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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 39—बाशन पर विजय

    यह अध्याय व्यवस्था विवरण 2:3:1-11 पर आधारित है

    एदोम के दक्षिण में पहुँचकर, इज़रइली उत्तर की ओर मुड़े, और उन्होंने फिर से अपने चेहरे प्रतिज्ञा के देश की ओर किये। अब उनका मार्ग एक लम्बे-चौड़े मैदान पर स्थित था, जहां पहाड़ो से ठण्डी, स्वच्छ मंद पवन चलती रहती थी। उस निर्जल घाटी से, जहाँ से वेयात्रा करके यहाँ आ रहे थे, यह एक सुखद परिवर्तन था, और वे प्रसन्‍नचित और आशान्वित आगे बढ़ते गए। जेरेद नदी को पार कर, वे मोआब प्रदेश के पूरब में पहुँचे, क्योंकि उन्हें आज्ञा दी गई थी, “मोआबियों को न सताना और न लड़ाई छेड़ना, क्योंकि मैं उनके देश में से कुछ भी तेरे अधिकार में न करूँगा, क्योंकि मैंने आर को लूत के वंशजो के अधिकार में किया है।” और यही निर्देश अम्मोनियों के सम्बन्ध में भी दोहराया गया, क्‍योंकि वे भी लूत के वंशज थे।PPHin 439.1

    उत्तर की ओर बढ़ते हुए, इज़राइली शीघ्र ही अमोरियों के देश में पहुँच गए। आरम्भ में इन बलवन्त और रणक॒शल लोगों ने कनान प्रदेश के दक्षिणी भाग को अधिकृत किया हुआ था। लेकिन जनसंख्या में वृद्धि होने पर, इन्होंने यरदन नदी को पार कर, मोआबियों पर चढ़ाई कर के उनके अधिकारक्षेत्र से कुछ भाग को अधिकृत कर लिया था। यहाँ पर वे बस गए थे और अर्नान से लेकर उत्तर में यब्बोक तक की भूमि पर उनका निर्विवाद अधिकार था। यरदन को जाने वाला मार्ग, जिसपर इज़राइली अपनी यात्रा करना चाहते थे, इसी भू-खण्ड से होकर निकलता था, और मूसा ने अमोरियों के राजा, सिहोन के पास मैत्रीपूर्ण सन्देश भेजा, “मुझे अपने देश से होकर जाने दे, मैं राजपथ से चला जाऊँगा और दाहिने और बाएं हाथ न मुडूंगा। तू रूपया लेकर मेरे हाथ भोजनवस्तु देने कि मैं खाऊं, और पानी भी मुझे रूपया लेकर दे देना कि मैं पिऊं, केवल मुझे पैदल जाने दे।” उत्तर एक निर्णायक अस्वीकृति में आया और अमोरियों की सभी सेनाओं को घुसपैठियों की प्रगति का प्रतिरोध करने के लिये बुलाया गया। इज़राईली, जो सुअनुशासित और हथियारबन्द सेनाओं का सामना करने के लिये पूरी तरह तैयार न थे, इस दुर्जय सेना से भयभीत हो गए। जहाँ तक युद्ध मेंकौशल का प्रश्न था, उनके शत्रु श्रेष्ठ थे। मनुष्य की दृष्टि से, इज़राइल का शीघ्र अन्त निश्चित था।PPHin 439.2

    लेकिन मूसा ने अपनी दृष्टि बादल के स्तम्भ पर टिकाए रखी और लोगों को इस विचार से प्रोत्साहित किया कि परमेश्वर की उपस्थिति का प्रतीक अभी भी उनके साथ था। उसी समय उसने उन्हें निर्देश दिया कि युद्ध की तैयारी के लिये वह वे सब करे जो मानवीय क्षमता के बस में था। उनके शत्रु युद्ध के लिये उत्सुक थे, और उन्हें विश्वास था कि वे अचेतइज़राइलियों को अपने देश से मिटा देंगे। लेकिन सभी देशों के स्वामी से इज़राइल के अगुवे के पास जनादेश पहुँच चुका था, “अब तुम लोग उठकर कच करो और अर्नोन के नाले के पार चलो सुनो, में देश समेत हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन को तुम्हारे हाथ में कर देता हूँ इसलिये उस देश को अपने अधिकार में लेना आरम्भ करो, और उस राजा से युद्ध छेड़ दो। और जितने लोग धरती पर रहते है, उन सब के मन में मैं आज ही के दिन से तेरे कारण डर और थरथराहट समाने लगूगा, वे तेरे समाचार पाकर तेरे डर के मारे काँपेगें और पीड़ित होंगे।’PPHin 440.1

