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कलीसिया के लिए परामर्श

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    ऐसे कार्य करो मानो स्वयं रुप परमेश्वर सामने हो

    परमेश्वर के लिए सच्चा आदर उसके असीम प्रताप के ज्ञान और उसकी उपस्थिति के अनुभव से प्रेरित होता है प्रत्येक हृदय पर अदृश्य परमेश्वर के उस ज्ञान से गहरा प्रभाव पड़ना चाहिये.प्रार्थना का समय तथा स्थान दोनों पवित्र हैं क्योंकि वहां पर परमेश्वर उपस्थित हो;इस लिए कि स्थिति और भावना दोनों में आदर प्रगट होता,’’उसका नाम पवित्र और भययोग्य है.’(भजनसंहिता 111:9)ककेप 112.3

    जब सभा का आरम्भ प्रार्थना द्वारा होता है तो प्रत्येक घुटने को पवित्र परमेश्वर के सामने टिकना चाहिये और प्रत्येक हृदय को खामोशी के साथ भक्ति में परमेश्वर की ओर उठाना चाहिये.विश्वासयोग्य उपासकों की प्रार्थना सुनी जायगी और वचन का प्रचार प्रभावशाली सिद्ध होगा.परमेश्वर के घर में उपासकों की निर्जीव जैसी स्थिति ही एक बड़ा कारण स्पष्ट वाणी द्वारा निकाली जाती है वह आत्माओं के त्राण में परमेश्वर का एक मात्र है.सारी आराधना गम्भीरता तथा भय के साथ चलानी चाहिए मानो कि हम सभाओं के स्वामी की उपस्थिति में हों.ककेप 112.4

    जब वचन का प्रचार हो रहा है तब भाइयों, आपको स्मरण रखना चाहिये कि आप परमेश्वर की वाणी उसके प्रतिनिधि द्वारा सुन रहे हैं.तब ध्यानपूर्वक सुनिये.सो न जाइये क्योंकि इस नींद से आप उन्हीं शब्दों को खो बैठेंगे जिनकी आप को बुरे मार्ग की ओर भटकने से बचाएंगे.शैतान और उसके दूत ज्ञान इन्द्रियों अधमुई स्थिति उत्पन्न करने में संलग्न है जिससे कि सावधानी,चितावनी और सुधराव के वचन सुने न जायं अथवा सुने भो जाये तो उनके हृदय पर कुछ प्रभाव न हो और जीवन में सुधार न होने पाय.कभी-कभी श्रोतागण के ध्यान को एक छोटा बालक ऐसा खींच लेगा कि बहुमूल्य बीज अच्छी भूमि पर नहीं पड़ने पाता और फल नहीं लाता.कभी-कभी युवा पुरुष स्त्रियों में परमेश्वर के घर तथा उपासना के लिए इतना थोड़ा सम्मान होता है कि वे भाषण ही के बीच एक दूसरे से लगातार बातचीत करते रहते हैं.यदि ये परमेश्वर के दूतों को भी देख सकते कि वे उनको देखते और कामों का हिसाब रखते तो वे शर्म के मारे अपने आपको धिक्कार देते.परमेश्वर ध्यान देने वाले श्रोताओं को चाहता है. जब लोग सो रहे थे तभी शैतान जंगली दाने बो गया.ककेप 112.5

    जब अंतिम प्रार्थना भी दिया जाता है तो सब को फिर खामोश रहना चाहिये ऐसा नहीं कि मसीह की शांति हाथ से जाती रहे.बिना एक दूसरे को धक्का मुक्की दिये अथवा ऊंचे शब्द से बातें करते हुए बाहर न निकलना चाहिये यह जानते हुये कि वे परमेश्वर के सामने सउपस्थित है कि उसकी आंख उन पर लगी है और उनको ऐसा करना चाहिए मानों उसकी उपस्थिति में हैं.मुलाकात करने के लिए या गुप्प मारने के लिए रास्ते में नहीं रुक जाना चाहिये इस प्रकार उनका रास्ता जाता है जो बाहर जाना चाहते हैं.गिर्जे का सारा हात (सम्मान) पवित्र सम्मान से भरपूर होना चाहिए.उसे अपने पुराने मित्रों से मिलने व मुलाकात करने और सामान्य बातचीत और सांसारिक व्यवसायिक लेने देन की बातचीत का स्थान नहीं बनाना चाहिए.इन्हें गिर्जे से बाहर की छोड़ देना चाहिए.कुछ-कुछ जगहों में लापरवाह,गुलगपाड़े के साथ हंसने और पावों की आवाज सुनी जाती है जिससे परमेश्वर और दूतों का निरादर होता है.ककेप 113.1