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कलीसिया के लिए परामर्श

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    दानिय्येल पवित्र जीवन का एक उदाहरण

    दानिय्येल का जीवन पवित्र किए हुए व्यक्ति का प्रेरणा-संपन्न उदाहरण है.इसमें सब के लिए एक पाठ है विशेषकर युवकों के लिए परमेश्वर की मांगों का पूर्ण पालन शरीर और मन दोनों के लिए स्वास्थ्य वर्धक है.नैतिक और मानसिक मर्यादा के उच्च स्तर तक पहुंचने के हेतु यह आवश्यक है कि परमेश्वर से बुद्धि व शक्ति मांगी जाय और जीवन की सारी आदतों में कड़ी संयमता बरती जाय.ककेप 94.1

    दानिय्येल का चालचलन जितना निर्दोष था उतनी ही अधिक घृणा उसके विरुद्ध शत्रुओं द्वारा उकसाई गई.क्योंकि वे उसके चालचलन में अथवा कर्तव्य पालन में कोई दोष न ढूढ़ सके इस लिये वे क्रोध के मारे पागल हो गए.’’तब से लोग कहने लगे हमें उस दानिय्येल के परमेश्वर को छोड़ और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे.’’(दानिय्येल 6:5)ककेप 94.2

    सारे मसीहियों के लिये वहां पर कैसा उत्तम पाठ प्रदर्शित किया गया है.दिन प्रति दिन दानिय्येल पर ईर्षा की तीव्र दृष्टि लगी रहती थी;घृणा द्वारा हो यह दृष्टि तीव्र हो गई थी तौभी उसके जीवन के किसी शब्द या कर्म से वे उसमें दोष न ढूढ़ सके.तौभी उसने पवित्रताई का कोई दावा नहीं किया बल्कि वह काम किया जो अत्यन्त सुन्दर था-उसने नमकहलाली और समर्पण का जीवन व्यतीत किया.ककेप 94.3

    अब सम्राट के पास से हुक्म निकलता है.दानिय्येल अपने शत्रुओं के नाश करने वाले से परिचित हो जाता है.परन्तु वह अपना रत्ती भर भी नहीं बदलता.शांति के साथ वह अपना कर्तव्य का निवारण करता है,और प्रार्थना के नियत समय में अपनी कोठरी में जाकर और खिड़कियों को यरुशलेम की ओर खोलकर वह अपनी प्रार्थनाओं को स्वर्ग के परमेश्वर के सामने उपस्थित करता है.इस कार्यवाही से मानो वह निर्भय होकर घोषणा करता है कि किसी सांसारिक शक्ति को अधिकार नहीं कि उसके और परमेश्वर के बीच में आकर बतलाये कि प्रार्थना किस से करनी चाहिये और किस से नहीं.सिद्धान्त का पुतला ! वह आज मसीही धैर्य और विश्वस्तता का संसार के सामने प्रशंसायोग्य उदाहरण है.सम्पूर्ण हृदय से वह परमेश्वर की ओर फिरता है यद्यपि वह भली भांति जानता है कि उसकी भक्ति का मूल्य मृत्यु है.ककेप 94.4

    “तब राजा ने आज्ञा दी और दानिय्येल को लाकर सिहों की मांद में डाल दिया गया.उस समय राजा ने दानिय्येल से कह “तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है सोई तुझे बचायेगा.’’(पद 16)ककेप 94.5

    प्रातः सम्राट ने सिंहों के गढ़े की ओर जल्द की और पुकार कर कहा, ‘’हे दानिय्येल,हे जीवते परमेश्वर के दास !क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है तुझे सिंहों से बचा नहीं सका है? (पद 20)तब नबी की वाणी उत्तर में सुनाई दी,“हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे.मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुंह को ऐसा बंद कर रखा है कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की,इसका कारण यह है कि मैं उसके सामने निर्दोष पाया गया और हे राजा तेरी भी मैंने कुछ हानि नहीं की.’‘ककेप 94.6

    “तब राजा ने दानिय्येल के विषय में बहुत आनन्दित होकर उसको गढ़ में से निकालने की आज्ञा दी और दानिय्येल गढ़ में से निकाला गया और उसमें हानि का कोई चिन्ह न पाया गया क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था.’’(पद 22,23)इस प्रकार परमेश्वर के दास का छुटकारा हुआ.और वह जाल जो उसके बैरियों ने उसके नाश के लिये बिछाया था उन्हीं की बर्बादी का कारण सिद्ध हुआ.राजा की आज्ञा पर वे सिंहों के गढ़ में डाले गये और जंगली जन्तुओं ने उन्हें तुरंत ही चट कर दिया.ककेप 94.7

    जब सत्तर वर्ष की बुधवाई के समाप्त का समय आ पहुंचा तो दानिय्येल का मन यिर्मयाह की भविष्यवाणी पर अत्यन्त व्याकुल हुआ.ककेप 94.8