    यदि कनान के इन सीमान्तर प्रदेशों ने परमेश्वर की आज्ञा को चुनौती देकर, इज़राइल की प्रगति का प्रतिरोध नहीं किया होगा तो इन्हें छोड़ दिया जाता। परमेश्वर ने इन मूर्तिपूजक जातियों के प्रति भी चिरसहिष्णु, कृपालु औरकरूणामयी होने का प्रमाण दिया था। जब अब्राहम को दर्शन में दिखाया गया कि उसके वंशज, अर्थात इज़राइल, चार सौ वर्ष तक एक पराये देश में परदेसी होकर रहेंगे, यहोवा ने उसे यह आश्वासन दिया, “पर वे चौथी पीढ़ी में यहाँ फिर आएँगे, क्योंकि अब तक एमोरियों का अधर्म पूरा नहीं हुआ है।” हालाँकि एमोरी मूर्तिपूजक थे, जिनका जीवन उनकी अति दुष्टता के कारण न्यायतः तज दिया गया था। परमेश्वर ने उन्हें उसके एकमात्र सच्चा परमेश्वर और धरती और आकाश का सृजनहार होने का असंदिग्ध प्रमाण देने के लिये चार सौ वर्ष के लिये छोड़ रखा। उन्हें मिस्र से इज़राइल लाने में उसके सभी चमत्कारों से वे परिचित थे। पर्याप्त प्रमाण दिया, यदि वे लुचपन और मूर्तिपूजा से मुँहमोड़ने को तत्पर होते, तो वे सत्य को जान सकते थे। लेकिन उन्होंने प्रकाश का तिरस्कार किया और मूर्तियों को पकड़े रखा।PPHin 440.2

    जब यहोवा दूसरी बार अपने लोगों को कनान की सीमा पर लाया, उन मूर्तिपूजक जातियों को उसके समार्थ्य का अतिरिक्त प्रमाण दिया गया। उन्होंने देखा कि राजा अराद और कनानियों पर प्राप्त विजय में परमेश्वर इज़राइल के साथ था, सॉँपो के द्वारा काटे जाने से मरने वालों को बचाने के लिये किये गए चमत्कार में भी वह उनके साथ था। हालाँकि इज़राइलियों को एदोम प्रदेश से होकर जाने की स्वीकृति नहीं मिली थी, और इस कारण वे लाल समुद्र के किनारे-किनारे लम्बे और कठिन रास्ते पर जाने को विवश हो गए थे, फिर भी एदोम, मोआब और एम्मोन प्रदेशों के पास से की गई यात्राओं और डालेगए पड़ावों में, उन्होंने कोई शत्रुता नहीं दिखाई और ना ही लोगों को या उनकी धरोहर को कोई हानि पहुँचाई । एमोरियों की सीमा पर पहुँचने पर, दूसरे देशों के साथ उनके पारस्परिक व्यवहार सम्बन्धी नियमों का पालन करने की प्रतिज्ञा करते हुए, उन्होंने केवल प्रदेश में से सीधे यात्रा करने की अनुमति माँगी थी। जब एमोरी राजा ने उनकी विनयपूर्ण सानुरोध याचना को अस्वीकार कर दिया, और चुनौती देते हुए अपनी सेनाओं को युद्ध के लिये एकत्रित किया, तो उनके पाप का घड़ा भर गया और अब परमेश्वर ने उनकी पराजय के लिये अपनी शक्ति का अभ्यास करने का निर्णय किया।PPHin 440.3

    इज़राइलियों ने अर्नोन नदी को पार कर, शत्रु पर चढ़ाई की। एक मुठभेड़ हुईं, और उसमें इज़राइल की सेनाएँ विजयी हुई, और इसी विजय का लाभ उठाते हुए, उन्होंने शीघ्र हो ऐमोरियों के देश पर अधिकार कर लिया। वह यहोवा की सेनाओं का कप्तान था जिसने उसके लोगों के शत्रुओं को पराजित किया, और यदि इज़राइल ने उसमें विश्वास रखा होता, तो अड़तीस वर्ष पूर्व भी उसने ऐसा ही किया होता।PPHin 441.1

