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कलीसिया के लिए परामर्श

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    कलीसिया और संस्था के नेताओं की आलोचना का प्रभाव

    गपशप और बात उड़ाने की भावना शैतान का एक विशेष साधन है, लड़ाई झगड़े उत्पन्न करने,मित्रों को अलग करने, तथा सत्यता पर लोगों का विश्वास कमजोर करने के लिए भाई,बहिन अधिकतर दूसरों की गलतियों की आलोचना करने में तत्पर होते हैं, विशेषकर उनकी गलतियों की जिन्होंने परमेश्वर-दत्त ताड़ना तथा चितौनी के संदेशों को दृढ़ता से पहुँचाया है.ककेप 235.4

    ऐसे कुड़कुड़ाने वालों के बालक बड़े ध्यान से इन बातों को सुनते हैं और प्रेम शून्य विष प्राप्त करते हैं.माता-पिता अन्धे होकर इन बालकों के उन द्वारों को बन्द कर देते हैं जिनसे उनके हृदयों तक पहुंच सकते.ईश्वर का इससे अनादर होता है.प्रभु यीशु ने कहा है कि तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से एक के लिये किया वह मेरे लिये किया.’‘ (मत्ती 25:40)इस लिये मसीह उन के द्वारा जो इन छोटे सेवकों को भरमाते हैं अपमानित किया जाता है.ककेप 235.5

    ईश्वर के चुने हुये सेवकों के नाम का अनादर होता है,उनकी अवहेलना की जाती है ऐसे व्यक्तियों के द्वारा जिनका कर्तव्य उनको उठाना है.अपने माता-पिता के इन अपमान भरे शब्दों को सुनने में नहीं चूकते जो वे ईश्वर के सेवकों की चितौनी और चुनौती के लिये प्रमाण करते हैं वे उन खेदित अंग और भाषणों को समय-समय पर सुनते रहते हैं जिसका प्रभाव,उनके मस्तिष्क पर पवित्र और अनन्त विषयों से हटकर,संसार के साधारण स्वर पर आ जाता है.यह माता-पिता इन बालकों को उनके शैशव काल में ही अधर्मी बनाने का कैसा करते हैं.यही मार्ग है जिसके द्वारा बालक अनादर करने वाले और ईश्वर का पापों के प्रति उलाहना का विरोध करने वाले बन जाते हैं.ककेप 235.6

    आत्मिक अवनीति ही वहां होगी जहां ऐसी बुराई पाई जाती है.ऐसे ही माता-पिता शैतान से अन्धे होकर आश्चर्य से अपने बालकों की ओर देखते हैं,कि वे कैसे अविश्वास और बाइबल के सत्य के प्रति सन्देह रखते हैं.वे अचंभित होते हैं कि उनकी नैतिक और धार्मिक प्रभाव के अंतर्गत लाना कितना कठिन है.यदि उनकी आत्मिक दृष्टि होती तो वे एकदम इस बात को मालूम करते कि यह उनके घर के प्रभाव का ही परिणाम है जो जलन और ईर्षा से उज्वल होता.इस प्रकार बहुत से अधर्मी उन परिवारों के अन्दर होते हैं जो नाम मात्र के मसीही हैं.ककेप 236.1

    बहुत से ऐसे व्यक्ति होते हैं जो दूसरों की बुराई करने में ही आनन्द लेते हैं चाहें वह वास्तविक हो अथवा काल्पनिक ऐसे व्यक्ति जो ईश्वर के कार्य के लिये बड़ा उत्तरदायित्व रखते हैं.वे उस अच्छाई को तो ध्यान नहीं रखते और उस अथक परिश्रम और भक्ति जिसके द्वार वह कार्य हुआ है परन्तु अपना ध्यान उन ऊपरी गलतियों पर लगाते हैं,और ऐसा विचार करते हैं कि मानो वही कार्य अच्छे उपाय से और उत्तम परिणामों द्वारा हो सकता था जब कि सत्य यह है, कि यदि उन पर वह कार्य छोड़ दिया जाता तो मानों वे उसको करने को अस्वीकार करते अथवा उनमें जिन्होंने कार्य किया है अधिक उत्तम कार्य ईश्वर की सहायता के बिना नहीं कर सकते.ककेप 236.2

    परन्तु ये अनर्थ गपशप करने वाले कार्य के असहमत भाग पर ही अधिक ध्यान देते हैं जैसे मानोकई चट्टान में लग जाती है.ऐसे व्यक्ति आत्मिक बौने हो जो सदैव दूसरों की गलतियों और असफलताओं की ही आलोचना करते हैं.वे अच्छे और सच्चे कार्य निस्वार्थी परिश्रम सत्यता और आत्माात्याग को समझने की क्षमता ही नहीं रखते.वे अपने जीवन और आज्ञाओं में अधिक उच्च और उन्नतिशील नहीं होते और न अपनी योजनाओं और विचारों में विस्तृत दृष्टिकोण रखते हैं.वे उस प्रेम की आदत नहीं डालते जो मसीही जीवन की विशेषता है.वे प्रतिदिन बुरे बनते जाते तथा अपने विचारों और दृष्टिकोण रखते हैं.वे उस प्रेम की आदत नहीं डालते जो मसीही जीवन की विशेषता है.वे प्रतिदिन बुरे बनते जाते तथा अपने विचारों और दृष्टिकोण में संकीर्ण होते जाते हैं.क्षुद्रता उनका गुण है और उनके चारों ओर का वातावरण शान्ति और प्रसन्नता के लिये विषकारक है.ककेप 236.3

    प्रत्येक संस्था को उनके विरुद्ध कठिनता की लड़ाई लड़नी है ईश्वर की संस्था पर आ पड़ती है तभी पता चलेगा कि ईश्वर में और उसके कामों में हमारा कितना सच्चा विश्वास है.ऐसे अवसर पर सन्देह और अविश्वास को व्यस्त करना ठीक नहीं उनकी आलोचना कीजिये जो अधिक उत्तरदायित्व के बोझ से दबे हैं.ईश्वर के सेवकों के कार्य की आलोचना करने से अपने घर के वातावरण को दूषित होने न दीजिए.माता-पिता जो आलोचना की आत्मा रखते हैं अपने बच्चों को उद्धार पाने के लिये बुद्धिमान नहीं बनाते.अपने शब्दों के द्वारा वे न केवल बालकों, परन्तु प्रौढों का विश्वास भी डॉवा-डोल करते हैं.ककेप 236.4

    हमारी संस्थाओं के संस्थापकों के लिये अपने सरंक्षक नौजवानों को नियम और अनुशासन में रखना बड़ा कठिन है जब नवयुवक संस्था के अनुशासन के अधीन नहीं रहना चाहते और अपने बड़ो से मतभेद होने पर अपनी इच्छा पर चलना चाहते,माता-पिता को अंधे होकर उनका पक्ष लेना न सहानुभूति करना चाहिए.ककेप 236.5

    उन सिद्धांतों की जिन पर सत्य मानव तथा परमेश्वर की स्वाभिभक्ति की बुनियाद पड़ी है अवहेलना करने की शिक्षा प्राप्त करने की अपेक्षा अच्छा वरन् बहुत अच्छा होगा कि आप के बालक दु:ख उठावें या कब्र में चले जाएं.ककेप 237.1