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कुलपिता और भविष्यवक्ता

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    अध्याय 68—सिकलग में दाऊद

    यह अध्याय 1 शमूएल 29:30, 2 शमूएल 1 पर आधारित है

    हलाँकि दाऊद और उसके आदमी पलिश्तियों के साथ संघर्ष के मैदान में उतरे, उन्होंन इज़राइलियों और पलिश्तियों के बीच युद्ध में भाग नहीं लिया। जैसे ही दोनो सेनाओं ने भिड़न्त की तैयारी की, यिशै के पुत्र ने स्वयं को बड़ी दुविधाजनक परिस्थिति में पाया। अपेक्षा थी कि वह पलिश्तियों क पक्ष में लड़ेगा। यदि इस समय वह उसे दिये गए पद को त्याग कर मैदान से प्रस्थान कर देता तो उस पर ना केवल कायरता का, वरन्‌ आकीश के प्रति,जिसने उसे सुरक्षा प्रदान की थी और जिसने उस पर विश्वास किया था, अकृतज्ञता और धोखो का दाग भी लग जाता, । ऐसा क॒त्य उसके नाम को कलंकित कर देता और उसे उसके शत्रुओं के कोध का पात्र बना देता और यह शाऊल से भी अधिक भयावह होता। ऐसा करके वह देशद्रोही हो जाता- परमेश्वर और उसके लोगों का शशत्रु। इससे इज़राइल के सिंहासन का रास्ता उसके लिये हमेशा के लिये बन्द हो जाता, और यदि शाऊल युद्ध में मारा जाता, उसकी मृत्यु का आरोप दाऊद पर लगाया जाता।PPHin 722.1

    दाऊद को एहसास दिलाया गया कि वह मार्ग से भटक गया था। उसके लिये यहोवा और उसके लोगों के स्वीकृत शत्रुओं के पास शरण लेने से पहाड़ो में परमेश्वर के मजबूत गढ़ो में शरण लेना बेहतर होता। लेकिन अपनी अत्यधिक करूणा में प्रभु ने अपने दास को दुविधा और कठिनाई में असहाय नहीं छोड़ा और इस प्रकार उसे उसकी गलती को दण्डित नहीं किया, क्‍योंकि दाऊद ईश्वरीय शक्ति पर अपनी पकड़ छोड़कर, सख्त अखण्डता के रास्ते से भटक गया था, लेकिन उसके हृदय का ध्येय अभी भी यही था कि वह परमेश्वर के प्रति सच्चा रहे। शैतान और उसकी सेना परमेश्वर और इज़राइल के शत्रुओं की उस राजा के विरूद्ध योजना बनाने में सहायता कर रही थी, जिस राजा ने परमेश्वर को छोड़ दिया था, और प्रभु के स्वर्गदूत दाऊद को उस खतरे से बाहर निकाल रहे थे जिसमें वह पड़ गया था। स्वर्गीय दूतों ने पलिश्ती प्रधानों को आने वाले संघर्ष में उनकी सेना के साथ दाऊद और उसके आदमियों की उपस्थिति का विरोध करने के लिये प्रेरित किया।PPHin 722.2

    “यह इब्री यहाँ क्या कर रहे है?” पलिश्ती सरदारों ने आकीश पर दबाव डालकर कहा। आकीश इतने महत्वपूर्ण मित्रपक्ष से अलग होने के लिये तैयार नहीं था और इसलिये उसने उत्तर दिया, “क्या वह इज़राइल के राजा शाऊल का कर्मचारी दाऊद नहीं है, जो क्‍या जाने कितने दिनों से वरन्‌ वर्षों से मेरे साथ रहता है, और जब से वह भाग आया, तब से आज तक मैंने उसमें कोई दोष नहीं पाया”?PPHin 723.1

    लेकिन प्रधान कोधित होकर अपनी माँग पर अड़े रहे, “उस पुरूष को लोटा दे कि यह उस स्थान पर जाए जो तूने उसके लिये ठहराया है, वह हमारे संग लड़ाई में न आने पाएगा, कहीं ऐसा न हो वह लड़ाई में हमारा विरोधी बन जाए, फिर वह अपने स्वामी से किस रीति से मेल करे? क्‍या लोगों के सिर कटवकर न करेगा? क्‍या यह वही दाऊद नहीं है, जिसके विषय में लोग नाचते और गाते हुए एक-दूसरे से कहते थे।PPHin 723.2

