Loading...
Larger font
Smaller font
Copy
Print
Contents

कुलपिता और भविष्यवक्ता

 - Contents
  • Results
  • Related
  • Featured
No results found for: "".
  • Weighted Relevancy
  • Content Sequence
  • Relevancy
  • Earliest First
  • Latest First
    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents

    अध्याय 12—कनान में अब्राहम

    यह अध्याय उत्पत्ति 13-15, 17:1-16, 18 पर आधारित है

    अब्राहम कनान देश में, “भेड़-बकरी, गाय-बैल और सोने-चांदी का धनी” होकर लौटा। लूत अभी भी उसके साथ था और वे फिर बेतेल आए और उन्होंने अपने तम्बू उसी वेदी के पास खड़े किये जो उन्होंने पहले बनाई थी। जल्द ही उन्हें ज्ञात हुआ कि बढ़ी हुई सम्पत्ति अपने साथ बढ़ी हुई कठिनाई लाई थी। कठिनाईयों और परीक्षा के बीच वह एक दूसरे के साथ सामन्जस्य से रहते थे, लेकिन समृद्धि की स्थिति में उनमें कलह का खतरा था। चरागाह, दोनो के पशु-समूह के लिये पर्याप्त नहीं थे और चरवाहों के प्रायः होने वाले आपसी झगड़े सुलझाने के लिये उनके स्वामियों के पास लाए जाते थे। ये स्पष्ट हो चला था कि उन्हें अलग हो जाना चाहिए। अब्राहम आयु में लूत से वरिष्ठ था, लेकिन फिर भी शान्ति बनाए रखने की योजना प्रस्तावित करने में उसने पहल की। हालांकि स्वयं परमेश्वर द्वारा उसे वह सारा क्षेत्र दिया गया था, लेकिन उसने शिष्टतापूर्वक अपना अधिकार छोड़ दिया।PPHin 125.1

    “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच” उसने कहा, “झगड़ा न होने पाए, क्योंकि हम लोग भाई-बन्धु है। क्या सारा देश तेरे सामने नहीं? इसलिये मुझ से अलग हो जा, यदि तूबांई ओर जाए तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा, और यदि तू दाहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊंगा। PPHin 125.2

    यहाँ पर अब्राहम की शिष्टतापूर्ण, निःस्वार्थ भावना प्रदर्शित होती है। ऐसी परिस्थितियों में कितने, सम्भावित संकट के बावजूद, अपने निजी अधिकारों और पसन्द से लिपटे रहेंगे! कितने घराने, इस तरह अलग-अलग हो गए! कितनी कलीसियायें सत्य के उद्देश्य को दुष्टों के बीच एक पर्याय और निन्दा का विषय बनाते हुए विभाजित हो गई है! अब्राहम ने कहा, “मेरे और तेरे बीच कोई झगड़ा न होने पाए क्‍योंकि हम केवल प्राकृतिक सम्बन्ध द्वारा ही नहीं वरन्‌ सच्चे परमेश्वर के आराध्य होते हुए, “भाई-बन्धु है”। समस्त संसार में परमेश्वर की संताने एक परिवार है और उन्हें प्रेम और समझौते की समान भावना के अधीन होना चाहिए। हमारे उद्धारकर्ता की शिक्षा रोमियों 12:10 में पाई जाती है, “भाईचारे के प्रेम से एक-दूसरे से स्नेह रखो, परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो ।” एक समान शिष्टाचार के विकास से दूसरों के साथ स्वयं के प्रति जैसा व्यवहार करने की सहमति होने से जीवन की आधी बुराईयाँ समाप्त हो सकती है। स्वयं की उन्‍नति की भावना शैतान की भावना है, लेकिन जिस हृदय में मसीह के प्रेम को संजोया जाता है उसमें वह उदारता होती है जो स्वार्थी नहीं होती। ऐसे लोग ईश्वरीय आज्ञा का पालन करते है, “हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन्‌ दूसरी के हित की भी चिन्ता करे” फिलिप्पियों 2:4 PPHin 125.3

    हालांकि, लूत को अपनी समृद्धि के लिए अब्राहम का आभारी होना चाहिये था, लेकिन उसने अपने हितकारी के प्रति कोई कृतज्ञता नहीं दिखाई। शिष्टाचार के नाते उसे चयन का अधिकार अब्राहम के पास ही रहने देना चाहिये था, लेकिन स्वार्थी होकर उसने उसके सारे लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया। उसने “आखं उठाकर, यरदन नदी के पास वालीसारी तराई को देखा कि वह सब जलपूर्ण थी......सोअर तक वह तराई यहोवा की वाटिका और मिस्त्र देश के समान उपजाऊ थी। पूरे फिलिस्तीन में यरदन की तराई, सबसे उपजाऊ क्षेत्र था जो देखने वालों को गंवा दी गई अदन की वाटिका की याद दिलाती थी, और हाल ही में छोड़े हुए, नील नदी द्वारा उपजाऊ बनाए क्षेत्र की सुन्दरता और समृद्धि से बराबरी करती थी। वहां समृद्ध और देखने लायक सुन्दर शहर भी थे जो अपने भीड़-भरे बाजारों में लाभदायक अवैध व्यापार के लिये आकर्षण थे। सांसारिक लाभ की कल्पना से चकाचौंध, लूत ने वहां मिलने वाली नैतिक और आत्मिक बुराईयों पर ध्यान नहीं दिया। तराई के निवासी “यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे।” या तो इस बात से वो अनजान था या जानते हुए भी इस बात को उसने गम्भीरता से नहीं लिया। वह “उस बुराई के नगरों में रहने लगा और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया ।” उस स्वार्थ भरे चयन के भयावह परिणामों की उसने कितनी कम पूर्वकल्पना की! PPHin 126.1