    आशा और साहस से भरपूर, इज़राइल की सेना, व्यग्रता से आगे बढ़ी, और उत्तर की ओर यात्रा करते हुए, शीघ्र ही उस देश में पहुँची जहाँ परमेश्वर में उनके विश्वास और उनके शौर्य की परख होनी थी। उनके सम्मुख था बाशान का शक्तिशाली व जनपूर्ण राज्य जिसमें प्रख्यात पत्थर के नगर थे जो आज भी संसार को अचरज में डाल देते है-“साठनगर........उनके ऊंचे-ऊंचे शहरपनाह, और फाटक, और बिना शहरपनाह के भी बहुत से नगर।”-व्यवस्थाविवरण 3:1-11 वहाँ के घर विशाल काले पत्थरों से निर्मित थे, जिनका विशालकाय आकार भवनों को, उन पर उस समय की, आने वाली किसी भी शक्ति के लिये पुर्णतया अभेद्य बना देता था। वह डरावनी गुफाओं, ऊंची-ऊंची खड़ी चटटानों, गहरी और फैली हुईं खाड़ियों और पहाड़ी दुर्गों से भरा देश था। इस देश के निवासी, जो एक असुर जाति के वंशज थे, स्वयं अद्भुत डील-डौल और शक्ति के स्वामी थे और वे हिंसा और निर्दयता के लिये इतने विख्यात थे कि सभी पड़ौसी राष्ट्र उनका भय मानते थे। उस देश का राजा ओग अपने डील-डौल और भुजबल के लिये, असुरों के राष्ट्र में भी विलक्षण था।PPHin 441.2

    लेकिन बादल का स्तम्भ आगे-आगे चलता रहा, और उसके मार्गदर्शन में इब्री समुदाय एद्रेई की ओर बढ़ा, जहां वह विशालकाय राजा अपनी सेना सहित, उनके आने की प्रतीक्षा कर रहा थ। ओग ने कुशलता से युद्ध का स्थान चुना था। एद्रेई नगर एक सीधी ढाल वाले पठार पर स्थित है और दंतुरित ज्वालामुखीय चट्टानों से ढका है। वहां चढ़ाई के लिये दुर्गगन और सीधी ढाल वाले संकीर्ण मार्गों से ही पहुँचा जा सकता है। हारने की सूरत में उसकी सेना चटटानों के बीहड़ में शरण ले सकती थी, जहां अपरिचितों द्वारा उनका पीछा किया जाना असम्भव था।PPHin 442.1

    सफलता के लिये निश्चित, राजा अपनी विशाल सेना के साथ खुले मैदान में आगे आया। पठार पर से ललकारकी पुकार सुनाई दे रही थी, जहां लड़ाई के लिये तत्पर हजारों के हथियार दिखाई देते। जब इब्रियों ने उसकी सेना के सैनिकों से भी ऊंचे असुरों के असुर की उस विशालकाय आकृति को देखा, जब उन्होंने उन सेनाओं को देखा जो उसे घेरे हुए थी, और उस अभेद्य गढ़ को देखा, जिसके पीछे हजारों अदृश्य खाई में छुपे थे, तो कई इज़राइलियों के हृदय भय से कॉप उठे। लेकिन मूसा शान्त और दृढ़ था, परमेश्वर ने बाशान के राजा के सन्दर्भ में कहा था, “उससे मत डर, क्योंकि मैं उसकी सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूँ और जैसा तू ने एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सिहोन के साथ किया है, वैसा ही उसके साथ भी करना।”PPHin 442.2

    उनके अगुवे का निश्चल विश्वास लोगों को परमेश्वर में विश्वास की प्रेरणा देता था। वे उसके सर्वशाक्तिशाली हाथ में विश्वास रखते थे और ना तो शहरपनाह वाले नगर, ना हथियारबन्द सेनाएं और ना ही चटूटानी गढ़, यहोवा की सेनाओं के कप्तान के सम्मुख खड़े रह सकते थे। सेना का नेतृत्व प्रभु ने किया, प्रभु ने शत्रु को परास्त किया, प्रभु ने इज़राइल के पक्ष में विजय प्राप्त की । असुर राजा और उसकी सेना को नष्ट कर दिया गया और इज़राइलियों ने सम्पूर्ण राज्य को अपने अधिकृत कर लिया। इस तरह पृथ्वी पर से उन असामन्य लोगों को मिटा दिया गया जिन्होंने स्वयं को अधर्म और मूर्तिपूजा को समर्पित कर दिया था।PPHin 442.3

    गिलाद और बाशान की विजय में कई लोगों ने उनघटनाओं का स्मरण किया, जिनके कारण, कादेश में, चालीस वर्ष पूर्व, इज़राइल को इतने लम्बे समय तक बीहड़में भटकने को विवश कर दिया गया था। उन्होंने देखा कि प्रतिज्ञा के देश से सम्बन्धित गुप्तचरों की सूचना कई विषयों में सही थी। नगर चारों ओर प्राचीरों से सुरक्षित थे और असुरों से निवासित थे, उनकी तुलना में इब्री मात्र बौने थे। लेकिन अब वे देख सकते थे कि परमेश्वर के सामर्थ्य में अविश्वास उनके पूर्वजों की सबसे क्षतिकर गलती थी। यही एकमात्र कारण था जिसने उन्हें उस समृद्ध देश में अविलम्ब प्रवेश करने से रोका था।PPHin 442.4

