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कलीसिया के लिए परामर्श

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    अध्याय 16 - दरिद्रता तथा दुःख संकट की ओर मसीह का दृष्टिकोण

    आज परमेश्वर मनुष्यों को मौका देता है कि देखें वे अपने पड़ोसी से प्रेम रखते हैं अथवा नहीं.जो सचमुच में परमेश्वर को और अपने पड़ोसी को प्यार करता है वही कंगाल, दुःखी, घायल पर अर्थात् उन पर जो मरने वाले हैं दया करता है.परमेश्वर प्रत्येक को चेता कर कहता है कि उपेक्षित कार्य को सम्भालो सृजनहार की नैतिक मूर्ति को मानव में पुनजीवित करो.ककेप 123.1

    परमेश्वर के कार्य में परिश्रम, आत्मत्याग तथा आत्मबलिदान की आवश्यकता पड़ती है.परन्तु हमारा यह तनिक-सा बलिदान उस बलिदान के मुकाबले में क्या है जिसे परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को दान द्वारा किया है.ककेप 123.2

    अनन्त जीवन के वारिस होने की शर्ते हमारे प्रभु द्वारा सरल भाषा में स्पष्ट रुप में दर्शाई है.जो मनुष्य डाकुओं द्वारा लूटा और घायल किया गया था वह (लूका 10:30-36) उन लोगों का प्रतिरुपक है जो हमारी दिलचस्पी सहानुभूति तथा प्रेम का विषय हैं. यदि हम ध्यान में लाये गए जरुरतमंदों तथा अभागियों की करुण परिस्थितियों की उपेक्षा करें चाहे वे कोई क्यों न हो, तो हमें अनन्त जीवन प्राप्ति का कोई आश्वासन नहीं दिया गया है;क्योंकि हम परमेश्वर की मांगों को पूरा नहीं करते हैं. हम मानव पर दया शील व करुणाशील इस लिए नहीं होते कि वे हमारे गोत्री भाई बन्धु नहीं हैं.अब तो आप दूसरी बड़ी आज्ञा के उलंघन करने हार बन गये जो अंतिम छ: आज्ञाओं का सार है.जो कोई एक ही बात में चूक जाय वह सारे बातों के दण्ड के योग्य हैं.जो अपने हृदयों को मानव की जरुरतो तथा दु:खों की ओर नहीं खोलते वे परमेश्वर की उन मांगों कीओर भी नहीं खोलेंगे जिनका वर्णन व्यवस्था की पहली चार आज्ञाओं में हुआ है.सांसारिकता का सिक्का हृदय और प्रेम के ऊपर जम चुका है इसलिए परमेश्वर का आदर नहीं किया जाता व उसकी प्रधानता दी जाती है.ककेप 123.3

    उसके अंत:करण पर जिस प्रकार लोहे की कलम से चट्टान पर लिखने हैं, लिख देना चाहिए कि जो दया, करुणा तथा धार्मिकता की अवज्ञा करता, जो गरीबों की अवहेलना करता है,जो दु:ख मानव की आवश्यकताओं की उपेक्षा करता है, जो दयालु तथा सुशील नहीं है वह ऐसी चाल चल रहा है कि परमेश्वर भी उसके चाल चलन के विकास होने में सहयोग नहीं दे सकता. जब हम दूसरों के प्रति ऐसी कोमल सहानुभूति महसूस करते हैं कि हम अपना लाभ तथा प्राप्ति को उनकी जरुरतों को पूरा करने को दे देते हैं तो मन और हृदय का विकास अधिक सरलता से हो जाता है.अपने हो लिये सब कुछ प्राप्त करने  तथा उसे अपने ही पास रखने से आत्मा कंगाल होती है.परन्तु मसीह के समस्त सद्गुण उन लोगों की ओर से स्वागत की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो उसको कार्य को मसीह के ढंग पर करेंगे जिससे परमेश्वर ने उनके करने को नियुक्त किया है.ककेप 123.4

    त्राणकर्ता पदवी तथा जाति सांसारिक मान तथा धन सम्पति को अवज्ञा करता है.चरित्र तथा अभिप्राय की लगन ये ही उनके सामने बड़ा सम्मान रखते हैं.वह न तो बलवानों का और न धनवानों का पक्षपात करता है.जीवित परमेश्वर का पुत्र पतित मानव के उत्थान के लिए पृथ्वी तक उतर आया.प्रतिज्ञाओं तथा आश्वासन पूर्ण वचनों द्वारा वह खोई हुई तथा नाश होने वाली आत्मा को बचाना चाहता है.परमेश्वर के दूत इस ताक में हैं कि देखें कि इसके शिष्यों में से कौन करुणा तथा सहानुभूति व्यवहार में लाएगा. वे इस बात को देखने की ताक में हैं कि परमेश्वर के लोगों में से कौन यीशु का सा प्रेम दिखलाएगा.ककेप 124.1

    परमेश्वर केवल आपकी दान शीलता ही की नही किन्तु आप के चेहरे के हँसमुखपन आपके आशापूर्ण वचनों और आपके दूसरों से हाथ मिलाने को माँग करता है.जब आप दुःखी लोगों से मिलते हैं तो आप ऐसे पायेंगे जिनके हृदय से आशा कूच कर गई है. उनके पास आशा की किरण फिर से लाइये.ऐसे लोग भी मिलेंगे जिन्हें जीवन की रोटी की आवश्यकता है उनको परमेश्वर के वचन से पढ़कर सुनाइए, जिन्हें आत्मिक रोग हुआ है जिस तक किसी सांसारिक मलहम की पहुंच नहीं हो सकती अथवा न कोई हकीम चंगा कर सकता हे इन्हीं के लिए प्रार्थना कीजिए और उन्हें मसीह के पास लाइये.ककेप 124.2