    लूत से अलग होने के पश्चात अब्राहम को फिर से परमेश्वर द्वारा सम्पूर्ण राज्य का आश्वासन मिला। इसके तत्पश्चात अब्राहम छेब्रोन में स्थानान्तरित हो गया जहां उसने ममरे के ओक वृक्षों के नीचे अपना तम्बू खड़ा किया और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई। जहां पहाड़ी तराईयों की खुली हवा थी, जहाँ जैतून की वृक्ष-वाटिकाएं और दाख के बगीचे, झूमते धान के खेत, चारों तरफ की पहाड़ियों के फैले हुए चरागाह थे, वहां अब्राहम जा कर बसा। सदोम की तराई की संकटमय शान और शौकत कोलूत के लिये छोड़कर, यह कुलपिता अपने साधारण जीवन से सन्तुष्ट था। अब्राहम को पड़ोसी देशों से एक शक्तिशाली राजकुमार और एक बुद्धिमान व योग्य मुखिया होने का सम्मान प्राप्त था। उसने अपने प्रभाव को अपने पड़ोसियों से परे नहीं रखा। मूर्तिपूजकों के बिल्क॒ल विपरीत, उसके जीवन और चरित्र ने सच्चे विश्वास के पक्ष में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता अविचलित थी, उसका मित्रतापूर्ण व्यवहार और हितैषिता विश्वास और मेत्री को प्रेरित करती थी और उसकी स्वभाविक महानता उसे आदर और सम्मान का पात्र बनाती थी।PPHin 126.2

    उसके धर्म के बारे में यह मान्यता नहीं थी कि वहकड़े पहरे मेंसंभाल कर रखे जाने वाली अनमोल निधि है या जिसका आनन्द केवल उसका स्वामी ही ले सकता है। सच्चा धर्म ऐसा नहीं होता क्योंकि ऐसी भावना सुसमाचार के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है। जब मसीह हृदय में वास करता है तो उसकी उपस्थिति के प्रकाश को छुपा कर रखना असम्भव है और ना ही वह प्रकाश फीका पड़ सकता है। इसके विपरीत जैसे-जैसे आत्मा पर छाने वालें स्वार्थ और पाप के कोहरे को धार्मिकता के सूरज की प्रकाशमान किरणें दूर करती है, वैसे-वैसे यह प्रकाश और उज्जवल होता जाता है। PPHin 127.1

    परमेश्वर के लोग धरती पर उसके प्रतिनिधि हैं और वो चाहता है कि वे इस संसार के नैतिक अन्धकार में प्रकाश समान हो। देश भर में, नगरों में, शहरों में और गांवो में फैले हुए वे परमेश्वर के साक्ष्य हैं, और वह माध्यम है जिनके द्वारा परमेश्वर अविश्वासी जगत में अपने अनुग्रह के आश्चर्यकर्म और अपनी इच्छा का ज्ञान पहुँचाएगा ।यह उसकी योजना है कि महान उद्धार को प्राप्त करने वाले सभी उसके लिये धर्म प्रचारक बने। मसीही की पवित्रता वह मानक स्थापित करती है जिसके आधार पर जगतवासी सुसमाचार को जांचते है। धैर्य के साथ सहे संकट, आभार के साथ प्राप्त की हुई आशीषें, दीनता, दयालुता, उदारता और प्रेम का स्वभाविक प्रदर्शन वह प्रकाश है जो संसार के सामने प्रकाश समान चमकता है और प्राकृतिक हृदय के स्वार्थ के परिणामस्वरूप आए अन्धकार का विपरीत रूप दिखाता है। PPHin 127.2

    अपने तीर्थयात्री जीवन की सरलता में दीन, आज्ञापालन में स्थिर, उदारता में शिष्ट और विश्वास में समृद्ध, अब्राहम कूटनीति में विवेकपूर्ण और युद्ध में साहसी और दक्ष भी था। यह जानते हुए भी कि वह एक नए धर्म का शिक्षक था,एमोर की तराई, जहां वह पहले वास करता था, के शासक, राज परिवार से सम्बन्धित तीन भाईयों ने अधिक सुरक्षा के लिये उसे संधि करने हेतु आमन्त्रित करने में अपने मैत्री भाव का प्रदर्शन किया। वह देश हिंसा और दमन से ग्रसित था,इसलिये जल्द ही ऐसा अवसर आया कि वह इस सन्धि का लाभ उठा सके ।PPHin 127.3

    एलाम के राजा कदोर्लाओमेर ने चौदह वर्ष पूर्व कनान पर आक्रमण किया था और उसे अपने अधीन किया था। कई राजकुमारों ने अब विद्रोह किया और चार संधिबद्धों साथ, एलामी राजाने, कनान को अधीकृतकरनेके लिये कूच किया। कनान के पांच राजाओं ने अपनी सेनाओं को संगठित किया और सिद्दीम नामक तराईं में घुसपैठियों का सामना किया, लेकिन वे पूरी तरह से पराजित हुए। सेना का बड़ा भाग काट डाला गया ।और जो बच निकले वे सुरक्षा के लिये पहाड़ो की ओर भाग गए। पराक्रमियों ने तराई के शहरों को लूटा और व्यापक लूट की सामग्री व कई कैदियों, जिनमें लूत और उसका परिवार भी था, सहित प्रस्थान किया ।PPHin 128.1