    “शाऊल ने हजारो को,पर दाऊद ने लाखों को मारा है।” PPHin 723.3

    उस घटना के समय उनके प्रख्यात शूरवीर का वध और इज़राइल की विजय अभी भी पलिश्ती प्रधानों के स्मृति-पट पर ताजा थी। उन्हें विश्वास नहीं था कि दाऊद अपने ही लोगों के विरूद्ध लड़ेगा और यदि वह करता भी तो युद्ध के गर्माने पर, वह उनके पक्ष में लड़कर पलिश्तियों को, शाऊल की सम्पूर्ण सेना द्वारा नुकसान पहुँचाने से, अधिक नुकसान पहुँचा सकता था।PPHin 723.4

    इस प्रकार आकीश झुकने के लिये विवश हो गया ओर दाऊद को बुलाकर उसने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, तू तो सीधा है और सेना में तेरा मेरे संग आना जाना भी मुझ भावता है, क्‍यों जब से तू मेरे पास आया तब से लेकर आज तक मैंने तुझ में कोई बुराई नहीं पाई। तौभी सरदार लोग तुझे नहीं चाहते । इसलिये अब तू कशल से लौट जा, ऐसा न हो कि पलिश्ती सरदार तुझसे अप्रसन्न हो।”PPHin 723.5

    इस डर से कि कहीं वह अपनी वास्तविक भावनाएँ व्यक्तनकर दे, दाऊद ने उत्तर दिया, “मैंने क्या किया है? और जब से मैं तेरे सामने आया तब से आज तक तू ने अपने दास से क्‍या पाया हे कि मैं अपने प्रभु राजा के शत्रुओं से लड़ने न पाऊं?PPHin 723.6

    आकीश के उत्तर ने दाऊद के हृदय में पश्चताप और लज्जा की सिरहन भी भेज दी, जब उसने इस बात पर विचार किया कि जिस छल के कारण वह इतना नीचे गिर गया था, वह यहोवा के दूत के लिये कितना अनुपयुकत था। “हाँ, यह मुझे मालूम है, तू मेरी दृष्टि में तो परमेश्वर के दूत के समान अच्छा है, “राजा ने कहा, लेकिन पलिशिती हाकिमों ने कहा है, वह हमारे साथ लड़ाई में नहीं जा पाएगा। इसलिये अब तू अपने प्रभु के सेवकों को लेकर जो तेरे साथ आए हैं तड़के उठना, और उजियाला होते ही चले जाना।” इस प्रकार जिस जाल में दाऊद फेस गया था, वह फट गया और दाऊद स्वतन्त्र हो गया।PPHin 724.1

    तीन दिनों की यात्रा के बाद दाऊद और उसके छ: सौ आदमी सिकलग पहुँचे जहाँ उनका पलिश्ती घर था। लेकिन उनकी दृष्टि के सामने निर्जनता का दृश्य था। दाऊद की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर, अमालेकियों ने उनके भू-क्षेत्र में उसकी घुसपैठ का प्रतिशोध ले लिया था। जब नगर को असुरक्षित छोड़ा गया था, उन्होंने उस पर अचानक आक्रमण करके, लूटपाट की और उसे जला डाला, और वे वहाँ की स्त्रियों और बच्चों को बन्दी बना कर, बहुत सी लूट के साथ लौट गये थे।PPHin 724.2

    भयाकान्त और आश्चर्यवकित, दाऊद और उसके आदमी कुछ समय तक उन स्याह और सुलगते हुए खंडहरों को देखते रह गए। फिर जब उन्हें इस भयानक निर्जनता का एहसास हुआ, वे “चिल्ला-चिल्ला कर इतना रोये की फिर उनमें रोने की शक्ति न रही।”PPHin 724.3

