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कलीसिया के लिए परामर्श

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    उचित निर्णय करने के लिए प्रार्थना और बाइबल अध्ययन

    आवश्यक परमेश्वर के द्वारा स्थापित, विवाह एक पवित्र विधि है.स्वार्थी आत्मा की कभीभी इसमें प्रवेश नहीं करना चाहिए.जो इस पर विचार करते हैं उन्हें प्रार्थना एवं गम्भीरतापूर्वक इसके महत्व पर विचार करना चाहिए और परमेश्वर की सलाह की अपेक्षा करना चाहिए जिससे यह ज्ञात हो कि हम उसी वस्तु को पाने का प्रयत्न कर रहे हैं जो परमेश्वर की इच्छानुसार हैं.परमेश्वर के वचन में इस पर जो आदेश दिया गया है उस पर उचित विचार करना चाहिए.ऐसे विवाह से जिनको निर्माण परमेश्वर के पवित्र वचन के आदेश से होता है उस पर परमेश्वर की भी दयापूर्ण प्रसन्न दृष्टि होती है.ककेप 174.4

    यदि कोई ऐसा विषय है जिस पर शांत बुद्धि और शान्त निर्णय सहित विचार करना चाहिए वह है विवाह.यदि किसी अवसर पर पवित्र वचन के परामर्श की आवश्यकता है तो वह उस समय के पूर्व है जब मनुष्य अपने जीवन के लिए एक जीवन साथी का चुनाव करने पर कदम बढ़ा रहा है.प्रचलित मत तो यह है कि इस विषय में भावनाएं ही बहुधा मार्गदर्शक होती हैं जिससे अनेकों परिस्थितियों में प्रेम पीड़ित मनोवेग पतवार को अपने हाथ में लेकर जीवन नौका को विनाश की ओर ले जाते हैं.इसी स्थान पर युवक किसी अन्य विषय की अपेक्षा कम बुद्धिमानी दिखाते हैं,यहीं पा वे तर्क से काम नहीं लेना चाहते हैं.विवाह का प्रश्न उन पर मोहनेवाली शक्ति डालता हुआ सा प्रतीत होता है.वे अपने आप को परमेश्वर के अधीन नहीं करते .उनकी ज्ञानेन्द्रियां बंध जाती हैं और वे गुप्तरुप में अग्रसर होते रहते हैं उन्हें यह भय रहता है कि कहीं उनका भेद प्रगट न हो जावे और उनको योजनाओं में कोई विघ्न न डाल दे.ककेप 174.5

    कई तो खतरनाक बन्दरगाहों में यात्रा कर रहे हैं उन्हें एक कर्णधार की आवश्यकता है;पर वे इस आवश्यक सहायता को ग्रहण करना अपमानजनक समझते हैं. वे अपने आप में यह समझते हैं कि वे अपनी नौका का मार्ग निदर्शन करने में पूर्णत: योग्य हैं.उन्हें इसका बोध नहीं कि उनकी नाव किसी छिपो हुई चट्टान से टकराने वाली है जिससे उनके विश्वास तथा आनन्द का बेड़ा डूबने वाला है...यदि वे वचन(बाइबल) के परिश्रम अध्ययन कर्ता न हों तो वे गम्भीर भूलें करेंगे जो उनके और दूसरों के आनन्द को वर्तमान तथा भविष्य के लिए नष्ट कर देगा.ककेप 174.6

    विवाह का विचार करने के पूर्व यदि पुरुष और स्त्री दिन में दो बार प्रार्थना करते हों तो जब जब वे इस विषय में कोई कदम उठाना चाहें उन्हें दिन में चार बार प्रार्थना करना चाहिए.विवाह एक ऐसी वस्तु है जो आप के जीवन को वर्तमान तथा भविष्य के संसार के लिए प्रभावित करेगी.ककेप 175.1

    हमारे समय के अधिक विवाह,और जिस रुप में उनका प्रबन्ध किया जाता है अन्तिम दिनों के चिन्ह प्रमाणित हो रहे हैं. पुरुष और स्त्रियां इतने आग्रही और हठी हैं कि परमेश्वर तो उनसे बिल्कुल दूर ही छूट जाता है.धर्म अलग रख दिया जाता है,मानो इस गम्भीर और महत्वपूर्ण विषय में उसका कोई भाग ही नककेप 175.2