    माग्रे की ओक की वृक्ष वाटिकाओं में शान्ति में रहते हुए अब्राहम ने एक शराणार्थी से युद्ध की कथा सुनी और उसके भतीजे लूत पर आई विपत्ति के बारे में जाना। उसने लूट की अकृतज्ञता की किसी भी निर्दयी स्मृति को संजो कर नहीं रखा था। उसका लूत के लिये सारा प्रेम जागृत हो गया और उसने संकल्प लिया कि उसे बचाया जाना चाहिये। सबसे पहले ईश्वरीय परामर्श लेकर, अब्राहम ने युद्ध के लिये तैयारी की। अपने जन-समूह से उसने तीन सौ अठारह प्रशिक्षित दासों को बुलाया जो अपने स्वामी की सेवा के लिये परमेश्वर के भय में प्रशिक्षित किये गए थे और युद्ध कौशल में निपुण थे। उसके साथ संधिबद्ध माम्रे, एश्कोल और आनेर अपनी टुकड़ियों सहित जुड़ गए और वे एक साथ घुसपैठियों का पीछा करने निकल पड़े। एलेमियो और उनके संधिबद्धों ने अपना डेरा डान में डाला, जो कनान की उत्तरी सीमा पर स्थित था। विजय-प्राप्ति से आनन्द-विभोर और हारे हुए शत्रु की ओर से आक्रमण से भय-रहित, वे मनोरंजन में मग्न हो गए। कुलपिता अब्राहम ने अपने दासों के अलग-अलग दल बनाकर रात को उन पर चढ़ाई की। उसका आक्रमण इतना सशक्त और अप्रत्याशित था, कि उसे अविलम्ब विजय प्राप्त हुईं। एलाम का राजा मारा गया और और उसकी भयग्रस्त सेना को खदेड़ दिया गया। लूत को सहपरिवार, कैदियों व चलसंपत्ति के साथ वापस लाया गया और विजेताओं के हाथ बहुत सा लूट का माल लगा। परमेश्वर की अधीनता में, अब्राहम की विजय निश्चित थी । यहोवा के उपासक ने ना केवल देश केलिये महान सेवा की थी, बल्कि स्वयं को साहसी भी प्रमाणित किया था। यह स्पष्ट हुआ कि धार्मिकता कायरता नहीं है और अब्राहम के धर्म ने उसे सताए हुए लोगो की रक्षा करने में और अधिकार को कायम रखने में साहसी बनाया था। उसके साहसपूर्ण क॒त्य का आस पास के कबीलों पर व्यापक प्रभावपड़ा । उसकी वापसी पर, सदोम का राजा अपने परिजनों सहित, विजेता को सम्मानित करने बाहर आया। कैदियों को वापस करने की विनती करते हुए, उसने अब्राहम को सारी लूट की सम्पत्ति ले जाने को कहा। लूट की सम्पत्ति पराक्रमी का अधिकार होता है, लेकिन अब्राहम का यह अभियान किसी लाभ के लिये नहीं था, और उसने अभागों का लाभ उठाने से मना कर दिया। लेकिन उसने तय किया कि उसके संधिबद्धों को वह भाग मिलना चाहिये जिसके वे हकदार थे। PPHin 128.2

    ऐसी परीक्षा में बहुत कम, स्वयं को अब्राहम की तरह शिष्ट प्रमाणित कर पाते। बहुत कम ने इतनी सम्पत्ति प्राप्त करने के प्रलोमन में पड़ने से अपने आप को रोका होगा। उसका उदाहरण स्वार्थी, धन-लोलुप भावनाओं के लिये एक फटकार है। अब्राहम मानवता और न्याय के अधिकार को मान्यता देता था। उसका नैतिक व्यवहार इस प्रेरित नीतिवचन का उदाहरण है, “एक-दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना” (लैवव्यवस्था 19:18)। उसने सदोम के राजा से कहा, “परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, उसकी मैं यह शपथ खाता हूँ कि जो कुछ तेरा है उसमें से न तो मैं एक सूत और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा कि तू ऐसा न कहने पाए कि अब्राहम मेरे ही कारण धनी हुआ।” अब्राहम उन्हें यह सोचने का कोई अवसर नहीं देना चाहता था कि उसने युद्ध लाभ के लिये किया था और ना ही वह अपनी समृद्धि का श्रेय उनके उपहारों को देना चाहता था। परमेश्वर ने अब्राहम को आशीष देने की प्रतिज्ञा की थी और सारी महिमा उसी को देनी चाहिये । PPHin 129.1

    दूसरा जो विजयी कुलपिता के स्वागत के लिये बाहर आया, शालेम का राजा, मलिकिसिदक था जो उसकी सेना के जलपान के लिये रोटी और दाखधमु लेकर आया। परमप्रधान का याजक होने के नाते उसने अब्राहम को आशीर्वाद दिया और परमेश्वर का धन्यवाद किया जिसने उसके विद्रोहियों को उसके वश में कर दिया था। और अब्राहम ने उसको सब वस्तुओं का दश्वांश दिया।PPHin 129.2

    अब्राहम प्रसन्‍नचित होकर अपने तम्बू और अपने पशु-समूह में लौट आया, लेकिन उसका मन कष्टप्रद विचारों से विचलित था। वह एक शान्तिप्रिय मनुष्य था जो जहां तक सम्भव होता था, शत्रुता और कलह से दूर रहता था, और भयभीत होकर उसने नरसंहार के दृश्य का स्मरण किया जिसका वह स्वयं साक्षी था। लेकिन वह देश जिनकी सेनाओं को उसने पराजित किया था, कनान पर निश्चय ही आक्रमण को सक्रिय कर उसे अपने बदले का विशेष लक्ष्य बनाते। इस प्रकार के राष्ट्रीय झगड़ों में उलझकर उसके जीवन की शान्ति भंग होने का डर था और तो और अभी उसे कनान का स्वामित्व नहीं मिला था और न ही वह उत्तराधिकारी की आशा कर सकता था, जिसमें प्रतिज्ञा परिपूर्ण हो सकती थी।PPHin 129.3

    रात के एक स्वप्नदर्शन में यह अलौकिक वाणी सुनाई दी, “हे अब्राहम, मत डर” यह बोल राजाओं के राजा के थे, “तेरी ढाल और तेरा अत्यन्त बड़ा प्रतिफल में हूँ” लेकिन उसका मन आने वाले संकट के पूर्वाभास से इतना परेशान था कि वह पहले वाले निःसन्देह विश्वास के साथ प्रतिज्ञा को नहीं समझ पाया। उसने उसके परिपूर्ण होने के स्पष्ट प्रमाण के लिये प्रार्थना की ।और वाचा की प्रतिज्ञा कैसी पूरी होनी थी, जब वह पुत्र की आशीष से वंचित था? उसने कहा “मुझे तो तूने वंश नहीं दिया और क्या देखता हूँ कि मेरे घर में उत्पन्न हुआ एक जन मेरा वारिस होगा।” PPHin 130.1

