कलीसिया के लिए परामर्श
- Contents- प्रस्तावना
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- अध्याय 1 - विश्वासियों के प्रतिफल के विषय में दर्शन
- अध्याय 2 - अन्त का समय
- अध्याय 3 - अपने परमेश्वर से मिलने को तैयार हो जाइये
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- अध्याय 7 - कलीसिया के प्रकाशन
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- “जितने अपनी इच्छा से देना चाहें’‘
- दशमांश परमेश्वर द्वारा नियत किया गया है
- परमेश्वर के साथ सहकारी बनने का सौभाग्य
- परमेश्वर पैदावार का दसवाँ भाग चाहता है
- परमेश्वर दानों का मूल्य प्रेम-उत्तेजित त्याग के अनुसार लगता है
- सम्पत्ति का यथोचित बटवारा
- “चाहे धन सम्पत्ति बढ़े तौभी उस पर मन न लगा.’‘
- जो वाचा परमेश्वर से बांधी जाय वह लागू तथा पवित्र है
- कृतज्ञता का दान कंगालों के लिए अलग रखना चाहिये
- आत्मात्याग और बलिदान की भावना
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- अध्याय 10 - मसीह हमारी धार्मिकता
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- अध्याय 41 - संगीत
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- माता-पिता का सहमत होना आवश्यक है
- अति निष्ठुर प्रशिक्षण का भय
- बालकों को अज्ञानता में बढ़ने देना पाप है
- आलस्य की बुराई
- माता-पिता अपने बच्चों को मसीह तक लाने का प्रयत्न कीजिए
- मानसिक आवश्यकताओं की अपेक्षा मत कीजिए
- गुस्से में बालक की ताड़ना न कीजिए
- बालको के साथ सच्ची विश्वास योग्यता का महल
- चरित्र विकास का महत्व
- माता पिता को ईश्वरीय अगुवाई को अत्यधिक आवश्यकता
- सौजन्यता और आदर भाव सिखलाइए
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- कलीसिया का दायित्व
- हमारे विद्यालयों को नैतिक सहयोग
- शिक्षक परमेश्वर के अधीन हैं
- अध्यापक की योग्तायें
- मसीही शिक्षा में बाइबल का स्थान
- छोटी उम्र में बालकों को स्कूल भेजने का खतरा
- व्यावहारिक जीवन के कर्तव्यों में शिक्षण का महत्व
- परिश्रम में गौरव
- मातृभाषा की उपेक्षा न हों
- परमेश्वर नास्तिकों की कृतियों को अस्वीकार करता है
- मसीही शिक्षा का परिणाम
- अपने स्कूल का समर्थन करने में विद्यार्थी का दायित्व
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- अध्याय 48 - सफाई का महत्व
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- अध्याय 64 - मसीह-हमारा महायाजक
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