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कलीसिया के लिए परामर्श

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    भोर और संध्या की आराधना

    माता-पिताओं के प्रति:काल और सन्धाकाल अपने बालकों को एकत्र करके नम्र निवेदन सहित अपने हृदयों को परमेश्वर की सहायता के लिए उठाइए.आप के प्रिय जनों के सन्मुख परीक्षाएं है.दिन प्रतिदिन बालक और वृद्ध दोनों के पथ में परेशान करने वाली बातें उपस्थित हैं.शान्तमय प्रेमी व आनन्दमय जीवन व्यतीत करने वालों के लिए प्रार्थना अत्यावश्यक है.परमेश्वर से निरंन्तर सहायता प्राप्त करने द्वारा हम स्वयं ऊपर विनयी हो सकती हैं.ककेप 209.5

    यदि किसी समय प्रत्येक घर को प्रार्थना का घर बनाना है तो वह समय अब है.अभक्ति और नास्तिकता का राज्य है.अधर्म का बाहुल्य है.आत्मा के मुख्य प्रवाहों में भ्रष्टाचार का संचार है.जीवन में परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह है.पाप के वशीभूत होकर मानसिक शक्तियों पर शैतान का साम्राज्य है.आत्मा को परीक्षाओं का क्रीड़ास्थल बनाया गया है और जब तक तक सर्वसामर्थी भुजा द्वारा मनुष्य का उद्धार न हो तब तक विद्रोहियों का सरदार नेतृत्वर करता है.ककेप 210.1

    तौभी इस भय और संदेह के भयानक काल में अपने आप को मसीही कहने वाले कुछ घरानों में कौटुंम्बिक आराधना नहीं होती.वे घर में परमेश्वर का सम्मान नहीं चाहते हैं.वहां बच्चों को परमेश्वर के प्रेम एवं भय की शिक्षा नहीं दी जाती.अनेकों ने अपने आप को परमेश्वर के प्रेम एवं भय की शिक्षा नहीं दी जाती.अनेकों ने अपने आप को परमेश्वर के पृथक कर लिया है जो उसके निकट आने के लिए अपने आप को दोषी ठहराते हैं.वे बिना क्रोध और विवाद के अपने पवित्र हाथ को उठाकर हियाव के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास नहीं आ सकते.(इब्रानियों4:16;1तिमु 2:8)वे भक्ति का भेष तो रखते हैं पर उसकी शक्ति से अनजान हैं.ककेप 210.2

    प्राथना की अनावश्यकता का विचार मनुष्य के आत्माओं के विनाश के शैतान की एक सफल युक्ति है. प्रार्थना उस परमेश्वर के साथ संलाप जो बुद्धि का मूल तथा सामर्थ शान्ति और आनन्द का सोता है. “यीशु ने पिता से ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर और आँसू बहा बहाकर उसे जो उसको मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और विनती की और भक्ति के कारण उसकी सुनी गई.” पौलुस ने विश्वासियों को हर बातों में प्रार्थना निवेदन और धन्यावाद के साथ परमेश्वर से विनती करने और ‘’निरन्तर प्रार्थना में लगे रहने’’का उपदेश दिया.याकूब कहता है “एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो,जिससे चंगे हो जाओ;धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है.’’(इब्रानियों 5:7;1 थिस्सों 5:17;याकूब 5:16)ककेप 210.3

    विश्वासयोग्य प्रार्थना के साथ माता-पिता अपने बच्चों के चारों तरफ बाड़ा बांध ले, उन्हें विश्वास के साथ प्रार्थना करना चाहिए कि परमेश्वर उनके साथ रहे और उसके पवित्र दूत शैतान की दुष्ट युक्तियों से बचाने में उनकी रक्षा करें.ककेप 210.4

    प्रत्येक कुटुंब में भोर और सन्धया को भजन करने का निश्चित समय होना चाहिए,यह कैसा उचित है कि नाश्ता करने के पहले माता-पिता अपने बच्चों को अपने के लिए आस पास बुलाकर रात्रि की रक्षा के लिए स्वर्गीय पिता का धन्यवाद करें, और दिन भर के लिए उसकी रक्षा,सहायता एवं अगुवाई के लिए प्रार्थना करें, जब सन्ध्या आवे तब कितना सुहावन है कि माता पिता और बालक एकत्रित होकर एक बार पुन:दिन भी की आशीष के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करें.ककेप 210.5

    प्रत्येक भोर को अपने आप तथा अपने बच्चों को परमेश्वर के पास समर्पित कीजिए.वर्षा और माहों का हिसाब न लगाएं न वे आप के वश में नहीं हैं. आप को तो एक छोटा दिन दिया गया है.यह समझते हुए कि आप के लिए यह अन्तिम दिवस है इसकी प्रत्येक घड़ी में परमेश्वर की सेवा कीजिए. अपनी समस्त योजनाओं को परमेश्वर के समक्ष रख दीजिए कि अमुक काम का किया जाना या त्यागा जाना परमेश्वर की सुइच्छा के अनुसार हो.चाहे आप को रुचिकर वस्तुओं का परित्याग भी करना हो तैभी अपनी इच्छा की अपेक्षा उसी की इच्छा ग्रहण कीजिए. इस प्रकार आप का जीवन अधिकाधिक ईश्वरीय साँचे में ढाला जावेगा और “परमेश्वर की शन्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेंगी.’’(फिलिप्पिायों 4:7)ककेप 210.6

    पिता अथवा उसकी अनुपस्थिति में माता दिलचस्प एवं समझ में आ जाने योग्य सरल शास्त्रो पाठों को चुनकर आराधना संक्षिप्त हो.लम्बे पाठ पढ़ने व लम्बी प्रार्थना करने से आराधना थकाने वाली प्रगट होती है जिसकी समाप्ति में मानों चैन मिल जाता है.आराधना रुखी-सूखी,मनोरंजन रहित थकाने वाली होने से परमेश्वर का अनादर होता है.इस से बालक भी घबराते हैं.ककेप 211.1

    माता पिताओं,आराधना को अति दिलचस्प बनाइए.कोई कारण नहीं है कि आराधना का समय समस्त दैनिक कार्यकार्य में सुहावन व मन भावना न हो.थोड़ा ही विचार करके इसे अति रुचिकर और लाभदायक बनाया जा सकता है.समय समय पर आराधना की विधि में बदलाव होता रहे.शास्त्र पाठ पर प्रश्न पूछे जावे कि कभी-कभी उन पर सरल टीका भी की जावे.स्तुति भजन गाए जावे.प्रार्थना संक्षिप्त एवं अभिप्राय पूर्ण हो.आराधना संचालक सरल एवं गम्भौर शब्दों में परमेश्वर की भलाइयों के लिए उसकी स्तुति करे और सहायता पाने के लिए याचना करे.जब अवसर हो बालकों को भी आराधना में प्रार्थना करने और शास्त्रपाठ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जावे.ककेप 211.2

    ऐसी आराधनाओं के महत्तव और आशीष का पूरा प्रकटीकरण अनन्त काल ही में प्रगट होगा.ककेप 211.3