल नही होने दी, और दान से बेशैबा तक के रहने वाले सारे इज़राईलियों ने जान लिया कि शमूएल यहोवा का नबी होने के लिये नियक्त किया गया है।PPHin 616.1

    राज्य के रूप में इज़राइली मूर्तिपूजा और अधर्म की अवस्था में बने रहे, और दण्ड के रूप में वे पलिश्तियों के अधीन रहते रहे। इस समय के दौरान शमूएल देशभर के नगर और गाँवों को गया कि वह लोगों के हृदयों को उनके पूर्वजों के परमेश्वर की ओर मोड़ सके, और उसके प्रयत्न सफल हुए। बीस वर्षो तक शत्रुओं द्वारा उत्पीड़न सहने के बाद इज़राइली “विलाप करते हुए यहोवा के पीछे चलने लगे।” शमूएल ने उन्हें सम्मति दी, “यदि तुम अपने पूरे मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवी को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो ।” यहाँ हम देखते है कि शमूएल के समय में व्यवहारिक धर्मपरायणता और वास्तविक धर्म जैसा कि मसीह, इस पृथ्वी पर होने के समय, सिखाता था। मसीह के अनुग्रह के अभाव में प्राचीन इज़राइल के लिये धर्म के दिखावटी रूप व्यर्थ थे। यही वर्तमान इज़राइल पर भी लागू होता है। PPHin 616.2

    प्राचीन इज़राइल द्वारा अनुभव किये गये सच्चे सहृदय धर्म अर्थात वास्तविक धर्म के ऐसी ही धार्मिक जागृति की आवश्यकता है। परमेश्वर की ओर लौटने वालों द्वारा लिये जाना वाला पहला कदम प्रायश्चित है। कोई भी किसी अन्य के इस कार्य को नहीं कर सकता। हमें व्यक्तिगत रूप से हमारी आत्माओं अर्थात हृदयों को परमेश्वर के सम्मुख दीन करना चाहिये और मूर्तियों अर्थात पूजित वस्तुओं को दूर कर देना चाहिये। जब हम वह सब कर लेते है जो हम कर सकते हैं, प्रभु उसके उद्धार को हम पर प्रकट करेगा।PPHin 616.3

    गोत्रों के सरदारों के सहयोग से, मिस्पा में बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए। यहाँ पर लोगो ने एक विधिवत व्रत रखा। दीन होकर लोगों ने अपने पापों का अंगीकार किया, और सुने निर्देशों का पालन करने के दृढ़ संकल्प को प्रमाणित करने के लिये उन्होंने शमूएल को न्याय करने का अधिकार प्रदान किया। PPHin 617.1

    पलिश्तियों ने इस सम्मेलन को युद्ध की विचार सभा समझा और इज़राइलियों की योजनाओं के परिपक्व होने से पहले ही वे एक सशक्त सेना के साथ उन्हें तितर-बितर करने के लिये निकल पड़े। उनके आने के सूचना पाकर इज़राइल में डर की लहर दौड़ गई। और इज़राइलियोंने शमूएल से कहा, “हमारे लिये हमारे परमेश्वर यहोवा की दुहाई देना न छोड़ जिससे वह हमें पलिश्तियों के हाथ से बचाए।”PPHin 617.2

    जब शमूएल होमबलि को चढ़ा ही रहा था, उस समय पलिश्ति इज़राइलियों के संग युद्ध करने के लिये निकट आ गए।। फिर उस शक्तिशाली परमेश्वर ने जो अग्नि और धुएँ और मेघगर्जन के बीच सिने पर उतरा था, जिसने लाल समुद्र के दो भाग कर दिये, और जिसने इज़राइल की संतान के लिये यरदन में से मार्ग निकाला, अपने सामर्थ्य को प्रकट किया। एक बड़े बवण्डर ने बड़ती हुई सेना को अपनी चपेट मे ले लिया और पृथ्वी पर शूरवीर योद्धाओं के मृत शरीरों का ढेर लग गया।PPHin 617.3

    इज़राइली श्रद्धा से चुपचाप खड़े रहे, और वे भय और आशा से काँपं रहे थे। जब उन्होंने अपने शत्रुओं को नरसंहार को देखा.उन्हें ज्ञात हो गया कि परमेश्वर ने उनके प्रायश्चित को स्वीकारकर लिया था। हालाँकि वे युद्ध के लिये हथियारबन्ध नहीं थे, उन्होंने वध किये हुए पलिश्तियों के हथियार छीन कर भागती हुई सेना का बेतकर तक पीछा किया। यह महत्वपूर्ण विजय उसी मैदान पर प्राप्त हुई, जहाँ बीस वर्ष पूर्व, इज़राइल पलिश्तियों के आगे हार गया था, याजकों का वध किया गया था और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया था। राष्ट्र और व्यक्तियों के लिये, परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता का मार्ग ही सुख और सुरक्षा का मार्ग है, जबकि आज्ञा का उल्लंघन का मार्ग हमे विनाश और पराजय की ओर ले जाता है। पलिश्ती अब पूर्ण रूप से अधीकृत हो चुके थे, इसलिये उन्होंने इज़राइल से छीने हुए गढ़ भी उन्हें लौटा दिये और कई वर्षों तक वे शत्रुता के क॒त्यों से दूर रहे। दूसरे देशों ने भी इस उदाहरण को अपनाया और शमूएल के पूरे शासन काल में इज़राइली शान्ति से रहे।PPHin 617.4

    मिस्पा और शेन के बीच में शमूएल ने स्मारक के रूप में एक बड़ा सा पत्थर खड़ा किया, जिससे इस अवसर को कभी भी भुलाया न जाए। उसने इस पत्थर का नाम एबनेजेर रखा जिसका अर्थ है, ‘सहायता का पत्थर’ और उसने लोगों से कहा, “यहाँ तक यहोवा ने हमारी सहायता की।”PPHin 618.1