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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 11—अब्राहम को बुलाहट

    बाबुल से विसर्जन के पश्चात मूर्तिपूजा भली-भांति सर्वव्यापी हो गई और पथराए हुए पापियों को अपने दुष्टतापूर्ण आचरण को निभाने के लिये छोड़कर, परमेश्वर ने शेम के वंश से अब्राहम का चयन किया और उसे आगामी पीढ़ियों के लिये अपनी व्यवस्था का संरक्षक बनाया। अब्राहम अन्धविश्वास और मूर्तिपूजा के वातावरण में पला-बड़ा था। परमेश्वर के ज्ञान को संरक्षित रखने वाला उसके पिता का घराना भी अपने चारों ओर के सम्मोहक प्रभावों के आगे समर्पित हो रहा था, और उन्होंने यहोवा के स्थान पर “अन्य देवताओं की उपासना की लेकिन सच्चे विश्वास को विलुप्त नहीं होना था। परमेश्वर ने अपनी आराधना के लिये हमेशा एक बकिया कलीसिया को संरक्षित किया है। अखंडित वंश में आदम, शेत, एनोश, मतूशलेह, नूह और शेम ने युगानुयग परमेश्वर की इच्छा के अनमोल प्रकाशन को संरक्षित करा था। तेरह का पुत्र इस पवित्र-न्यास का उत्तराधिकारी बना। मूर्तिपूजा ने व्यर्थ में उसे हर तरफ से निमंत्रण दिया। अविश्वासियों के बीच विश्वासपूर्ण, प्रचलित अधर्म के बावजूद शुद्ध, वह दृढ़तापूर्वक एक सच्चे परमेश्वर की आराधना करता रहा। भजन संहिता 145:18में लिखा है, “जितने यहोवा को पुकारते है, अर्थात जितने उसको सच्चाई से पुकारते है, उन सभी के वह निकट रहता है।” परमेश्वर ने अपनी इच्छा अब्राहम को व्यक्त की और उसे मसीह द्वारा सम्पन्न होने वाले उद्धार और अपनी व्यवस्था की अपेक्षाओं के बारे में विशिष्ट ज्ञान प्रदान किया ।PPHin 117.1

    अब्राहम को अनगिनत वंशज और राष्ट्रीय महानता का वचन दिया गया, जो उस युग के लोगों के लिये विशेषकर बहुमूल्य था। “मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगाऔर तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम महान करूंगा और तू आशीष का मूल होगा।” साथ ही विश्वास के उत्तराधिकारी को यह भी आश्वासन दिया गया कि उसके वंश में से जगत का उद्धारकर्ता उत्पन्न होगा “भूमण्डल के सारे कल तेरे द्वारा आशीष पाएँगे।” लेकिन इसके परिपूर्ण होने के पहले प्रतिबन्ध के रूप में एक विश्वास की परीक्षा होनी थी, एक बलिदान की मांग रखी गई ।PPHin 117.2

    परमेश्वर का संदेश अब्राहम तक पहुँचा, “अपने देश और अपने कृटम्बियों और अपने घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा।’ अब्राहम को उसके प्रारम्भिक जीवन की संगति से इसलिए अलग करना आवश्यक था ताकि परमेश्वर उसे पवित्र अभिलेखों का रक्षक होने के महान काम के लिये योग्य ठहरा सके। परिजनों और मित्रों का प्रभाव उस अभ्यास में हस्तक्षेप करता जो परमेश्वर अपने दास को देना चाहता था। चूंकिअब्राहम, विशेषतया स्वर्ग के संपर्क में था, उसका अपिरचितों के बीच रहना आवश्यक था। उसका चरित्र सभी लोगों से भिन्‍न होते हए विलक्षण होना था, वह अपनी क्रियाविधि को भी इस प्रकार नहीं समझा सका, जिस तरह उसके मित्र समझ पाते। आत्मिक बातें आत्मिक रीति से जांची जाती है, और उसके प्रयोजन और कार्यकलाप उसके मूर्तिपूजक परिजन नहीं समझ पाए । PPHin 117.3