    यहाँ फिर से दाऊद को विश्वास की कमी के लिये ताड़ा गया क्‍योंकि इसी के कारण वह पलिश्तियों के बीच जाकर रहने लगा था। उसे यह देखने का अवसर दिया गया था कि परमेश्वर और उसके लोगों को शत्रुओं के बीच कितनी सुरक्षा प्राप्त हो सकती है। दाऊद के अनुयायी उसे इस विपत्ति का कारण मानकर उस पर उलट पड़े। उसने अमालेकियों पर आक्रमण कर उनके प्रतिशोध को उकसाया था, लेकिन फिर भी अपने शत्रुओं के बीच अपनी सुरक्षा के लिये पूरी तरह निश्चित, उसने शहर को असुरक्षित छोड़ दिया था। दुःख और कोध से पागल, उसके योद्धा अब कोई भी कदम उठाने के लिये तैयार थे और उन्होंने अपने अगुवे पर पथराव करने की भी धमकी दी।PPHin 724.4

    ऐसा प्रतीत हुआ मानो दाऊद प्रत्येक मानवीय समर्थन से कट चुका था। जो भी उसे इस पृथ्वी पर प्रिय था, उससे छिन गया था। शाऊल ने उसे अपने देश से निकाल दिया था, पलिश्तियों ने उसे छावनी से खदेड़ दिया था, अमालेकियों ने उसके नगर को लूट लिया था, उसकी पत्नियों और बच्चों को बन्दी बना लिया गया था, और उसके अपने परिचित मित्रों ने उसके विरूद्ध गिरोह बना लिये थे और उसे मृत्यु की धमकी दी थी। इस घोर पमरसंकट की घड़ी में, इन कष्टदायक परिस्थितियों पर अपने मन को मनन की अनुमति देने के बजाय, दाऊद ने सहायता के लिये परमेश्वर की ओर दृष्टि की। उसने “प्रभु में स्वयं को प्रोत्साहित किया।” उसने अपने बीते हुए घटनापूर्ण जीवन का अवलोकन किया। क्‍या कभी परमेश्वर ने उसे छोड़ा था? परमेश्वर की कृपा-दृष्टि के कई प्रमाणों का स्मरण कर उसकी आत्मा तरोताजा हो गई। दाऊद के अनुयायियों ने, अपने असन्तोष और धेर्यहीनता केकारण अपनी विपदा को दो गुना कष्टदायक बना लिया, लेकिन परमेश्वर के दास ने, दुख के इससे भी बढ़कर कारण के बावजूद, धेर्य से काम लिया। “जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा ।-भजन सहिता 56:3। यह उसके हृदय की भाषा थी। यद्यपि वह स्वयं उस कठिनाई से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सोच पा रहा था, परमेश्वर देख सकता था और उसी ने उसे सिखाया की क्‍या करना था।PPHin 724.5

    अहीमेलेक के पुत्र, याजक ऐशब्यातार को बुलाकर “दाऊद ने यहोवा से पूछा, ‘क्या में इस दल का पीछा करूँ? क्या उसको जा पकडूँगा?” उत्तर मिला, “पीछा कर, क्योंकि तू निश्चय उसको पकड़ेगा, और निःसन्देह सब कुछ छड़ा लाएगा। - 1 शमूएल 30:8।PPHin 725.1

    यह शब्द सुनकर दुख और आवेग का तुफान थम गया। दाऊद और उसके योद्धाओं ने भागते हुए शत्रु का पीछा करने के लिय कूच किया। वे इतनी तीव्र गति से गए कि भूमध्यसागर में, गाजा के पास, गिरने वाली बसोर नामक नदी पहुँच कर, गिरोह के दो सौ पुरूष थकान के कारण पीछे रहने को विवश हो गए। लेकिन बचे हुए चार सौ के साथ, बिना डरे, दाऊद आगे बड़ा।PPHin 725.2