    उसने गोद लेकर अपने विश्वसनीय दास एलीआज़ार को अपना पुत्र व अपनी धन-सम्पत्ति का उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन उसे आश्वासन दिया गया कि उसका जो निज पुत्र होगा, वही उसका वारिस होगा। फिर उसे तम्बू से बाहर ले जाया गया और उसे कहा गया कि आकाश में चमकते हुए असंख्य तारों की ओर दृष्टि करे और जब उसने ऐसा किया तो ये शब्द बोले गए, “तेरा वंश ऐसा ही होगा।” “अब्राहम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।” रोमियों 4:3PPHin 130.2

    अभी भी कुलपिता ने एक सदृश्य चिन्ह की विनती की जिससे उसके विश्वास का पुष्टिकरण हो सकते और आने वाली पीढ़ियों को यह प्रमाण मिल सके कि उनके लिये परमेश्वर की अनुग्रहकारी योजनाओं का परिपूर्ण होना निश्चित है। विधिवत कार्य के पुष्टिकरण हेतु मनुष्यों में परम्परागत तरीके को अपनाते हुए परमेश्वर ने अब्राहम के साथ वाचा बांधना स्वीकार किया। ईश्वरीय निर्देशन में अब्राहम ने तीन वर्ष की एक कलोर, तीन वर्ष की एक बकरी और तीन वर्ष का एक मेढ़ा, एक पिण्डुक और एक कबूतर के बच्चे की बलि चढ़ाई । इन सभी को लेकर उसने बीच से दो टुकड़े कर दिये और टुकड़ो को आमने सामने रखा पर चिड़ियों के उसने टुकड़े नहीं किए। ऐसा करने के पश्चात वह श्रद्धापूर्वक बलि के अंशों के बीच से निकला और परमेश्वर के प्रति अखंडित आज्ञाकारिता की प्रतिज्ञा की। सर्तक और अटल, वह सूर्यास्त तक उन टुकड़ो के पास रहा ताकि वह उन्हें माँसाहारी पक्षियों द्वारा खाए जाने से या अशुद्ध करने से सुरक्षित रख सके। जब सूर्य अस्त होने लगा तबअब्राहम को गहरी नींद आई और देखो, अत्यन्त भय और महाअन्धकार ने उसे छा लिया। और परमेश्वर की वाणी सुनाई दी जो उसे कह रही थी कि वह प्रतिज्ञा के देश के तत्काल स्वामित्व की अपेक्षा न करे और उसके वंशजो पर, कनान में स्थापित होने से पूर्व, आने वाली आपदाओं का संकेत दिया। मसीह की मृत्यु में, महान बलिदान में, उसकी महिमा के साथ आगमन में उद्धार की योजना से उसे अवगत कराया गया। अब्राहम ने यह भी देखा कि प्रतिज्ञा के अन्तिम और सम्पूर्णपरिपूर्णता के तौर पर अनन्त सम्पत्ति के रूप में अदन की सुन्दरता में पुनः निर्मित धरती उसे दी जायेगी । PPHin 130.3

    परमेश्वर और मनुष्य के बीच वाचा की शपथ जैसे, एक अंगीठी जिसमें से धुआं उठता था, और एक जलती हुई मशाल, ईश्वर की उपस्थिति के चिन्ह, उन टुकड़ो के बीच में से होकर निकली और उन टुकड़ो को भस्म कर दिया। और अब्राहम को फिर से एक आवाज सुनाईं दी जिसने उसके वंशजो के लिये कनान देश के उपहार की पुष्टि की, “मिस्त्र के महानद से लेकर फरात नामक बड़े नद तक जितना देश।”PPHin 131.1

    जब अब्राहम कनान में लगभग पच्चीस वर्ष व्यतीत कर चुका था तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, “में सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा”। श्रद्धायुक्त विस्मय से कुलपिता अपने मुहँ के बल गिरा और परमेश्वर उससे यूं बाते करता रहा, “देख मेरी वाचातेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा।” इस वाचा के परिपूर्ण होने के चिन्ह स्वरूप उसका नाम अब्राम से अब्राहम हो गया, जिसका मतलब है, “जातियों के समूह का मूलपिता” सारै का नाम सारा हो गया-'राजकमारी’ “क्योंकि वह जाति-जाति की मूलमाता हो जाएगी और उसके वंश में राज्य-राज्य के राजा उत्पन्न होंगे। PPHin 131.2

    इस समय जोविश्वास उसने बिना खतने की दशा में दर्शाया था, उसके परिणामस्वरूप धार्मिकता पर छाप के रूप में अब्राहम को खतने की विधि दी गई । कुलपिता व उसके वंशजों को चिन्ह के रूप में इसका पालन करना था यह बताने के लिये कि वे परमेश्वर की सेवा के लिये समर्पित हैं और इस तरह मूर्तिपूजा करने वालों से अलग किए गए है, और परमेश्वर ने उन्हें उसकी अनमोल निधि के रूप में स्वीकार किया है। इस विधि के माध्यम से वे अब्राहम के साथ बांधी गई वाचा के प्रतिबन्धों को पूर्ण करने के लिये वचनबद्ध थे। उनको अन्य जातियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध नहीं बनाने थे, ऐसा करने से वे परमेश्वर और उसकी व्यवस्था का निरादर करते, वे अन्य देशों के पापमय अभ्यासमें भागीदार होने को प्रलोभित होते और मूर्तिपूजा में पड़ जाते। PPHin 131.3