    इब्रानियों 11:8में लिखा है, “विश्वास ही से अब्राहम, जब बुलाया गया तो, आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेने वाला था, और यह न जानता था कि मैं किधर जाता हूँ. तौभी निकल गया।” अब्राहम का निर्विवाद आज्ञापालन बाईबल में पाया जाने वाला सबसे असाधारण प्रमाणों में से एक है। उसके लिए, “विश्वास आशा की हुईं वस्तुओं का निश्चय और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है ।'इब्रानियों 11:1 जिसके परिपूर्ण होने का कोई बाहरी संकेत नहीं था, उस पवित्र प्रतिज्ञा में विश्वास कर, वह अपने जनन्‍्म-स्थान अपने परिजनों और अपने घर को छोड़कर, यह बिना जाने कि किधर जाएगा, वहां के लिये निकल पड़ा जहां परमेश्वर उसे जाने वाला था ।इब्रानियों 11:9में लिखा है, “विश्वास ही से उसने प्रतिज्ञा किये हुए देश में परदेशी के समान रहकर, इसहाक और याकूब समेत, जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्बुओं में वास किया।PPHin 118.1

    यह कहा जा सकता है कि अब्राहम की परीक्षा और उससे मांगा हुआ बलिदान आसान या तुच्छ नहीं थे। अपने देश अपने परिजनों और अपने घर से वह अटूट बन्धन में बांधा था। लेकिन वह बुलाहट की आज्ञा का पालन करने से नहीं हिचकिचाया। प्रतिज्ञा किये हुए देश से सम्बन्धित उसने कोई प्रश्न नहीं किया कि वहां की धरती उपजाऊ और जलवायु स्वास्थप्रद थी या नहीं, यदि वह देश सुखद वातावरण और धन इकटठा करने के अवसर प्रदान करता था या नहीं। परमेश्वर ने कह दिया और उसके दास को आज्ञा का पालन करना था, उसके लिए संसार का सबसे सुखदायी स्थान वहीं था, जहां परमेश्वर उसे रखना चाहता था।PPHin 118.2

    कई लोग अब्राहम की तरह अभी भी परखे जाते है। वह परमेश्वर की आवाज को प्रत्यक्ष रूप में स्वर्ग से बोलते हुए नहीं सुनते, लेकिन वह उन्हें अपनी समझदारी की घटनाओं और अपने वचन के सिद्धान्तों के माध्यम से बुलाता है। उनसे धन और सम्मान का आश्वासन देने वाले व्यवसाय को त्यागने, स्वजातीय व लाभदायक संपक॑ को छोड़ने व परिजनों से अलग होने और केवलआत्मत्याग, कष्ट और बलिदान के रास्ते पर चलने की अपेक्षा की जा सकती है। परमेश्वर के पास उनसे करवाने के लिये काम है, लेकिन एक सहज जीवन और मित्रों व परिजनों का प्रभाव उस काम की उपलब्धि के लिये अत्यन्त आवश्यक विशेषताओं के विकास में रूकावट डाल सकते हैं। वह उन्हें मानवीय प्रभाव और सहायता से दूर बुलाता है और उन्हें उसकी सहायता की आवश्यकता का आभास कराता है और केवल उसी पर निर्भर होने के लिये विवश करता है ताकि वह स्वयं को उन पर प्रकट कर सके। परिचित संगति और अभिलाषित योजनाओं को परमेश्वर की बुलाहट पर त्याग देने को कोन तैयार है? मसीह की खातिर अपने नुकसान को लाभ समझते हुए, दृढ़ और संहर्ष हृदय से परमेश्वर का कार्य करते हुए, कौन नए कर्तव्य को स्वीकार करेगा और अपरीक्षित क्षेत्रों में प्रवेश करेगा? जो ऐसा करेगा उसके पास अब्राहम का विश्वास होगा और उसके साथ “बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा का भागीदार होगा,” जिसके सामने इस “समय के दुःख और क्लेश कुछ भी नहीं है।“2 कुरिन्थियों 4:17, रोमियों 8:18PPHin 119.1

