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कलीसिया के लिए परामर्श

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    दूध पिलाने वाली माताओं की स्थिति

    नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ का निर्माण प्रकृति द्वारा होता है.बालक को इस आहार से व्यर्थ वंचित नहीं रखना चाहिए.अपनी सुविधा अथवा सामाजिक मनोरंजन के हेतु शिशु पोषण के उत्तरदायित्व से माता का स्वतंत्र होना एक हृदयहीन कार्य है वह एक सूक्ष्म समय है.(अनेकों माताएं जब वे अपने शिशुओं को दूध पिलाती हैं तो वे अत्यधिक परिश्रम करती हैं.वे भोजन पकाते समय अपने रक्त को सुखी डोलती हैं)इसका शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.यह उस गरम दूध को विषाक्त बना देता है जो बालक के लिए हानिकार है.माता के मस्तिष्क की स्थिति का प्रभाव भी बालक पर पड़ता है.यदि माता दुखित खिजलाने वाली उद्वेगी हो तो बालक का पोषण भी प्रभावित होगा जिससे उसके पेट में दर्द,मरोड़ होगी, बेहोशी के दौरे आना भी सम्भव है.ककेप 198.4

    बालक माता के दूध के द्वारा जिस रुप में पौष्टिक पदार्थ पाता है वह भी न्यूनाधिक रुपमें उसके चरित्र को प्रभावित करता है.ककेप 198.5

    इस कारण माता के लिये अत्यावश्यक है कि प्रसन्नचित रहकर अपनी आत्मा पर पूरा नियंत्रण रखें.ऐसा करने से बालक का भोजन दूषित नहीं होता है.बालक के साथ व्यवहार में माता का शान्तमय स्वस्यचित बालक के जीवन में प्रवष्टि होकर उसके मस्तिष्क के निर्माण में कार्यशील होता है.यदि बालक धैर्यहीन हो अथवा उत्तजित हो तो माता का सावधानी पूर्व धैर्यशील व्यवहार बालक के सुधार में सफल होकर उसे स्वस्थ बनाएगा.ककेप 198.6

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