    परमेश्वर ने अब्राहम को बहुत सम्मान दिया। स्वर्गदूतों मित्रों जैसे उससे बात-चीत करते और उसके साथ चलते थे। सदोम पर आने वाली दण्डाज्ञा का तथ्य उससे छुपा नहीं था और वह पापियों और परमेश्वर के बीच मध्यस्थ बना। स्वर्गदूतों का उसके साथ साक्षात्कार, अतिथि-सत्कार का उत्तम उदाहरण है। PPHin 132.1

    ग्रीष्मऋतु की तपती दोपहर में कुलपिता अपने तम्बू के द्वार पर बेठे शान्त स्थल-प्रकृति को देख रहा था जब उसने तीन यात्रियों को दूर से आते हुए देखा । उसके तम्बू तक पहुँचने से पूर्व, वे ठहरे जैसे रास्ते के सम्बन्ध में परामर्श कर रहे हों। उनके सहायता मांगने से पहले ही, अब्राहम जल्दी से उठा और जब वे सम्भवत दूसरी दिशा में मुड़ रहे थे, वह उनके पीछे गया और शिष्टतापूर्वक उनसे विनती की कि वे जलपान के लिये रूककर उसका सम्मान करे। वह स्वयं जल लेकर आया कि वे अपने पैरों पर लगी यात्रा की धूल को धो सकें। उनके खाने काउसने स्वयं चयन किया, और जब वे ठण्डी छाया में विश्राम कर रहे थे, उसने उनके मनोरंजन का प्रबन्धन किया गया और वह आदर भाव के साथ तब तक उनके पास खड़ा रहा जब तक वे उसके अतिथि-सत्कार को ग्रहण करते रहे । शिष्टाचार का यह कृत्य इतना महत्वपूर्ण है कि एक प्रेरित अनुयायी ने हजार वर्ष पश्चात इसके सन्दर्भ में कहा, “अतिथि-सत्कार करना न भूलना, क्योंकि इसके द्वारा कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया ।”इब्रानियों 13:2PPHin 132.2

    अब्राहम ने अपने अतिथियों मे केवल तीन थके हुए यात्रियों को देखा, बिना सोचे कि उनमें से एक है जो निष्पाप है और वह उसकी आराधना करेगा। लेकिन स्वर्ग के दूतों का वास्तविक चरित्र अब स्पष्ट हुआ। हालांकि वे क्रोध के वाहकों के रूप में अपनी राह पर थे, लेकिन विश्वास के पिता, अब्राहम के साथ उन्होंने पहले आशीषों की बात कही। हालाँकि परमेश्वर दुष्टता की सुधि लेने में और पापियों को दण्डित करने में कठोर है, लेकिन उसे प्रतिशोध में आनन्द नहीं आता। विनाश का कार्य उसके लिये विचित्र है जो प्रेम में असीमित है।भजन संहिता 25:14में लिखा है, “यहोवा के भेद को वहीं जानते है जो उससे डरते है।’ अब्राहम ने परमेश्वर का आदर किया और परमेश्वर में अब्राहम के साथ विचार-विनियम करते हुए, अपने उद्देश्यों को उसे बताते हुए, अब्राहम को सम्मानित किया। यहोवा ने कहा, “यह जो मैं करता हूँ. उसे क्‍या अब्राहम से छिपा रखूँ? सदोम और अमोरा की चिललाहट बढ़ गईं है, और इनका पाप बहुत भारी हो गया है। इसलिये मैं उतरकर देखूँगा कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुँचती है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं, और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।” परमेश्वर को भली-भांति सदोम के अपराध-बोध का अनुमान था, लेकिन उसने स्वयं को उसी तरह व्यक्त किया जैसे कि मनुष्य करते है, ताकि उसके व्यवहार में न्याय को समझा जा सके। वह स्वयं नीचे उतरेगा और उनके क्रिया कलापों को जांच कर यह निर्धारित करेगा कि उन्होंने ईश्वरीय दया की सीमा तो पार नहीं की और ऐसा होने पर उन्हें पश्चताप का मौका देगा । PPHin 132.3

    उनमें से स्वर्ग के दो सन्देशवाहक चले गए और अब्राहम को उसके साथ छोड़ गए, जिसे वह अब परमेश्वर के पुत्र के रूप में पहचानता था। और विश्वास के पिता ने सदोम-वासियों के लिये विनती की। एक बार उसने उन्हें अपनी तलवार से बचाया था और अब वह उन्हें प्रार्थना के द्वारा बचाने का प्रयत्न कर रहा था।लूत और उसका घराना अभी भी वहां रह रहा था और जिस निस्स्वार्थ प्रेम ने अब्राहम को उन्हें एलामियों से बचाने को प्रेरित किया था, उसी प्रेम ने अब यदि परमेश्वर की इच्छा थी तो, पवित्र दण्डाज्ञा से बचाना चाहा।PPHin 133.1

    अत्यन्त आदर और दीनता के साथ उसने आग्रह किया, हे प्रभु सुन मैं तो मिट्टी और राख हूँ तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूँ ।” इसमें न तो आत्मविश्वास था, और न ही अपने धर्मी होने की बढ़ाई करना। परमेश्वर की इच्छानुसार अपने द्वारा दी गई बलि की भेंटो या अपनी आज्ञाकारिता को उसने परमेश्वर से अति-कृपा पाने का आधार नहीं बनाया। स्वयं को पापी मानते हुए, उसने दूसरे पापियों की ओर से विनती की। एसी ही भावना उन सब में होनी चाहिये जो परमेश्वर से आग्रह करते हैं। अब्राहम ने ऐसा विश्वास प्रकट किया जैसा कि एक बच्चा अपने प्रिय पिता से विनती करने में दिखाता है। वह स्वर्ग से आए सन्देश वाहक के निकट आया और आग्रपूर्वक याचना की। हालांकि, लूत सदोम का वासी हो गया था, लेकिन उसने वहां के निवासियों की दुष्टता का अंगीकार नहीं किया था। अब्राहम ने सोचा कि उस जनपूर्ण शहर में सच्चे परमेश्वर के और भी उपासक होंगे। इस दृष्टिकोण से उसने विनती की, “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी का भी नाश करेगा? यह तुझ से दूर रहे, क्‍या सारी पृथ्वी का न्‍यायी न्याय न करे, अब्राहम ने एक नहीं अनेकों बार पूछा। निवेदन स्वीकार होने पर उसका साहस बढ़ता गया और वह तब तक विनती करता रहा जब तक उसे यह आश्वासन नहीं मिला कि यदि उस शहर में दस धर्मी मनुष्य भी मिले तो उसे नष्ट नहीं किया जाएगा।PPHin 133.2