    स्वर्ग से बुलाहट अब्राहम को सर्वप्रथम तब आईं जब वह “कसदियों के उस नगर” में वास कर रहा था, और आज्ञा का पालन करते हुए वह हारान नामक देश में पहुँचकर वहीं रहने लगा। यहां तक उसके पिता का परिवार उसके साथ था और उन्होंने अपनी मूर्तिपूजा के साथ सच्चे परमेश्वर की आराधना को मिला दिया। यह अब्राहम तेरह की मृत्यु तक रहा। लेकिन जब वह अपने पिता की कब्र के पास ही था ईश्वरीय वाणी ने उसे आगे जाने की कहा। उसका भाई नाहोर औरउसका घराना अपने घर और अपनी मूर्तियों को थामे रहे। हारान का पुत्र बहुत पहले मर चुका था, और अब्राहम की पत्नी सारै के अलावा केवल लूत ने कुलपिता की तीर्थ-यात्री जीवन का भागीदार होने को चुना। लेकिन फिर भी यह एक विशाल सम्प्रदाय था जो मेसोपोटामिया से चला। अब्राहम के पास पहले से ही व्यापक पशुधन और पूरब की सम्पति थी और वह कई शरणागतों और सेवकों से घिरा हुआ था। वह अपने पूर्वजों के देश से कभी न लौटने के लिये जा रहा था और वह जो कुछ भी उसके पास था”जो धन उन्होंने इकट्ठा किया था, और जो प्राणी उन्होंने हारान में प्राप्त किये थे” लेकर चला। इनमें से कई सेवा-भाव व स्वार्थ के प्रतिफल से उच्चतर प्रतिफल से प्रभावित थे। हारान में रहते हुये, अब्राहम और आराधना करने के लिये नेतृत्व किया। ये कुलपिता के घराने से जुड़ गये और प्रतिज्ञा के देश में उसके साथ गए “और वे कनान देश में आ गए।” PPHin 119.2

    शकेम वह जगह थी जहां अब्राहम कुछ देर ठहरा। मोरे के ओक वृक्षों की छाया तले बाल और गिरिज्जीम पहाड़ों के बीच एक चौड़ी हरी-भरी जैतून की वक्ष वाटिकाओं और धारा-प्रवाह स्रोतों से भरपूर घाटी में उसनेअपना तम्बू गाड़ा। कुलपिता ने एक सुन्दर और अच्छे देश में प्रवेश किया था-/जो जल की नदियों का और तराईयों और पहाड़ों से निकले हुए गहरे-गहरे स्रोतों का देश, गेहूँ जॉं दाखलताओं, अंजीरों और अनारों का देश, और तेल वाले जैतून और मधु का देश है ।”-व्यवस्थाविवरण 8:7,8लेकिन यहोवा के उपासक ने देखा कि उस वृक्षयुकत पहाड़ी और फलदायक समतल क्षेत्र एक पर एक गहरी छाया ठहरी हुईथी। “देश में उस समय कनानी थे।” अब्राहम अपनी आशाओं के लक्ष्य पर पहुँच चुका था, जहां उसे एक अन्यजातीय वंश द्वारा अधिकृत और मूर्तिपूजा से भरादेश मिला। उन वृक्ष वाटिकाओं में अन्य देवी-देवताओं की वेदियाँ स्थापित थी और पड़ोस की ऊँचाईयों पर मानव बलिदान की भेंट चढ़ाई जाती थी। ईश्वरीय प्रतीज्ञा को वह पकड़े रहा, लेकिन फिर भी तम्बू तानते समय कष्टप्रद पूर्वाभास से स्वतन्त्र नहीं था। फिर “यहोवा ने अब्राहम को दर्शन देकर कहा, यह देश में तेरे वंश को दूंगा।”/ इस आश्वासन से उसका विश्वास दृढ़ हुआ कि ईश्वर की उपस्थिति उसके साथ थी, जिससे वह दुष्टों की कृपा पर नहीं छोड़ा गया।” उसने वहां यहोवा के लिये, जिसने उसे दर्शन दिया था, एक वेदी बनाई ।” अभी तक वह पथिक ही था और जल्‍द हीवह बेतेल के निकट एक स्थान पर आ गया और वहां भी उसने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई और यहावा से प्रार्थना की । PPHin 120.1