    जब वे प्रारम्भ में कनान प्रवेश की तैयारी कर रहे थे, उनके कार्य में अब से कम कठिनाईयाँ आईं थी। परमेश्वर ने अपने लोगों से प्रतिज्ञा की थी कि यदि वे उसकी आज्ञा का पालन करेंगे, तो वह उनके आगे-आगे जाएगा और उनके लिये लड़ेगा, और उस देश के निवासियों को खदेड़ कर भगा देने के लिये ततैये भी भेजेगा। उन राज्यों में सार्वजनिक तौर पर भय उत्पन्न नहीं किया गया था और उनकी प्रगति के प्रतिकार के लिये बहुत कम तैयारियाँ की गई थी। लेकिन जब प्रभु ने इज़राइल को आगे बढ़ने की आज्ञा दी, तो उनके लिये सतक और सशक्त शत्रुओं के विरूद्ध अग्रसर होना आवश्यक था, और इज़राइलियों के आगे बढ़ने को रोकने की तैयारी करती रही उन विशाल और सुशिक्षित सेनाओं के साथ लड़ना था।PPHin 443.1

    ओग और सिहोन के साथ प्रतिस्पर्धा में लोगों को वही परीक्षा देनी पड़ी, जिसमें उनके पूर्वज विशेष रूप से असफल रहे थे। लेकिन अब वह परीक्षा उस समय से अत्यधिक कठोर थी, जब परमेश्वर ने इज़राइल को आगे बढ़ने का आदेश दिया था। उनके रास्ते की कठिनाईयाँ बहुत बढ़ गई थी जबसे उन्होंने प्रभु के नाम में अग्रसर होने के आदेश को अस्वीकार किया। इसी रीति से परमेश्वर अभी भी लोगों को परखता है। यदि वे परीक्षा में खरे नहीं उतरते, वो वह उन्हें पहले वाले स्थान पर ले आता है, और दूसरी बार परीक्षा पहले वाली परीक्षा से ज्यादा और शीघ्र आती है। ऐसा तब तक होता रहता है जब तक वे इस परीक्षा को सहन करते है, या यदि वे फिर से विद्रोही होते है तो परमेश्वर उन्हें प्रकाश से वंचित कर देता है और उन्हें अन्धकार में छोड़ देता है।PPHin 443.2

    इब्रियों ने अब स्मरण किया कि किस तरह, एक बार पहले, जब वे युद्ध करने गए थे, उन्हें उखाड़ दिया गया था और हजारों लोग मारे गए थे। लेकिन उस समय वे परमेश्वर की आज्ञा के प्रत्यक्ष विरोध में गए थे। वे परमेश्वर द्वारा नियुक्त अगुवे, मूसा के बिना, ईश्वरीय उपस्थिति के प्रतीक, बादल के स्तम्भ के बिना और वाचा के सन्दूक के बिना गए थे। लेकिन अब मूसा उनके साथ था, जो उनके हृदयों को विश्वास और आशा के शब्दों से प्रबल कर रहा था, बादल के स्तम्भ में प्रतिष्ठापित, परमेश्वर का पुत्र उनका मार्गदर्शन कर रहा था, और पवित्र सन्दूक सेना के साथ था। इस अनुभव में हमारे लिये एक सीख है। इजराईल का महान परमेश्वर हमारा परमेश्वर है। उसमें हम विश्वास रख सकते है। और यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे तो वह हमारे लिये वैसे ही विशेष रूप से कार्य करेगा जैसा वह प्राचीन काल में अपने लोगों के लिये करता था। जो भी कर्तव्य के रास्ते पर चलने का प्रयत्न करता है, कभी-कभी अविश्वास और संदेह की चपेट में आ सकता है। वह रास्ता कभी-कभी इतनी बाधाओं से बाधित होगा, कि वह दुर्गम प्रतीत होगा, और जो निराशा के आगे झुक जाते है, उन्हें निराश कर देगा, लेकिन परमेश्वर ऐसे ही लोगों से कहता है, आगे बढ़ों’ किसी भी कीमत पर अपने कर्तव्य का पालन करो। जो कठिनाईयाँ इतनी विकट प्रतीत होती है, जो तुम्हारे चित्त को भयभीत कर देती है, एकदम विलुप्त हो जाएगी, यदि तुम परमेश्वर में दीनतापूर्वक विश्वास करते हुए, आज्ञाकारिता के रास्ते पर आगे बढ़ोगे। PPHin 443.3

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