    चलते-चलते, वे एक मिस्री दास से टकराए, जो ऐसा लग रहा था, भूख और थकान से मरने वाला था। लेकिन भोजन-पानी ग्रहण करके उसकी जान में जान आयी और उन्हें ज्ञात हुआ कि उसे उसके निर्दयी स्वामी ने, जो घुसपैठ करने वाली सेना का सदस्य अमालेकी था, उसे मरने के लिये छोड़ दिया था। उसने चढ़ाई और लूटपाट की कहानी सुनाई, और फिर उनसे यह वचन लेकर कि ना तो उसे मारा जाए ना उसके स्वामी को सौंपा जाए, वह दाऊद की टोली का शत्रुओं की छावनी तक ले जाने के लिये तैयार हो गया।PPHin 725.3

    छावनी के पास पहुँचकर उन्होंने देखा कि वहाँ नाच-गाना चल रहा था। पराक्रमी सेना ने एक भव्य पर्व आयोजित किया था। “वे चारों ओर भूमि पर मदिरा पीते और भोजन करते हुए फैले हुए थे। वे पलिश्तियों और यहूदा के प्रदेश से जो बहुत सी चीजे लाए थे, उसी से उत्सव मना रहे थे ।” एक तत्काल आक्रमण की आज्ञा दी गई और पीछा करने वाले अपने शिकार पर टूट पड़े। अमालेकी इस अक्समात आक्रमण से घबरा गए। पूरी रात और अगले दिन तक युद्ध चलता रहा, और लगभग पूरी शत्रु सेना मार डाली गई। केवल चार सौ पुरूषों का गिरोह, ऊंटो पर सवार होकर, बचकर निकल आने में सफल हुआ। प्रभु का कहा सम्पन्न हुआ, “जो कुछ अमालेकी ले गए थे वह सब दाऊद ने छुड़ाया और दाऊद ने अपन दोनो स्त्रियों को भी छुड़ा लिया। वरन्‌ उनके क्‍या छोटे, क्‍या बड़े, क्‍या बेटे, क्‍या बेटियाँ, क्या लूट का माल, सब कुछ जो अमेलिकी ले गए थे, उसमें से कोई वस्तु न रही जो उनकी न मिली हो, क्‍योंकि दाऊद सब का सब लौटा लाया।’ PPHin 726.1

    जब दाऊद ने अमालेकियों के भूखण्ड में घुसपैठ की थी, उसने उसके हाथों में पड़ने वाले सभी वासियों को तलवार से मार डाला था। परमेश्वर की नियन्त्रकारी शक्ति के अभाव में, अमालेकियों ने पलट वार करके सिकलग के लोगों को नष्ट कर दिया होता। उन्होंने बन्धकों को जीवित रखने का निश्चय किया, क्योंकि भारी संख्या में युद्ध बन्दियों को घर ले जाकर वे विजय का सम्मान और भी बढ़ाना चाहते थे और उनका विचार था कि बाद में वे उन्हें दासों के रूप में बेच देंगे।PPHin 726.2

    सभी सांसारिक शक्तियाँ सनातन परमेश्वर के नियन्त्रण में है। सबसे शक्तिशाली राजा, और सबसे अधिक निर्दयी अत्याचारी से वह कहता है, “यहीं तक आ, और आगे न बढ़”-अय्यूब 38:11 । बुराई की शक्तियों का प्रतिशोध करने के लिये परमेश्वर की शक्ति का लगातार अभ्यास होता है, वह मनुष्यों के बीच सर्वदा कार्यरत रहता है, उनके विनाश के लिये नहीं, लेकिन उनके सरंक्षण और सुधार के लिये।PPHin 726.3

    बड़े आनन्द के साथ विजेता अपने घर की ओर लौटे। अपने उन साथियों के पास लौटकर जो पीछे रह गए थे, उन चार सौ में से जो स्वार्थी और उद्दण्ड थे उन्होंने आग्रह किया कि जिन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था, उन्हें लूट का भाग न दिया जाए, और यह कि उनके पत्नि और बच्चे वापस मिल गए थे, यह उनके लिये पर्याप्त था। लेकिन दाऊद ने इस प्रबन्ध की अनुमति नहीं थी, “हे मेरे भाईयों, तुम उस माल के साथ ऐसा न करने पाओगे जिसे यहोवा ने हमें दिया है.........लड़ाई में जानेवाले का जैसा भाग हो, सामान के पास बेठे हुए का भी वैसा ही भाग होगा, दोनो एक ही समान भाग पाएँगे।” इस प्रकार मामले को शान्त किया गया, और बाद में इज़राइल में यह नियम बन गया कि सैन्य अभियान के साथ जो भी सम्मानपूर्वक सम्बन्धित थे, उन्हें वास्तविक संघर्ष में व्यस्त योद्धाओं के समान ही लूट का भाग मिलना चाहिये।PPHin 726.4