    अब्राहम की प्रार्थना मरती हुई आत्माओं के लिये प्रेम से प्रेरित हुई। वह उस भ्रष्ट शहर के पापों से तो घृणा करता था, लेकिन पापियों को बचाना चाहता था। सदोम के प्रति उसकी गहरी संवेदना प्रतीक है उस चिन्ता भरी उत्सुकता का जिसका आभास हमें पश्चतापहीन लोगों के प्रति होना चाहिये। हमें पाप से घृणा लेकिन पापी के प्रति प्रेम और दया दिखानी चाहिये। हमारे चारों ओर आत्माएं उस विनाश की ओर जा रही है,जो सदोम के विनाश जैसा आशाहीन और भयानक है। हर दिन किसी न किसी की परख अवधि समाप्त हो रही है। हर घण्टे कोई न कोई ईश्वर की दया की पहुँच से बाहर होता जा रहा है। और कहां है वे चेतावनी और निवेदन भरी आवाजें जो पापियों को इस भयावह विनाश से दूर भाग जाने को कहें? कहां हैं वे फैलाए हुए हाथ जो इन्हें भयानक मृत्यु से पीछे खींच सके? कहां है वो जो दीनता और दृढ़ विश्वास के साथ परमेश्वर से विनती कर रहे है?PPHin 134.1

    अब्राहम की भावना मसीह की भावना थी। स्वयं परमेश्वर का पुत्र पापी की ओर से महान अधिवक्ता है। वह जिसने पापी के उद्धार की कीमत चुकायी है, मनुष्य के मोल को जान सकता है। बुराई के प्रति असीम घृणा करते हुए, जो एक बेदाग पवित्र स्वाभाव ही कर सकता है, मसीह ने पापी के प्रति उस प्रेम की अभिव्यक्ति की जो केवल अपरिमित अच्छाई ही उत्पन्न कर सकती है। क्रूस पर चढ़ाए जाने की यातनाओं के बीच, समस्त संसार के पापों का बोझढोते हुए भी उसने उसके हत्यारों और ठट्ठा करने वालों के लिये प्रार्थना की है,“हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्‍योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रह ह ।”-लूका 23:34PPHin 134.2

    अब्राहम के सन्दर्भ में लिखा गया है कि “वह परमेश्वर का मित्र कहलाया” और “उन सब का पिता ठहरा जो विश्वास करते हैं।” (याकूब 2:23, रोगियों 4:11)इस निष्ठावान कुलपिता के लिये परमेश्वर की गवाही है, “क्योंकि अब्राहम में मेरी मानी और जो मैने उसे सौंपा था उसकी और मेरी आज्ञाओं, विधियों और व्यवस्था का पालन किया है, और “मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार को, जो उसके पीछे रह जाएंगे, आज्ञा देगा कि वह यहोवा के मार्ग में अटल बने रहे, और धर्म और न्याय करते रहें, ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करे।” जिन लोगों के द्वारा प्रतिज्ञा के मसीह के आगमन सम्बन्धित सर्वजगतवासियों को आशीष मिलनी थी, जो सदियों तक जगत के लिये परमेश्वर के सत्य के संरक्षक और अभिभावक रहे, उनका पिता कहलाने के लिये बुलाया जाना, अब्राहम के लिये उत्कृष्ट सम्मान था। जिसने कुलपिता के लिये बुलाहट भेजी उसने उसे इस योग्य पाया। वह परमेश्वर है जो बोलता है। जो बहुत दूर तक के विचारों को भांप लेता है और मनुष्य पर सही अनुमान लगाता है, वह कहता है, “मैं इसे जानता हूँ”। अब्राहम स्वार्थपूर्ण प्रयोजनों के लिये सत्य को झुठलाने वालों में से नहीं था। वह व्यवस्था और समझौते का न्यायपूर्वकता और सत्यपरायणता सहित पालन करने वाला था। स्वयं परमेश्वर का भय मानने के साथ-साथ वह अपने घर-परिवार में धर्म को बढ़ावा देता था। वह अपने परिवार को सिद्धता को शिक्षा देता। परमेश्वर की व्यवस्था उसके घराने का नियम होता था। PPHin 134.3

    अब्राहम के घराने में हजार से भी अधिक प्राणी थे। जो उसके नेतृत्व में परमप्रधान परमेश्वर की उपासना करने लगे थे, उन्हें उसके डेरे में घर मिला और यहां उन्हें सच्चे विश्वास के प्रतिनिधि के रूप में तैयार करने वाली शिक्षा उसी प्रकार मिली, जैसे कि किसी पाठशाला में मिलती है। इस तरहउस पर एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व था। वह परिवार के मुखियाओं को प्रशिक्षित कर रहा था, और जिन घरानों का वे संचालन कर रहे थे, उन घरानों में अब्राहम के निर्धारित किये नियमों का पालन होना था।PPHin 135.1