    ‘परमेश्वर का मित्र’ अब्राहम हमारे लिये एक उपयुक्त उदाहरण है। उसका जीवन प्रार्थना का जीवन था। जहां भी वह अपना तम्बू खड़ा करता था, पास ही वेदी भी स्थापित करता था और तम्बू में रहने वाले सभी लोगों को सुबह और शाम के बलिदानों के लिये बुलाता था। तम्बू के हटाए जाने के बाद भी वेदी वहीं रही। आगामी वर्षो में, कनानी कबीलों में कई थे, जिन्होंने अब्राहम से अनुदेश लिये और जब भी उनमें से कोई वेदी पर आता था, उसे ज्ञात होता था कि उससे पहले कौन वहां आया, और जब वह अपना तम्बू वहां खड़ा करता तो वह वेदी को संवारता और सच्चे परमेश्वर की आराधना करता ।PPHin 120.2

    अब्राहम दक्षिण की ओर अग्रसर होता गया और उसके विश्वास को पुन: परखा गया। आकाश ने वर्षा कोथाम लिया, घाटियों में नदियों ने बहना बन्द कर दिया और मैदानों की घास सूख गईं। गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के लिये चरागाह न बचे और छावनी में भुखमरी का भय उत्पन्न हो गया। क्या कुलपिता ने अब भी परमेश्वर के नेतृत्व पर प्रश्न नहीं उठाया? क्‍या वह कसदियों के मैदानों की समृद्धि की ओर चाह से नहीं देखता था? सभी उत्सुकता से देख रहे थे कि अब्राहम क्‍या करेगा जब एक के बाद एक कष्ट उसक ऊपर आए। जब तक उसका विश्वास अविचलित था, उन्हें आशा दिखाई देती थी, वे आश्वस्त थे कि परमेश्वर अब्राहम का मित्र था और वह अभी भी उसका मार्गदर्शन कर रहा था।PPHin 121.1

    अब्राहम परमेश्वर के नेतृत्व को नहीं समझा सकता था, उसकी अपेक्षा परिपूर्णनहीं हुई थी, लेकिन वह परमेश्वर की प्रतिज्ञा को थामे रहा, मैं तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम महान करूंगा और तू आशीष का मूल होगा ।” सच्ची प्रार्थना के साथ उसने चिंतन किया कि किस तरह वह अपने लोगों और पशु समूह के जीवन को संरक्षण देगा, लेकिन परिस्थितियों को परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास को हिलने नहीं देगा। अकाल से बचने के लिये वह मिस्र की ओर चल दिया। उसने कनान को त्यागा नहीं और ना ही अपनी विपत्ति से कसीदी देश में वापसी की जहां से वह आया था और जहां खाद्य-सामग्री का अभाव नहीं था, लेकिन उसने प्रतिज्ञा के देश के निकट एक अस्थायी शरणस्थान ढूंढा, ताकि वह जल्द ही उस जगह लोट आए जहां परमेश्वर ने उसे रखा था। PPHin 121.2

    परमेश्वर ने अपनी पूर्वदृष्टि में अब्राहम की यह परीक्षा उसे धेर्य, विश्वास और समर्पण का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से ली ताकि इसका वर्णन अभिलेखों में उन लोगों की भलाई के लिए किया जा सके, जो आने वाले समय में यातानाएं सहेंगे। परमेश्वर अपने बच्चों का नेतृत्व अज्ञात तरीके से करता है, लेकिन जो उसमें विश्वास बनाए रखते हैं, उन्हें कभी भूलता या छोड़ता नहीं। उसने अय्यूब पर कष्ट आने दिए लेकिन उसे छोड़ा नहीं। उसने अतिप्रिय यहुन्ना को पतमुस के एंकात में जाने दिया, लेकिन परमेश्वर के पुत्र ने उससे वहां भेट की, और वहां उसे अनश्वर प्रताप के दृश्यों के दर्शन हुए। परमेश्वर अपने लोगों पर विपत्तियां आने देता है, जिसमें कि वे अपनी स्थिरता और आज्ञाकारिता से आत्मिक उन्‍नति पाएं और उनका उदाहरण दूसरों के लिये मनोबल का स्रोत हो। यिर्मयाह 29:11में लिखा है, “जो कल्पनाएं मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें में जानता हूँ. वे हानि नहीं, वरन्‌ कुशल की है।” वही परीक्षा जो हमारे विश्वास को कठोरता से परखती हैं, और हमें ऐसा आभास कराती है कि परमेश्वर ने हमें छोड़ दिया है, हमें परमेश्वर के ओर निकट ले जाती है ताकि हम अपने सारे बोझ उसके चरणों में रख दें और उस शान्ति का अनुभव करें जो वह हमें उसके बदले में देना चाहता है। PPHin 121.3

