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कलीसिया के लिए परामर्श

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    सब्बत स्कूल

    सब्बत स्कूल सब्यत स्कूल का लक्ष्य आत्माओं को बचाने का होना चाहिये, हो सकता है कि कार्य प्रबंध निर्दोष हो, सुविधायें ऐसी हो जैसी इच्छा की जा सके परन्तु यदि बालक और युवक मसीह के पास नहीं लाये जाते हैं तो स्कूल असफल हैं; क्योंकि जब तक आत्माएँ मसीह की ओर नहीं खिंचतीं तो उन पर दिखावटी धर्म के प्रभावाधीन कोई असर नहीं होता. शिक्षक को चाहिये कि जब वह उनके हृदय पर जो सहायता चाहते है खटखटाता है तो उनके संग सहयोग दे. यदि विद्यार्थी पवित्र आत्मा की अनुपमता को सुने और उत्तर देवे और हृदय के द्वार को खोले ताकि यीशु अन्दर आये तो वह उनकी समझ को खोलेगा ताकि वे ईश्वरीय बातों को समझ सकें, शिक्षक का कार्य साधारण है परन्तु यदि वह यीशु की आत्मा में किया जाय तो परमेश्वर की आत्मा द्वारा उसमें गहरें भावों तथा कार्यक्षमता की वृद्धि होगी.ककेप 48.4

    हे माता-पिताओ! अपने बालकों के संग सब्बत स्कूल का पाठ सीखने की इच्छा से प्रतिदिन थोड़ा समय नियत कीजिये. यदि आवश्यकता हो तो सामाजिक भेट मुलाकातों को छोड़ दें और उस घंटे का जो पवित्र इतिहास की कीमती पाठों को सीखने का है कुर्बान न करें. इस अध्ययन से मां-बाप तथा बालकों का लाभ होगा. अति महत्व रखने वाले वाक्य जो उस पाठ से सम्बन्धित है मुखाग्र कर लेना चाहिये आवश्यकीय बात के रुप में नहीं किन्तु एक सुअवसर समझकर. यद्यपि आदि में स्मरणशक्ति दूषित हो परन्तु अभ्यास से उसको बल प्राप्त होगा ऐसा कि कुछ समय पश्चात् आपको सत्य के कीमती शब्दों को इकट्ठा करने में आनन्द आयेगा. और यह आदत धार्मिक वृद्वि में मूल्यवान सहायता सिद्ध होगी---ककेप 48.5

    अपने परिवारों में शास्त्रावलोकन का नियम बांधिए. सांसारिक प्रकृति कीककेप 49.1

    कोई भी वस्तु हो उसको त्याग दीजिए, अनावश्यकीय सिलाई और खाने की मेज़ के लिए अनावश्यकीय पदार्थों को छोड़ दीजिये परन्तु निश्चय कर लीजिये कि जीवन की रोटी से आत्मा सन्तुष्ट हो रही है. परमेश्वर के वचन के अध्ययन में एक या आधा घंटा जो खुशी के साथ व्यतीत किया जाता है उसके सुपरिणाम का अन्दाजा लगाना असम्भव है. बाइबल ही स्वंय अपनी व्याख्या करे अर्थात किसी दिये विषय पर भिन्न-भिन्न समय पर अथवा विभिन्न हालत के अधीन जो कुछ विवरण हुआ है उसको एकत्र करे. अपने घर में हो रहे क्लास को मुलाकातियों के आगमन पर तोड़ न डालिए. यदि वे शास्त्राभ्यास के समय उपस्थित होवे तो उनको भी भाग लेने का निमन्त्रण दीजिये. यह प्रत्यक्ष किया जाये कि आप दुनिया के लाभ व आनन्द की अपेक्षा परमेश्वर के वचन का ज्ञान प्राप्त करना अधिक मूल्यवान समझते हैं.ककेप 49.2

    कुछ सब्बत स्कूलों में, मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है, पाठ बजाय सिखलाने के पढ़ा जाता है. ऐसा होना नहीं चाहिये. ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ेगी जब समय व्यर्थ रुप में लापरवाही से व्यतीत किया जाता है वह शास्त्राभ्यास में लगाया जाय. शिक्षकों तथा विद्यार्थियों द्वारा सब्बत स्कूल के पाठों को सरकारी स्कूलों के पाठों की अपेक्षा सरसरी तौर पर पढ़ने का कोई कारण नहीं है. उनको तो और भी अच्छी तरह से पढ़ना चाहिये क्योंकि वे ऐसे विषयों का वर्णन करते हैं जो अपरिमित महत्व रखते हैं. इस विषय में लापरवाही परमेश्वर को अप्रसन्न करने वाली है.ककेप 49.3

    जो सब्बत स्कूल का पाठ पढ़ाते है उनका हृदय परमेश्वर के सत्य से उत्साही तथा बलवन्त होना चाहिए. उनको न केवल सुनने वाला किन्तु वचन पर चलने वाला भी होना चाहिये. उसी प्रकार उनका मसीह में पोषण होना चाहिये जिसे प्रकार दाखलता में डालियाँ पोषण होती हैं. स्वर्गीय अनुभव की ओस उन पर पड़नी चाहिये ताकि उनके हृदय कीमती पौधों की तरह हों जिनकी कलियाँ खिलती, फैलती और परमेश्वर की वाटिका के फूलों की तरह कृतज्ञता मोहक गंध देती है, शिक्षकों को परमेश्वर के सुवचन का परिश्रमी विद्यार्थी बनना चाहिये और इस तथ्य को प्रगट करना चाहिये कि वे मसीह के स्कूल में दैनिक पाठ सीख रहे हैं और दूसरों को उस प्रकाश को पहुँचाने के योग्य हैं जिसे उन्होंने महान् गुरु तथा जगत् के प्रकाश से प्राप्त किया था.ककेप 49.4