    प्राचीन काल में पिता अपने सम्पूर्ण परिवार का मुखिया और धर्माध्यक्ष होता था और उसका अपनी संतान पर तब भी अधिकार होता था, जब वे खुद परिवार वाले हो जाते थे। उसके वंशजो को उसे मुखिया मानने की शिक्षा दी गई। अब्राहम इस पुरूष प्रधान शासन-व्यवस्था को स्थायी बनाना चाहता था क्‍योंकि यह परमेश्वर के ज्ञान को संरक्षित रखने में सहायक होती। मूर्तिपूजा इतनी व्यापक और गंभीरस्थ हो गई थी कि उस पर रोक लगाने हेतु परिवार के सदस्यों में एका बनाए रखना अनिवार्य था।अब्राहम ने अपनी क्षमतानुसार छावनी के सहवासियों को अधर्मियों के साथ मेल-जोल बढ़ाने से और उनकी मूर्तिपूजक परम्पराओं के दर्शक होने से बचाए रखने के हर साधन द्वारा प्रयत्न किया, क्योंकि वह जानता था कि बुराई से अंतरगता सिद्धान्तों को अलक्ष्य रूप से भ्रष्ट कर सकती थी।हर प्रकार के कृत्रिम धर्म को बाहर रखने का बहुत ध्यान रखा गया और आराधना योग्य जीवित परमेश्वर के वैभव और महिमा से मन को प्रभावित करने के प्रयत्न किये गए ।PPHin 135.2

    यह परमेश्वर द्वारा स्वयं किया गया ज्ञानपूर्ण प्रबन्ध था, कि जहां तक सम्भव हो, उसके लोगों को अन्य जातियों के संपर्क से अलग रखा जाए और अन्य देशों में सम्मिलित न करके उन्हें एक पृथक सम्प्रदाय बनाया जाए। उसने अब्राहम को उसके मूर्तिपूजक परिजनों से अलग किया था ताकि मेसोपोतामिया के लुभावने प्रभाव से परे कुलपिता अपने परिवार को शिक्षित और प्रशिक्षित कर सके और आने वाली हर पीढ़ी के वंशजो द्वारा सच्चे विश्वास की पवित्रता संरक्षित रहे । PPHin 136.1

    अपनी संतानों और घराने के प्रति प्रेम ने अब्राहम को उनके धर्म-सम्बन्धी विश्वास की सुरक्षा करने उन्हें और उनके द्वारा पूरे जगत को, उसकी सबसे महत्वपूर्ण मीरास के रूप में पवित्र नियमों की शिक्षा प्रदान करने को प्रेरित किया । सब को यह शिक्षा दी गई कि वे आलौकिक परमेश्वर के नियमाधीन थे। अभिभावकों की ओर से दमनऔर बच्चों की ओर से अवज्ञा का कोई स्थान नहीं था। परमेश्वर की व्यवस्था ने सभी के कार्य निर्धारित किये थे और उसी का पालन करने से उन्हें शान्ति और समृद्धि प्राप्त हो सकती थी।PPHin 136.2

    अब्राहम का निजी उदाहरण, उसके दैनिक जीवन का निःशब्द प्रभाव, एक स्थायी सबक था। वह अटल सत्यनिष्ठा, वह उदारता और निःस्वार्थ कृतज्ञता, जिन्हें राजाओं ने भी सराहा, उसके घर में दिखती थी। उस जीवन में एक सुगन्ध थी, चरित्र में भद्रता और माधुर्य था जो उसके स्वर्ग से जुड़े होने को प्रमाणित करता था। उसने सबसे निम्न दास की आत्मा की भी उपेक्षा नहीं की। उसके घराने में स्वामी और दास के लिये अलग-अलग नियम नहीं थे और न ही धनवान और निर्धनों के प्रति व्यवहार में अन्तर था। सभी के साथ जीवन के अनुग्रह के उत्तराधिकारी समान न्यायपूर्ण और करूणामय व्यवहार किया जाता था।PPHin 136.3

    “वह अपने घराने का संचालन करेगा।” बच्चों की पापमय प्रवृति पर रोक न लगाने की अधर्मी उपेक्षा का, निर्बल, विवकेहीन, क्षमाशील पक्षपात का, गलत समझे हुए प्रेम के आगे कत॑व्यपरायणता के परित्याग का कोई स्थान नहीं था। अब्राहम को न केवल सही निर्देश देने थे, वरन्‌ न्याय संगत और पवित्र नियमों की मान्यता को भी बनाए रखना था। PPHin 137.1

    हमारे समय में कितने कम है ऐसे लोग जो इस उदाहरण का अनुसरण करेंगे! कोई अभिभावक एक अन्धा, स्वार्थपूर्ण संवेदनशील, कृत्रिम प्रेम दिखाते हुए, अपने बच्चों को उनके अविकसित विवेक के अनुशासनहीन आवेग के साथ मनमर्जी करने को छोड़ देते है। यह नौजवानों पर किया हुआ घोर अत्याचार है और जगत के लिये अपराध। अभिभावकों के अनुचित दुलार से परिवारों और समाज में अव्यवस्था पनपती है। ईश्वरीय अपेक्षाओं के प्रति समर्पित होने के बजाए, बच्चों में स्वयं की रूचियों को तृप्त करने की अभिलाषा घर कर लेती है। इस कारण वे ऐसे हृदय के साथ बड़े होते है, जो परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध काम करता है और उनकी यह अधर्मी, असमर्पित भावना को अपनी संतानों और संतानों की संतानों में भी पहुँच जाती है। अब्राहम के समान, अभिभावकों को अपने घरानों का संचालन स्वयं करना चाहिए। परमेश्वर के प्रभुत्व के प्रति आज्ञाकारिता में पहले चरण के रूप में पैतक अधिकार की मान्यता देने की शिक्षा दी जानी चाहिये। PPHin 137.2