    सिकलग से ले जाईं गईं सम्पूर्ण लूट को वापस ले लेने के अतिरिक्त, दाऊद और उसके साथियों ने अमालेकियों के बड़ी संख्या में भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को भी जीत लिया। इन्हें “दाऊद की लूट” कहा गया, और सिकलग लौटने के उपरांत उसने इस लूट में से, यहूदा के अपने गोत्र के पुरनियों को उपहार भेजे। इस वितरण में उन सब को स्मरण किया गया जिन्होंने पहाड़ी किले में उससे और उसके अनुयायियों से मित्रता की थी, जब वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागने के लिये विवश कर दिया गया था। पीछा किए जाए रहे पलायक के लिये अनमोल उनकी करूणा और संवदेना को इस प्रकार कृतज्ञतापूर्वक मान्यता दी गई। PPHin 727.1

    तीसरे दिन दाऊद और उसके योद्धा सिकलग लौट गए। अपने खण्डहर हुए घरों की मरम्मत करते समय वे उत्सुकता से पलिश्तियों और इज़राइल के बीच युद्ध का समाचार सुनने की प्रतीक्षा कर रहे थे जो उन्हें मालूम था कि अब तक हो चुका होगा। अचानक एक सन्देशवाहक, “कपड़े फाड़े, सिर पर धूल डाले हुए आया। उसे तत्काल दाऊद के पास लाया गया और दाऊद को एक शक्तिशाली राजकुमार की मान्यता देने की अभिव्यक्ति में उसने दाऊद को श्रद्धापू्वक दण्डवत किया। वह उसकी कृपा-दृष्टि पाना चाहता था। दाऊद ने उत्सुकता से युद्ध के बारे में पूछा। पलायक ने शाऊल की पराजय और मृत्यु, और योनातन की मृत्यु के बारे में बताया। लेकिन वह तथ्य विवरण से दूर चला गया। निस्सन्देह यह मानते हुए कि दाऊद अपने निर्दयी अत्याचारी के प्रति शत्रुता संजोए होगा, आगन्तुक राजा का हत्यारा होने का सम्मान स्वयं के लिये सुरक्षित करने की आशा कर रहा था। वह शाऊल के सिर का मुकुट और उसकी बॉह से सोने का कड़ा दाऊद के पास लाया था। ढींग मारते हुए उसने बताया कि युद्ध के दोरान उसने इज़राइल के सम्राट को घायल अवस्का में पाया, और उसी के निवेदन पर सन्देशवाहक ने उसे मार दिया। पूरे विश्वास के साथ वह अपेक्षा कर रहा था कि उसे प्रसन्नतापूर्वक शाबाशी दी जाएगी, और उसके द्वारा निभायी गईं भूमिका के लिये बहुमूल्य उपहार दिया जाएगा।PPHin 727.2

    लेकिन “दाऊद ने अपने कपड़े पकड़कर फाड़े और जितने पुरूष उनके संग थे उन्होंने भी वैसा ही किया और वे शाऊल और उसके पुत्र योनातन, और यहोवा की प्रजा, और इजलराइल के घराने के लिये छाती पीटने और रोने लगे, इस कारण कि वे तलवार से मारे गए थे।”PPHin 728.1

