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कलीसिया के लिए परामर्श

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    दशमांश परमेश्वर द्वारा नियत किया गया है

    स्वेच्छापूर्वक भेट तथा दशमांश इंजील की आय है. उस सम्पति में जो मनुष्य को सौंपी गई हैं परमेश्वर एक विशेष अंश पर हक रखता है-केवल दशमांश पर सभों को स्मरण रखना चाहिये कि परमेश्वर का हक हम पर सभी दूसरे हकों से मुख्य है. वह तो हम को बहुतायत से देता है परन्तु जो करार उसने मनुष्य से किया है वह यह है कि उसकी(मनुष्य की)सारी सम्पति का दशवां भाग परमेश्वर को लौटाया जाय. परमेश्वर उदारता से अपने भंडारियों को अपने कोष सौंपता है परन्तु दशवें भाग वे प्रति वह कहता है यह मेरा है. जिस अनुपात से परमेश्वर ने अपनी संपति हमको दो है उसी अनुपात से मनुष्य अपने माल का यथार्य दशमांश परमेश्वर को लौटाये. यह स्पष्ट प्रबंध यीशु मसीह ने स्वयं किया था.ककेप 74.2

    यह सामजिक सत्य पृथ्वी के अंधेरे कोने-कोने तक ले जाना चाहिये, जिसका आरंभ घर ही से होना चाहिये.मसीह के शिष्यों को स्वार्थपूर्ण जीवन नहीं व्यतीत करना चाहिये परन्तु मसीह की आत्मा से प्रोत्साहित होकर उसके संग मिलकर कार्य करना चाहिये.ककेप 74.3

    जो महान कार्य यीशु करने आया थी वही पृथ्वी पर उसके शिष्यों को सौंपा गया. उसने अपने लोगों को एक-एक उपाय दिया है जिससे वे काफी धन एकत्र कर सकते हैं. जिससे कार्यक्रम स्वावलंबी हो सकता है. परमेश्वर की दशमांश की योजना साधारणता तथा समानता में अति सुन्दर है. सब लोग उसको विश्वास और धैर्य से स्वीकार कर सकते हैं क्योंकि उसकी उत्पत्ति ईश्वर की ओर से ही है. उसमें साधारणत: और उपयोगिता संयुक्त हैं और उसके समझने और उपयोग में लाने के लिये उच्च शिक्षा की भी आवश्यकता नहीं है. सब की ऐसी भावना ही कि हम त्राण के बहुमूल्य कार्य को आगे बढ़ाने में भाग ले सकते हैं. प्रत्येक पुरुष,स्त्री तथा युवक,युवती परमेश्वर के खजांची बन सकते और उन मांगों की पूर्ति कर सकते हैं जिनसे कोष में कमी आती है. प्रेरित कहता है, ” तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करें.’’(1 कुरिन्थियों 16:2)ककेप 74.4

    इस प्रबंध द्वारा बड़े-बड़े मनोरथ पूर्ण होते है. यदि सब के सब उसे स्वीकार करते तो प्रत्येक परमेश्वर के लिये सचेत और विश्वास पात्र कोषाध्यक्ष बनाया जाता और चितावनी के अंतिम संदेश फैलाने के महान कार्य में धन दौलत की कोई घटी न होती. यदि सब के सब इस रीति को धारण करें, तो ख़जाना लबालब भर जायगा और दानी लोग गरीबी नहीं महसूस करेंगे. हर बार जो दान दिया जायगा उसके द्वारा उनका वर्तमान सत्य के मनोरथ से अधिक घनिष्ट सम्बन्ध हो जायगा. वे आगे के लिए एक अच्छी नींव डाल रखें कि सत्य जीवन को वश में कर ले.(1तीमु6:19)ककेप 74.5

    जब तत्पर नियमशील कर्मचारी देखेंगे कि उनके परोपकारी प्रयत्नों की प्रवृति से परमेश्वर की और मनुष्य की और प्रेम बढ़ता है और उनके व्यक्तिगत प्रयत्नों द्वारा उनकी प्रतियोगिता के मंडल में वृद्धि हो रही है तो वे महसूस करेंगे कि मसीह के साथ काम करने में बड़ी आशीषं मिलती है. मसीही कलीसिया साधारणतया अपने ऊपर परमेश्वर के हक को अपनाए नहीं रही है कि अपनी सम्पति में से दान देवें जिससे नैतिक अंधकार के विरुद्ध छिड़े हुए युद्ध में सहायता हो. जब तक मसीह के अनुयायी फुर्तीले और उत्साही कर्मचारी न बने परमेश्वर का काम कभी ऐसी उन्नति नहीं कर सकता जैसी करनी चाहिए.ककेप 75.1