    धर्माध्यक्षों द्वारा परमेश्वर की व्यवस्था की अपर्याप्त मान्यता देने के कारण कई बुराईयाँ उत्पन्न हुई। उनकी शिक्षा जो इतनी व्यापक हो गई है कि मनुष्य पवित्र नियमबद्ध न रहा, उस शिक्षा का मनुष्य की नैतिकता पर मूर्तिपूजा जैसा प्रभाव पड़ता है। जो प्रयत्न करते हैं, वे प्रत्यक्ष रूप से राज्यों और परिवारों की शासन-प्रणाली की नींव पर चोट करते हैं। धर्म-प्रधान अभिभावक यदि परमेश्वर के नियमानुसार नहीं चलते है, तो वे अपने घराने को परमेश्वर के बताए पथ पर नहीं चला सकते। जब सन्ताने स्वयं अपने परिवार स्थापित करते है, तो वे अपने बच्चों को वह सिखाने के लिये कर्तव्यबद्ध नहीं समझते जो उन्हें कभी नहीं सिखाया गया। इसी कारण कई परिवार ईश्वररहित है, इसी कारण दुष्टता इतनी व्यापक और अति है।PPHin 137.3

    जब तक अभिभावक स्वयं शुद्ध हृदय से परमेश्वर की व्यवस्था में नहीं चलते, वे अपनी संतानों को व्यवस्था मानने को बाध्य नहीं कर सकते। इस सन्दर्भ में गम्भीर और व्यापक सुधार की आवश्यकता है। अभिभावकों में सुधार की आवश्यकता है, धर्माध्यक्षों में सुधार की आवश्यकता है। उनके घराने को परमेश्वर की आवश्यकता है। अगर उन्हें परिस्थिति में कुछ अलग प्रतीत होता है, तो उन्हें अपने परिवारों में परमेश्वर के वचन को लाना चाहिये और उसे अपना सलाहकार बनाना चाहिये [उन्हें अपने बच्चों को सिखाना चाहिये कि यह परमेश्वर की वाणी है और उन्हें इसका कहा मानना चाहिये। उन्हें धैर्य के साथ उन्हें निर्देश देने चाहिये और नग्रतापूर्वक व बिना थके उन्हें सिखाना चाहिये कि वे किस तरह अपना जीवन व्यतीत करें, जिससे परमेश्वर प्रसन्‍न हो। ऐसे घरानों के बीच मूर्तिपूजा के कृतक का उत्तर देने को तैयार होते है। उन्हें बाईबल को अपने विश्वास का आधार माना होता है और उनकी नींव संदेहवाद के प्रवाह में नहीं बह सकती । PPHin 137.4

    कई घरों में प्रार्थना की उपेक्षा होती है। माता-पिता को लगता है कि उनके पास सुबह-शाम की प्रार्थना के लिये समय नहीं है। परमेश्वर की बहुतायत से दी हुई कृपा, वर्षा की वौछार और सूर्य की रोशनी, जो वनस्पति को पनपाती है, व पवित्र स्वर्ग॑दूतों द्वारा दी गईं सुरक्षा के लिये उसका धन्यवाद करने के लिये कुछ पल भी नहीं निकाल सकता। अपने घराने में मसीह की स्थायी उपस्थिति और ईश्वरीय सहायता और मार्गदर्शन के लिये प्रार्थना का समय भी नहीं होता। बिना स्वर्ग या परमेश्वर का विचार किए, में बैल या घोड़े की तरह अपने-अपने कार्यों के लिये निकल पड़ते है। उनकी आत्माएं इतनी मूल्यवान है कि उनका सर्वनाश होने के बजाय परमेश्वर के पुत्र ने उन्हें बचाने के लिये अपना जीवन दे दिया, लेकिन वे उसकी अति अच्छाई की सराहना मरते हुए पशुओं से क॒छ ही ज्यादा करते हैं।PPHin 138.1

    प्राचीन कुलपिताओं की भाँति जो भी परमेश्वर से प्रेम रखते है उन्हें जहां वे अपना तम्बूखड़ा करते है, परमेश्वर के लिये एक वेदी बनानी चाहिये। यदि ऐसा कभी भी ऐसा समय था कि प्रत्येक घर प्रार्थना का घर होना चाहिये तो वह समय अभी है। माता और पिता को अपने बच्चों के लिये दीनता भरी विनती में अपने हृदयों को परमेश्वर की ओर उठाना चाहिए। पिता को घराने का ध्माध्यक्ष होने के नाते सुबह-शाम परमेश्वर की वेदी पर बलि की भेंट चढ़ानी चाहिए और माता और प्रार्थना और स्तुति में एक होना चाहिए [ऐसे घरानों में मसीह को देर तक रहने में आनन्द आता है।PPHin 138.2

    हर मसीही घराने में से एक पवित्र प्रकाश प्रवाहित होना चाहिए। प्रेम की अभिव्यक्ति कार्य में होनी चाहिए। स्वयं को संवेदनशील दयालुता व नम्र, निस्वार्थ कृतज्ञता में प्रकट करते हुए यह प्रेम घर के पारस्परिक व्यवहार में प्रवाहित होना चाहिये। ऐसे घर है जहां इस सिद्धान्त का पालन किया जाता है, जहां परमेश्वर की आराधना होती है और जहां प्रेम प्रभावशाली होता है, इन घरों से सुबह शाम अगरबत्ती के घुएं रूपी सुबह-शाम की प्रार्थनाएं ऊपर जाती है और सबुह की ओस रूपी कृपा और आशीष विनती करने वालों पर नीचे आती है। PPHin 139.1

    एक सुव्यवस्थित मसीही घराना मसीही धर्म की वास्तविकता के पक्ष में एक प्रभावशाली तक है, जिसका मूर्तिपूजक भी खण्डन नहीं कर सकते। सब को ज्ञात होता है कि परिवार में एक शक्ति होती है जो दूसरों पर प्रभाव डालती है, और यह कि अब्राहम का परमेश्वर उनके साथ है। यदि तथाकथित मसीही लोगों के घरों का आचरण धर्म प्रधान होता तो वे सकात्मक प्रभाव डाल सकते। वे वास्तव में “जगत की ज्योति” होते। अब्राहम को सम्बोधित किये शब्दों द्वारा परमेश्वर हर विश्वसनीय अभिभावक से बात करता है, “क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें और धर्म और न्याय करते रहे, ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करें।PPHin 139.2

    Larger font
    Smaller font
    Copy
    Print
    Contents