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कलीसिया के लिए परामर्श

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    नियमित कोमल प्रेमपूर्ण लालन-पालन

    बालक माता-पिताओं को परमेश्वर की ओर से अमूल्य थाती के रुप में दिए जाते हैं.माता-पिताओं से एक दिन लेखा लिया जावेगा.बालकों के लालन-पालन में अधिक समय सावधानी एवं प्रार्थना का उपयोग होना चाहिए.उनकी उचित शिक्षा की अति बालको के रोगग्रस्त होने का कारण बहुधा दोष पूर्ण पालन प्रबन्ध ही होता है.अनियमित भोजन,ऋतु के प्रतिकूल वस्त्र, रक्त संचालन को सुव्यवस्थित रखने के लिए व्यायाम की कमी,शुद्ध वायु की कमी बालक के रोगी होने के कारण हो सकते हैं.माता-पिता को चाहिए कि इन कारणों को खोज करके शीघ्राति शीघ्र उनका निवारण करें.ककेप 198.7

    बालक की शैशवकाल ही से क्षुधानिवारण में लीन करके मानो उसे शिक्षा दी जाती है कि उसके जीवन का उद्देश्य खाना ही है.बालक के चरित्र निर्माण में माता का भारी हाथ रहता है.या तो माता बालक को भूख पर नियंत्रण रखने की शिक्षा दे सकती है या उसे भूख के वशीभूत होकर पैटू बनने का अवसर प्रदान कर सकती है, जब माता कार्यव्यस्त हो और बालक सताए तो बालक को समाधान करने के बदले माता उसे कुछ खाने की वस्तु पकड़ा देती है.इससे क्षणिक कष्ट हरण तो हो जाता है पर अन्त मे काम बिगड़ जाता है.आवश्यकता न भी होने पर बालक के पेट में भोजन ढूंसा जाता है.यहां तो आवश्यकता केवल इस बात की थी कि माता कुछ समय निकाल कर बालक पर ध्यान दे पर माता ने अपने समय में बालक के मनोरंजन में लगाने के लिए अति बड़ाई के लिए अपने घर की सुन्दर रीति से सजाना व सुव्यवस्थित ढंग से भोजन पकाना अधिक विचारणीय थे.ककेप 199.1

    बालक को वेश-भूषा की व्यवस्था करने में फैशन एवं आकर्षण का विचार तजकर उसके स्वास्थ्य, सुविधा तथा आराम का अधिक विचार करना चाहिए.वस्त्रों को आकर्षक बनाने के लिए माता को कशीदा आदि काढ़ने में अपना समय बरबाद करके इतना अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए जिसके फलस्वरुप उसके स्वयं अथवा बालक के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़े.शिशु पालन कार्य में जब उसे विश्राम करना चाहिए सिलाई इत्यादि कामों में माता अपनी आंखों तथा देह को बुरी तरह न थकाए.माता को स्वयं बल वृद्धि को अपना कर्तव्य समझना चाहिए.ककेप 199.2