    परमेश्वर ने सदैव ही अपने लोगों को परीक्षा की भटटी में परखा है। भटटी के ताप से ही मसीही चरित्र के खरे सोनेको घातुमल से अलग किया जा सकता है। परमेश्वर उस परीक्षा का निरीक्षण करता है, उसे ज्ञात है कि बहुमूल्य घातु के शुद्धिकरण के लिये किस चीज की आवश्यकता है, जिससे कि उसके प्रेम का प्रकाश प्रतिबिंबित हो सक। गुप्त, कष्टकर परीक्षणों से परमेश्वर अपने दासों को अनुशासित करता है। वह देखता है कि कुछ के पास ऐसी योग्यताएं है जो उसके काम को आगे बढ़ाने के लिये प्रयोग में लाई जा सकती है और उन्हीं लोगों को वह परीक्षा में डालता है। अपनी दूरदर्शिता में वह उन्हें उन पदों पर लाता है जहां उनके चरित्र की परख होती है और उनके वह अवगुण और दुर्बलताएं सामने आती है जिनका उन्हें स्वयं ज्ञान नहीं होता। PPHin 122.1

    वह उन्हें इन अवगुणों को सुधारने का अवसर देता है ताकि वे उसकी सेवा के लिये उपयुक्त हो सके। वह उन्हें उनकी दुर्बलताएं दिखाता है और उन्हें उस पर निर्भर होना सिखाता है क्‍योंकि वही उनका सहायक और सुरक्षा है। इस तरह उसका लक्ष्य पूरा होता है। जिस महान उद्देश्य के लिये उन्हें योग्यताएं दी थी उसे परिपूर्ण करने के लिये वे तैयार, अनुशासित, शिक्षित और प्रशिक्षित किये जाते है। जब परमेश्वर उन्हें काम के लिये बुलाता है, वे तैयार होते है और धरती पर परिपूर्ण होने वाले काम में स्वर्गदूत उनके साथ जुड़ सकते हैं।PPHin 122.2

    मिस्त्र में वास करते समय, अब्राहम ने प्रमाण दिया कि वह मानवीय दुर्बलताओं और त्रुटियों से अछ्ता नहीं था। इस तथ्य को छुपाने में कि सारे उसकी पत्नी थी, उसने ईश्वरीय सुरक्षा में अविश्वास और जिसका उदाहरण उसने प्रायः व उदारता से दिया था उस महान विश्वास और साहस के अभाव को प्रकट किया। सारे देखने में सुन्दर थी और अब्राहम को यकीन था कि वह सांवले मिस्त्र के लोग उस सुन्दर विदेशी के लिये ललचाएँगे और उसे पाने के लिये उसके पति की हत्या करने में नहीं हिचकिचाएंगे। उसने सोचा कि सारे को अपनीबताने में वह झूठ का अपराधी नहीं होगा, क्योंकि वह भले ही उसकी मां की नहीं, लेकिन उसके पिता की पुत्री थी। लेकिन उनके बीच वास्तविक सम्बन्ध को छू पाना धोखा था। सुपरिभाषित सत्यनिष्ठा से किसी भी प्रकार के विपथन को परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिल सकती। अब्राहम के विश्वास में कमी के कारण सारे गम्भीर संकट में पड़ गई। उसकी सुन्दरता की सूचना पाकर, उसे पत्नी बनाने की मंशा से, मिस्त्र के राजा ने उसे महल में ले जाने को कहा। लेकिन दयावान परमेश्वर ने शाही घराने पर विपत्तियाँ भेजकर सारे की रक्षा की। इस प्रयोजन से सम्राट ने इस विषय की सच्चाई को जाना और उसके साथ हुए छल पर क्रोधित हो अब्राहम को उलाहना दी और यह कहते हुए, उसकी पत्नी को लौटा दिया, “तूने मेरे साथ यह क्या किया? तू ने मुझे क्‍यों नहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है? तू ने क्यों कहा कि वह तेरी बहिन है? मैंने उसे अपनी ही पत्नी बनाने के लिये लिया, परन्तु अब अपनी पत्नी को लेकर यहां से चला जा।” PPHin 122.3