    दानिय्येल परमेश्वर के सामने अपनी स्वामिभक्ति का ढिंढोरा नहीं पीटता बजाय पवित्र और निष्पाप होने का दावा करने के यह माननीय नबी अपने को इस्राएल के पापियों में गिनता है.जो बुद्धि परमेश्वर ने उसको दी थी संसार के बड़े-बड़े विद्धानों की बुद्धि से इतनी उच्च कोटि की थी जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश दोपहर को छोटे टिमटिमाते हुए तारे से अधिक चमकदार होता है.तौभी ध्यान दीजिये कि इस पुरुषके मुंह से निकली प्रार्थना पर स्वर्ग की भारी कृपा हुई है.अत्यंत नम्रता से व आंसू बहा-बहाकर तथा हृदय को चुरचूर कर वह अपने और अपनी काम के लिए विनती करता है.वह अपनी दय को परमेश्वर के प्रताप तथा वैभव को स्वीकार करता है.ककेप 95.1

    दानिय्येल प्रार्थना कर ही रहा है कि जिब्राएल दूत स्वर्गीय दरबार से तेजी से उड़ता हुआ उसके पास यह कहने आता है कि तेरी प्रार्थनाएं सुनी गईं और उनका उत्तर दिया गया है.यह सामर्थी दूत भेजा गया है कि उसको योग्यता और ज्ञान प्रदान करे और उसके सामने भविष्य के युगों के रहस्य खोले.इस प्रकार जब वह उत्कंठित हो सत्य को जानने तथा बूझने की चिंता में था,दानिय्येल स्वर्ग के नियुक्त दूत के संसर्ग में लाया गया. ककेप 95.2

    उसकी प्रार्थना के उत्तर में दानिय्येल को न केवल प्रकाश और सत्य ही प्राप्त हुआ जिनकी उसको और उसकी जाति को अत्यन्त आवश्यकता थी अपितु भविष्य की घटनाओं का एक दृश्य यहां तक कि मसीह के आगमन तक का दृश्य भी दिखलाया गया.जो पवित्रताई का दावा तो करते हैं और शास्त्रों की ढूंढ ढांढ करने की कोई इच्छा नहीं रखते या परमेश्वर के संग प्रार्थना में कुश्ती नहीं लड़ते कि बाइबल के सत्य की स्पष्ट समझ प्राप्त हो वे जानते नहीं कि सच्ची पवित्रता है क्या चीज़.ककेप 95.3

    दानिय्येल परमेश्वर के संग बातचीत करता था.स्वर्ग उसके सामने खुल गया.परन्तु जो सम्मान उसको दिया गया वह सब नम्रता और उत्साहपूर्ण कोशिश का फल था जो तन मन से परमेश्वर के वचन पर विश्वास करते हैं वे उसकी इच्छा के ज्ञान के लिये भूख व प्यास प्रगट करेंगे.परमेश्वर सत्य का कर्ता है.वह अंधेरी समझ को प्रकाशमान करता है और सत्य को जिसे उसने प्रगट किया है मानव बुद्धि को ग्रहण करने तथा समझने की शक्ति देता है.ककेप 95.4

    जगत के सृष्टिकर्ता ने जिन महान सत्यों को प्रकट किया है वे उनके लिए हैं जो सत्य की ऐसी तलाश करते हैं जैसे छिपे हुए धन की.दानिय्येल वृद्ध हो गया था. उसका जीवन अन्यजाति के दरबार के आकर्षणों के दर्मियान से होके गुजरा था.उसका मस्तिष्क भारी साम्राज्य की कार्यवाहियों से दबा हुआ था, तौभी वह इन सब को एक ओर करके अपनी आत्मा को परमेश्वर के सामने दु:खी करता और परम प्रधान के मनोरथों के ज्ञान की खोज करता है और उसकी प्रार्थनाओं के उत्तर में स्वर्गीय दरबार से उनकी खातिर जो अंतिम दिनों में रहते हैं प्रकाश व ज्ञान पहुँचाया गया.तब हमको कितने उत्साह के साथ परमेश्वर को ढूंढना चाहिए ताकि वह हमारी बुद्धि को खोले कि हम उन सत्यों को जो स्वर्ग से भेजे गए हैं समझ सकें.ककेप 95.5

    दानिय्येल परमप्रधान का उत्साही सेवक था.उसकी चिरजीवी अपने स्वामी के लिए शुभकार्यों से भरपूर थी.उसके पवित्र आचारण अडिग स्वामिभक्ति की बराबरी केवल उसके हृदय की नम्रत वे सुशीलता ही कर सकती है. हम फिर कहते हैं, दानिय्येल का जीवन सच्ची पवित्रता का प्रेरणापूर्ण उदाहरण है.ककेप 95.6