    उस भयावह समाचार का पहले झटके का प्रभाव समाप्त होने के पश्चात, दाऊद का ध्यान आगन्तुक सन्देशवाहक की ओर गया और उसी ही कथानुसार, जिस अपराध का वह दोषी था। मुखिया ने नौजवान से पूछा, ‘तू कहॉ से आय है?” उसने उत्तर दिया, “मैं तो परदेसी का पुत्र अर्थात अमालेकी हूँ।” तब दाऊद ने उससे कहा, “तू यहोवा के अभिषिकक्‍त को नष्ट करने के लिये हाथ बढ़ाने में क्यो नहीं डरा? दो बार शाऊल उसके अधिकार में था, लेकिन जब उससे उसे मारने का आग्रह किया गया, उसने उस पर हाथ उठाने से मना कर दिया था जिसे स्वयं परमेश्वर की आज्ञा के द्वारा इज़राइल पर शासन करने के लिये अभिषेक किया गया था। फिर भी अमालेकी ढींग मारने से नहीं डर रहा था कि उसने इज़राइल के राजा को मारा थ। उसने स्वयं को मृत्यु के योग्य अपराध का दोषी ठहराया था, और उसे तत्काल दण्डाज्ञा दी गई। दाऊद ने कहा, “तेरा खून तेरी ही सिर पर पड़े, क्‍योंकि तूने यह कहकर मैंने ही यहोवा के अभिषिक्त को मार डाला, अपने मुहँ से अपने ही विरूद्ध साक्षी दी है।”PPHin 728.2

    शाऊल की मृत्यु पर दाऊद का शोक सच्चा और गहरा था और एक शिष्ट स्वभाव की उदारता व्यक्त कर रहा था। वह अपने शत्रु के पतन में अत्यानन्दित नहीं हुआ। इज़राइल के सिंहासन पर उसकी पहुँच का अवरोध करने वाली बाधा हटा दी गई थी, लेकिन इस पर उसने आनन्द नहीं मनाया। मृत्यु ने शाऊल की अविश्वसनीयता और करता की स्मृति को मिटा दिया था और अब उसके इतिहास से राजोचित और श्रेष्ठ के अलावा कुछ नहीं सोचा जा रहा था। शाऊल का नाम योनातन के साथ जुड़ा हुआ था, जिसकी मित्रता इतनी सच्ची और निःस्वार्थ रही थी।PPHin 728.3

    जिस गीत में दाऊद ने अपने हृदय की भावनाओं को उच्चारित किया, वह उसकी प्रजा के लिये और उत्तरवती युगों में लोगों के लिये निधि बन गया- PPHin 728.4

    “हे इज़राइल, तेरा शिरोमणि तेरे ऊँचे स्थान पर मारा गया।
    हाय, शूरवीर कैसे गिर पड़े है।
    गत में यह न बताओ और न अश्कलोन की सड़को में प्रचार करना,
    न हो कि पलिश्ति स्त्रियाँ आनन्दित हो,
    न हो कि खतनारहित लोगों की बेटियाँ गर्व करने लगे।
    हे गिलबो पहाड़ो, तुम पर न ओस पड़े,और न वर्षा हो,
    और न भेंट के योग्य उपजवाले खेत पाए जाएँ।
    क्योंकि वहाँ शूरवीरों की ढाले अशुद्ध हो गई,
    और शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई।
    जूझे हुओं के लहू बहाने से,
    और शूरवीरों की चर्बी खाने से,
    योनातन का धनुष न लौटता था,
    और न शाऊल की तलवार खाली फिर आती थी।
    शाऊल और योनातन जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे,
    और अपनी मृत्यु के समय अलग न हुए,
    वे उकाब से भी वेग से चलने वाले,
    और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थे।
    हे इजराईली स्त्रियों शाऊल के लिये रोओ,
    वह तो तुम्हें लाल रंग के वस्त्र पहिनाकर सुख देता,
    और तुम्हारे वस्त्रों के ऊपर सोने के गहने पहिनाता था।
    हाय युद्ध के बीच शूरवीर कैसे काम आए!
    हे योनातन, हे ऊँचे स्थानों पर जूझे हुए हे मेरे भाई योनातन,
    मैं तेरे कारण दुखित हूँ तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था।
    तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत वरन्‌ स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर था।
    हाय, शूरवीर कैसे गिर गए, और युद्ध केहथियार कैसे नष्ट हो गए।’
    PPHin 729.1

    2 शमूएल 1:19-27