    राजा ने अब्राहम पर बहुत उपकार किया, अभी भी फिरौन अब्राहम और उसके समूह को किसी भी तरह की हानि के पक्ष में नहीं था, वरन्‌ उसने उन्हें अपने राज्य से बाहर सुरक्षित पहुँचाने हेतु एक सुरक्षाकमी को आज्ञा दी। उसके शासनकाल में नियम बनाए गए जिनके द्वारा मिस्त्र के लोगों का विदेशी चरवाहों के साथ खाने पीने के माध्यम से संपर्क को वर्जित किया गया। फिरौन का अब्राहम को विदा करना उदारतापूर्ण और नम्र था, लेकिन उसने उसे मिस्त्र छोड़ देने को कहा क्‍योंकि वह उसे रूकने की अनुमति देने का साहस नहीं कर पाया। वह अज्ञानतावश अब्राहम को गम्भीर चोट पहुँचाने को था, लेकिन परमेश्वर ने हस्तक्षेप किया और सम्राट को एक गम्भीर पाप करने से बचाया। इस विदेशी में फिरोौन नेउस आदमी को देखा जिसे परमेश्वर ने सम्मानित किया था, और फिरौन अपने राज्य में उसके होने से भयभीत था जो स्पष्ट रूप से ईश्वरीय अनुग्रह की छत्र-छाया में था। यदि अब्राहम मिस्त्र में रह जाता तो उसकी बढ़ती हुई धन सम्पत्ति और और आदर मिस्त्र के लोगों में लालच और ईर्ष्या उत्पन्न करता और यह उसके लिये हानिकारक सिद्ध हो सकता था, और इसके लिये फिरोन स्वंय उत्तरदायी होता और शाही घराने पर दोबारा विपत्तियाँ आ सकती थीं।PPHin 123.1

    फिरौन द्वारा दी गईं चेतावनी, भविष्य में अब्राहम का अन्य-जातियों के साथ संपक॑ में सुरक्षा प्रमाणित हुईं, क्योंकि इस विषय को गुप्त नहीं रखा जा सकता था और यह देखा गया कि जिस परमेश्वर की अब्राहम आराधना करता था, वह उसकी रक्षा करता था और उस पर की गई किसी भी चोट का बदला लिया जाना निश्चित था। स्वर्ग के राजा की किसी भी संतान के साथ गलत करना खतरनाक चीज है। चुने हुए लोगों के बारे में अब्राहम के अनुभव के इस अध्याय से सम्बन्धित भजन लिखने वाला कहता है कि परमेश्वर, “राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था “मेरे अभिषिक्तों को मत छुओ और न मेरे नबियों की हानि करो ।” भजन संहिता 105:14,15PPHin 123.2

    मिस्त्र में अब्राहम के और सदियों पश्चात्‌ उसके वंशजों के अनुभव में एक रूचिकर समानता है। दोनों ही अकाल की वजह से मिस्त्र देश में गए और दोनों वहां रहे। उनके पक्ष में ईश्वरीय न्याय के प्रकटीकरण से मिस्त्र के लोगों में उनका डर उत्पन्न हुआ और अन्य-जातियों द्वारा दी गई भेंटो से समृद्ध होकर, वे वहां से बहुत धन-सम्पत्ति लेकर निकले ।PPHin 124.1

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