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कलीसिया के लिए परामर्श

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    केवल मसीह ही मनुष्य का विचार कर सकता है

    मसीह ने अपने को नम्र किया कि वह मानव का सरदार बनकर प्रलोभनों का सामना करे और उन परीक्षाओं को सहन करे जो मानव के सामने आती और उसे झेलने पड़ती है.उसको परिचित होना चाहिए कि मानव को पतित शत्रु के हाथ क्या-क्या भोगन पड़ती है. ताकि वह जान सके कि जो प्रलोभन में पड़ जाते हैं उनकी किस प्रकार सहायता करनी चाहिए.ककेप 121.6

    मसीह हमारा न्यायकर्ता नियुक्त हुआ है. पिता न्यायकर्ता नहीं हैं स्वर्गदूत भी नहीं,जिसने मनुष्य का रुप धारण किया और इस जगत् में एक सिद्ध जीवन व्यतीत किया वहीं हमारा न्याय करेगा.केवल वही हमारा न्यायकर्ता हो सकता है. भाइयो क्या आप इस बात को याद रखेंगे? मंडली के अध्यक्षो, क्या आप इसे याद रखेगे? माता-पिताओं,आप इसे याद रखेंगे मसीह ने मानव रुप धारण किया कि वह हमारा न्यायकर्ता बन सके.आप में से कोई दूसरे का न्यायो नियुक्त नहीं किया गया.अपने तईं अनुशासनाधीन करने के हेतु आप इतना ही कर सकते हैं. मसीह के नाम की खातिर मैं आप से निवेदन करती हैं उसके इस आदेश पर ध्यान दीजिए कि आप अपने को न्यायाधीश की जगह पर रखें.दिन प्रतिदिन यह सन्देश मेरे कानों में सुनाई पड़ता है. न्यायाधीश की चौकी से नीचे उतर आओ.नम्रता से उतर आओ.ककेप 122.1

    परमेश्वर समस्त पापों को एक सा दर्जे का नहीं समझता;उसकी दृष्टि में और मानव की दृष्टि में भी अपराध की श्रेणी होती है.परन्तु उनकी दृष्टि में कोई पाप छोटा नही है.वह पाप जिसे मनुष्य तनिक सा देखता है हो सकता है वही परमेश्वर की दृष्टि में भारी अपराध जैसा सोचा जाता है.शराबी को तुच्छ समझा जाता है और उसे बतलाया जाता है कि उसका पाप उसे स्वर्ग से दूर कर डालेगा जब अभिमान, अपस्वार्थी एवं लालच पर कोई धिक्कारता भी नहीं.पर ये ऐसे पाप हैं जिनसे परमेश्वर को विशेष घृणा है. वह घमंडी का सामना करता है और पौलुस हमें बतलाता है कि लालच मूर्तिपूजा पर दी गई झिड़िकिया से परिचित हैं वे तुरन्त जान जाएंगे कि यह पाप किया कितना गम्भीर है.ककेप 122.2